ज्ञानयोग में श्रद्धा बहुत जरूरी अंग

Edited By ,Updated: 04 Jul, 2015 11:19 AM

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इंद्रियों पर काबू पा चुके, साधना में लगे हुए और श्रद्धा रखने वाले इंसान को ही ज्ञान प्राप्त होता है । ज्ञान प्राप्त करने से पहले उसके लायक बनना जरूरी है । यदि साधक की योग्यता ज्ञान प्राप्त करने की नहीं है तो सालों-साल गुरु से ज्ञान सुनकर भी ज्ञान...

इंद्रियों पर काबू पा चुके, साधना में लगे हुए और श्रद्धा रखने वाले इंसान को ही ज्ञान प्राप्त होता है । ज्ञान प्राप्त करने से पहले उसके लायक बनना जरूरी है । यदि साधक की योग्यता ज्ञान प्राप्त करने की नहीं है तो सालों-साल गुरु से ज्ञान सुनकर भी ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता । ज्ञान पाने की पहली योग्यता है कि इंद्रियों पर नियंत्रण होना चाहिए । ऐसा करने से इंद्रियों से लगातार निकलती गैर जरूरी ऊर्जा को रोक कर उस ऊर्जा को ज्ञान प्राप्ति में लगाया जाता है । 

दूसरी योग्यता है, लगातार साधना करने की लगन का बना रहना । व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति के लिए गुरु द्वारा बताए रास्ते का लगातार अभ्यास करते रहना चाहिए । तीसरी योग्यता है श्रद्धा ।  ज्ञानयोग में श्रद्धा एक बहुत जरूरी अंग है । श्रद्धा ज्ञान के प्रति, गुरु के प्रति और परमात्मा के प्रति जितनी बढ़ती जाएगी, उतना ही ज्ञान भी बढ़ता जाएगा । दरअसल, व्यक्ति ज्ञान नहीं लेता, बल्कि उसकी श्रद्धा ही ज्ञान प्राप्त करती है ।

यदि व्यक्ति में श्रद्धा ही नहीं है तो कितनी भी कोशिश कर ली जाए, ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता । इस प्रकार जब योगी सभी इंद्रियों पर विजय पाकर पूरी श्रद्धा के साथ लगातार साधना में लगा रहता है, तब उसको ज्ञान प्राप्त होता है । जैसे ही व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त होता है, वैसे ही वह कभी न मिटने वाली परम शांति को प्राप्त हो जाता है । यह परम शांति ही परमात्मा को पाना है ।

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