Edited By ,Updated: 28 May, 2016 01:37 AM
विदेशी गुलामी से मुक्त होने के बाद लगभग प्रत्येक देश को अपने पैरों पर खड़ा होने में 100-150 वर्ष लगे हैं। इस लिहाज से देखें तो अभी तो हमें अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुए मात्र ...
विदेशी गुलामी से मुक्त होने के बाद लगभग प्रत्येक देश को अपने पैरों पर खड़ा होने में 100-150 वर्ष लगे हैं। इस लिहाज से देखें तो अभी तो हमें अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुए मात्र 69 साल ही हुए हैं और हम अपनी गुलामों वाली मानसिकता से भी मुक्त नहीं हुए हैं, अत: हमें दिमागी तौर पर पूर्ण विकसित होने और दूसरे विकसित देशों के बराबर आने में कुछ समय तो लगेगा।
इस समय हालत यह है कि आज देश की सभी पाॢटयां कांग्रेस, भाजपा, कम्युनिस्ट आदि आपसी कलह और फूट की शिकार हैं तथा यही स्थिति सरकार और प्रशासन में भी है। इसी कारण आम जनता के अधिकांश काम नहीं हो रहे जिससे देशवासियों में भारी निराशा व्याप्त है।
इसीलिए हम अक्सर लिखते रहते हैं कि चुनाव प्रत्येक 5 वर्ष के स्थान पर 4 वर्ष के बाद होने चाहिएं और सरकारें भी बदल-बदल कर ही आनी चाहिएं। इससे जिस पार्टी की भी सरकार बनेगी वह हमेशा चाक-चौबंद रह कर तेजी से कार्य करेगी और प्रशासन में भी शुचिता आने से लोगों को कुछ राहत मिलेगी।
इस समय भारतीय राजनीति भ्रष्टï तत्वों के चंगुल में बुरी तरह फंसी हुई है और चुनावों में अधिकांश भ्रष्टï तथा अपराधी तत्वों के चुने जाने से देश में प्रत्येक स्तर पर भ्रष्टïाचार बढ़ रहा है। इसे देखते हुए विश्व के अनेक विकासशील देशों में साफ-सुथरे उम्मीदवार चुनने के उद्देश्य से चुनावों में खड़े उम्मीदवारों में से कोई भी पसंद न आने पर ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ (नोटा) का प्रावधान किया गया है।
इसी कारण 26 सितम्बर, 2013 को सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय मतदाताओं को चुनाव में खड़े सभी प्रत्याशियों को खारिज करने का अधिकार देते हुए चुनाव आयोग को इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ई.वी.एम.) में ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ ‘नोटा’ विकल्प का बटन भी उपलब्ध करवाने का निर्देश दिया था।
परंतु इसके साथ ही चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्टï कर दिया था कि इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ई.वी.एम.) में ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ (नोटा) विकल्प का बटन दबाने वाले वोट चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों को पडऩे वाले वोटों से भी ज्यादा पडऩे पर भी उसका परिणाम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा तथा अधिक वोट प्राप्त करने वाला उम्मीदवार ही विजयी घोषित किया जाएगा।
इसी के अनुरूप 2014 के लोकसभा चुनावों में लगभग 59.59 लाख मतदाताओं ने इस विकल्प का इस्तेमाल किया था जो कुल पडऩे वाले वोटों का 1.1 प्रतिशत था और अब 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान 17 लाख से अधिक मतदाताओं ने ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ (नोटा) का बटन दबाया।
निर्वाचन आयोग की वैबसाइट के चुनाव नतीजों के अनुसार बंगाल में सर्वाधिक 8,31,845 मतदाताओं ने ‘नोटा’ बटन दबाया जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में बंगाल में 5 लाख से कुछ ही अधिक मतदाताओं ने ‘नोटा’ बटन दबाया था। इस बार ‘नोटा’ को मिले वोट भी 1.1 प्रतिशत से बढ़कर 1.5 प्रतिशत हो गए हैं।
बंगाल में अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों में बसपा, भाकपा, फारवर्ड ब्लाक, एस.यू.सी.आई. व निर्दलीय उम्मीदवारों को बहुत पीछे छोड़ते हुए नोटा चौथा सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी रहा। भवानीपुर में जहां से ममता बनर्जी जीतींं, ‘नोटा’ 2461 वोटों से चौथे स्थान पर रहा जबकि कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में ‘नोटा’ को 5000 से अधिक वोट मिले।
पुड्डïुचेरी, असम और तमिलनाडु में भी लगभग यही स्थिति रही। सिर्फ केरल ही एक अपवाद रहा जहां ‘नोटा’ विकल्प चुनने वाले मतदाताओं की संख्या तुलनात्मक दृष्टिï से कम रही। पुड्डïुचेरी में ‘नोटा’ के पक्ष में सर्वाधिक 1.7 प्रतिशत वोट पड़े जबकि केरल में सबसे कम मात्र 0.5 प्रतिशत वोट पड़े। तमिलनाडु में नोटा ने 1.3 प्रतिशत तथा असम में 1.1 प्रतिशत वोट प्राप्त किए।
स्पष्टï है कि चुनावों में ‘नोटा’ विकल्प देश के सभी राजनीतिक दलों के लिए एक चेतावनी के रूप में आया है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था को पारदर्शी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
इसके माध्यम से मतदाताओं को लोकतंत्र के व्यापक हित में चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के विरुद्ध अपनी अस्वीकृति या उनके प्रति अपने विरोध प्रदर्शन का मौका मिलेगा। नोटा बारे आम लोगों को जानकारी न होने के कारण अभी इसका कम लोगों ने प्रयोग किया है परंतु जैसे-जैसे लोगों को इसके संबंध में जानकारी होने पर इसका प्रयोग बढ़ेगा तब राजनीतिक दलों को और अधिक सोच-समझ कर साफ-सुथरे प्रत्याशी चुनने होंगे और तभी उनका अस्तित्व बच पाएगा।
साफ-सुथरी छवि वाले उम्मीदवारों के मैदान में आने से राजनीति में शुचिता तथा प्रशासन में चुस्ती और मुस्तैदी आएगी जिससे देशवासियों के काम तेजी से होंगे, उन्हें राहत मिलेगी तथा देश विकास पथ पर तेजी से अग्रसर हो सकेगा।