आप अपनी शक्तियों के रहस्य और अस्तित्व को केवल जानते ही हैं या पहचानते भी हैं

Edited By ,Updated: 07 Oct, 2015 09:05 AM

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समुद्रतट पर बसे नगर में एक धनवान व्यक्ति रहता था। उसके पुत्रों ने एक कौआ पाल रखा था, जिसे वे अपनी जूठन खिलाते रहते और कौआ भी मस्त रहता।

समुद्रतट पर बसे नगर में एक धनवान व्यक्ति रहता था। उसके पुत्रों ने एक कौआ पाल रखा था, जिसे वे अपनी जूठन खिलाते रहते और कौआ भी मस्त रहता। एक बार कुछ हंस आकर वहां उतरे। व्यक्ति के पुत्र हंसों की प्रशंसा कर रहे थे, जो कौए से सही नहीं गई। वह उन हंसों के पास पहुंचा और उनमें से एक से बोला, ‘‘लोग नाहक ही तुम्हारी तारीफ करते हैं। तुम मुझे उड़ान में हराओ तो जानूं!’’ 

हंस ने उसे समझाया, ‘‘भैया, हम दूर-दूर उडऩे वाले हैं। हमारा निवास मानसरोवर यहां से बहुत दूर है। हमारे साथ प्रतियोगिता करने से तुम्हें क्या लाभ होगा?’’

कौए ने अभिमान के साथ कहा, ‘‘मैं उडऩे की सौ गतियां जानता हूं। मुझे पता है कि तुम हारने के डर से मेरे साथ नहीं उड़ रहे हो।’’ 

तब तक कुछ और पक्षी भी वहां आकर कौए की हां में हां मिलाने लगे। आखिर वह हंस कौए के साथ प्रतियोगिता के लिए राजी हो गया।

इसके बाद हंस और कौआ समुद्र के ऊपर उड़ चले। कौआ नाना प्रकार की कलाबाजियां दिखाते हुए पूरी शक्ति से उड़ा और हंस से कुछ आगे निकल गया। हंस अपनी स्वाभाविक मंद गति से उड़ रहा था। यह देख दूसरे कौए प्रसन्नता प्रकट करने लगे। पर थोड़ी ही देर में कौआ थकने लगा। वह विश्राम के लिए इधर-उधर वृक्षयुक्त द्वीपों की खोज करने लगा, परंतु उसे अनंत जलराशि के अतिरिक्त कुछ नहीं दिख रहा था। कौए की गति मंद पड़ चुकी थी। वह बेहद थका हुआ और समुद्र में गिरने की दशा में पहुंच गया था। हंस ने उसके पास आकर पूछा, ‘‘काक! तुम्हारी चोंच और पंख बार-बार पानी में डूब रहे हैं, यह तुम्हारी कौन-सी गति है?’’

हंस की व्यंग्यभरी बात सुनकर कौआ दीनता से बोला, ‘‘यह मेरी मूर्खता थी, जो मैंने तुमसे होड़ करने की ठानी। कृपया मेरे प्राण बचा लो।’’ 

हंस को कौए पर दया आ गई और उसने उसे अपने पंजों से उठाकर अपनी पीठ पर रखा और लौटकर वापस उसे उसके मूल स्थान पर छोड़ दिया। तात्पर्य यह है कि कभी किसी को अपनी शक्तियों पर मिथ्या अभिमान नहीं करना चाहिए।

 

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