Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Apr, 2024 11:49 AM
शास्त्रों के अनुसार कामदा एकादशी का पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाए जाने का विधान है। इसे आम भाषा में फलदा एकादशी भी कहकर बुलाया जाता है। शब्द फलदा का अर्थ है फल की प्राप्ति और शब्द कामदा का अर्थ है
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Kamada Ekadashi vrat katha: शास्त्रों के अनुसार कामदा एकादशी का पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाए जाने का विधान है। इसे आम भाषा में फलदा एकादशी भी कहकर बुलाया जाता है। शब्द फलदा का अर्थ है फल की प्राप्ति और शब्द कामदा का अर्थ है कामनाओं की दात्री अर्थात कामनाओं को पूरा करने वाली। इसे शास्त्रों में भगवान विष्णु का उत्तम व्रत कहकर संबोधित किया गया है। कामदा एकादशी को ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करने वाली एकादशी माना जाता है। इस कथा को पढ़ने, सुनने और सुनाने वाले व्यक्ति की पूरी होती है हर ख्वाहिश।
महाभारतकालीन समय में धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से कहते हैं, हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं। अब आप कृपा कर के चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य कहिए। भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं कि हे धर्मराज! ये प्रश्न एक समय राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठ से भी पुछा था और जो समाधान गुरु वशिष्ठ ने कहा वो मैं आपसे कहता हूं।
प्राचीनकाल में भोगीपुर नगर में पुण्डरीक नामक एक राजन राज्य करते थे। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व वास करते थे तथा रजा पुण्डरीक का दरबार किन्नरों व गंधर्वो से भरा रहता था, जो गायन और वादन में निपुण और योग्य थे। वहां नित्य ही गंधर्वों और किन्नर का गायन होता रहता था। भोगीपुर नगर में ललिता नामक रूपसी अप्सरा और उसका पति ललित नामक श्रेष्ठ गंधर्व का वास था। दोंनों के बीच अटूट प्रेम और आकर्षण था, वे सदा एक दूसरे का ही स्मरण किया करते थे।
एक दिन गन्धर्व 'ललित' दरबार में गायन कर रहा था कि अचानक उसे अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई। इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे। इस त्रुटि को कर्कट नामक नाग ने जान लिया और यह बात राजा पुण्डरीक को बता दी। राजा को गन्धर्व ललित पर बड़ा क्रोध आया। राजा पुण्डरीक ने गन्धर्व ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया। ललित सहस्त्रों वर्ष तक राक्षस योनि में घूमता रहा। उसकी पत्नी भी उसी का अनुसरण करती रही। अपने पति को इस हालत में देखकर वह बड़ी दुःखी होती थी।
कुछ समय पश्चात घूमते-घूमते ललित की पत्नी ललिता विन्ध्य पर्वत पर रहने वाले ऋष्यमूक ऋषि के पास गई और अपने श्रापित पति के उद्धार का उपाय पूछने लगी। ऋषि को उन पर दया आ गई। उन्होंने चैत्र शुक्ल पक्ष की 'कामदा एकादशी' व्रत करने का आदेश दिया। उनका आशीर्वाद लेकर गंधर्व पत्नी अपने स्थान पर लौट आई और उसने श्रद्धापूर्वक 'कामदा एकादशी' का व्रत किया। एकादशी व्रत के प्रभाव से इनका श्राप मिट गया और दोनों अपने गन्धर्व स्वरूप को प्राप्त हो गए।