Guruvar Vrat vidhi and katha: धन, विद्या और पुत्र प्राप्ति के लिए इस शास्त्रीय विधि से करें व्रत

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 May, 2023 08:01 AM

guruvar vrat vidhi and katha

बृहस्पति या गुरु देव को बुद्धि और शिक्षा का देवता माना जाता है। गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन, विद्या, पुत्र व अन्य मनोवांछित फलों की प्राप्ति

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Guruvar Vrat vidhi and katha: बृहस्पति या गुरु देव को बुद्धि और शिक्षा का देवता माना जाता है। गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन, विद्या, पुत्र व अन्य मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। गुरुवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है। इस पूजा से परिवार में सुख-शांति रहती है, जल्द विवाह के लिए भी गुरुवार का व्रत किया जाता है।

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Thursday fasting method गुरुवार व्रत की विधि
गुरुवार की पूजा विधि-विधान के अनुसार की जानी चाहिए। व्रत वाले दिन सुबह उठकर बृहस्पति देव का पूजन करना चाहिए। बृहस्पति देव का पूजन पीली वस्तुएं, पीले फूल, चने की दाल, मुनक्का, पीली मिठाई, पीले चावल और हल्दी चढ़ाकर किया जाता है। इस व्रत में केले के पेड़ की का पूजा की जाती है। कथा और पूजन के समय मन, कर्म और वचन से शुद्ध होकर मनोकामना पूर्ति के लिए बृहस्पति देव से प्रार्थना करनी चाहिए।

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जल में हल्दी डालकर केले के पेड़ पर चढ़ाएं। केले की जड़ में चने की दाल और मुनक्का चढ़ाएं। साथ ही दीपक जलाकर पेड़ की आरती उतारें। दिन में एक समय ही भोजन करें, खाने में चने की दाल या पीली चीजें खाएं, नमक न खा‌एं। पीले वस्त्र पहनें, पीले फलों का इस्तेमाल करें। पूजन के बाद भगवान बृहस्पति की कथा सुननी चाहिए।

Story of thursday fast गुरुवार व्रत की कथा
प्राचीन काल की बात है, किसी राज्य में एक बड़ा प्रतापी और दानी राजा राज करता था। वह प्रत्येक गुरुवार को व्रत रखता एवं भूखे और गरीबों को दान देकर पुण्य प्राप्त करता था परंतु यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी। वह न तो व्रत करती थी, न ही किसी को एक भी पैसा दान में देती थी और राजा को भी ऐसा करने से मना करती थी।

एक समय की बात है, राजा शिकार खेलने के लिए वन चले गए थे। घर पर रानी और दासी थी। उसी समय गुरु बृहस्पति देव साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने आए। साधु ने जब रानी से भिक्षा मांगी तो वह कहने लगी, " हे साधु महाराज ! मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं। आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे कि सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं।"

तब साधु ने कहा, " यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो मैं जैसा तुम्हें बताता हूं, तुम वैसा ही करना। गुरुवार के दिन तुम घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिट्टी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, राजा से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस-मदिरा खाना, कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना। इस प्रकार सात बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा समस्त धन नष्ट हो जाएगा।"

इतना कहकर साधु रुपी बृहस्पति देव अंतर्ध्यान हो गए।

साधु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए रानी को केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसकी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई। भोजन के लिए राजा का परिवार तरसने लगा। तब एक दिन राजा ने रानी से बोला कि हे रानी, "तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूं क्योंकि यहां पर सभी लोग मुझे जानते हैं इसलिए मैं कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता।"

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ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया, वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता। इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा इधर, राजा के परदेश जाते ही रानी और दासी दुखी रहने लगी।

एक बार जब रानी और दासी को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा, "हे दासी ! पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है, वह बड़ी धनवान है, तू उसके पास जा और कुछ ले आ, ताकि थोड़ी-बहुत गुजर-बसर हो जाए।"

दासी रानी की बहन के पास गई। उस दिन गुरुवार था और रानी की बहन उस समय बृहस्पतिवार व्रत की कथा सुन रही थी दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया लेकिन रानी की बड़ी बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया। जब दासी को रानी की बहन से कोई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हुई और उसे क्रोध भी आया। दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी। सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा उधर, रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी परंतु मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुखी हुई होगी।

कथा सुनकर और पूजन समाप्त करके वह अपनी बहन के घर आई और कहने लगी, "हे बहन, मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी। तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी परंतु जब तक कथा होती है, तब तक न तो उठते हैं और न ही बोलते हैं, इसलिए मैं नहीं बोली कहो दासी क्यों गई थी ?"

रानी बोली, "बहन, तुमसे क्या छिपाऊं, हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं था।"

ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आई। उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने तक की बात अपनी बहन को विस्तार पूर्वक सुना दी रानी की बहन बोली, "देखो बहन, भगवान बृहस्पति देव सबकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो।"

पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया। यह देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई, दासी रानी से कहने लगी- हे रानी, जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं, इसलिए क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए, ताकि हम भी व्रत कर सकें तब रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा।

उसकी बहन ने बताया, बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से भगवान विष्णु का केले की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलाएं, व्रत कथा सुनें और पीला भोजन ही करें। इससे बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं। व्रत और पूजन विधि बताकर रानी की बहन अपने घर को लौट गई।

सात दिन के बाद जब गुरुवार आया, तो रानी और दासी ने व्रत रखा, घुड़साल में जाकर चना और गुड़ लेकर आईं। फिर उससे केले की जड़ तथा भगवान विष्णु का पूजन किया। अब पीला भोजन कहां से आए, इस बात को लेकर दोनों बहुत दुखी थे चूंकि उन्होंने व्रत रखा था इसलिए बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थे। वे एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में सुन्दर पीला भोजन दासी को दे गए। भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया

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उसके बाद वे सभी गुरुवार को व्रत और पूजन करने लगी। बृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास फिर से धन-संपत्ति आ गई, परंतु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी। तब दासी बोली,"देखो रानी, तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था, इस कारण सभी धन नष्ट हो गया और अब जब भगवान बृहस्पति की कृपा से धन मिला है तो तुम्हें फिर से आलस्य होता है।"

रानी को समझाते हुए दासी कहती है कि बड़ी मुसीबतों के बाद हमने यह धन पाया है इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए, भूखे मनुष्यों को भोजन कराना चाहिए और धन को शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए। जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी और पितृ प्रसन्न होंगे। दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी, जिससे पूरे नगर में उसका यश फैलने लगा।

बृहस्पतिवार व्रत कथा के बाद श्रद्धा के साथ आरती की जानी चाहिए। इसके बाद प्रसाद बांटकर उसे ग्रहण करना चाहिए।

वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड राष्ट्रीय गौरव रत्न से विभूषित
पंडित सुधांशु तिवारी
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