पुराणों के अनुसार जानें, स्वर्ग में कितने वर्षों तक रह सकती है आत्मा

Edited By ,Updated: 28 Apr, 2016 11:32 AM

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प्रकृति की सीख को जानें, समझें और पहचानें प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। मनुष्य के लिए धरती उसके घर का आंगन, आसमान छत, सूर्य-चांद-तारे दीपक, सागर-नदी पानी के मटके और पेड़-पौधे आहार के साधन हैं।

प्रकृति की सीख को जानें, समझें और पहचानें
 
प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। मनुष्य के लिए धरती उसके घर का आंगन, आसमान छत, सूर्य-चांद-तारे दीपक, सागर-नदी पानी के मटके और पेड़-पौधे आहार के साधन हैं। इतना ही नहीं, मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा गुरु नहीं है। 
न्यूटन जैसे महान विज्ञानियों को गुरुत्वाकर्षण समेत कई पाठ प्रकृति ने सिखाए। कवियों ने प्रकृति के सान्निध्य में रहकर एक से बढ़कर एक कविताएं लिखीं। इसी तरह आम आदमी ने प्रकृति के तमाम गुणों को समझकर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव किए।
 
 
दरअसल प्रकृति हमें कई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। जैसे पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नहीं है। इस पाठ को जिसने भी अपने जीवन में आत्मसात किया, उसे नाकामी से कभी डर नहीं लगा। ऐसे व्यक्ति असफलता पर विचलित हुए बगैर नए सिरे से सफलता पाने की कोशिश करते हैं और आखिरकार सफल होते हैं। इसी तरह फलों से लदे मगर नीचे की ओर झुके पेड़ हमें सफलता और प्रसिद्धि मिलने या संपन्न होने के बावजूद विनम्र और शालीन बने रहना सिखाते हैं।
 
 
उपन्यासकार प्रेमचंद के मुताबिक साहित्य में आदर्शवाद का वही स्थान है, जो जीवन में प्रकृति का है। प्रकृति में हर किसी का अपना महत्व है। एक छोटा-सा कीड़ा भी प्रकृति के लिए उपयोगी है। मत्स्यपुराण में एक वृक्ष को सौ पुत्रों के समान बताया गया है। इसी कारण हमारे यहां वृक्ष पूजने की सनातन परम्परा रही है। पुराणों में कहा गया है कि जो व्यक्ति नए वृक्ष लगाता है, वह स्वर्ग में उतने ही वर्षों तक फलता-फूलता है, जितने वर्षों तक उसके लगाए वृक्ष फलते-फूलते हैं।
 
 

प्रकृति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह अपनी चीजों का उपभोग स्वयं नहीं करती। जैसे नदी अपना जल स्वयं नहीं पीती, पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते, फूल अपनी खुशबू पूरे वातावरण में फैला देते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव या पक्षपात नहीं करती लेकिन मनुष्य जब प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ करता है, तब उसे गुस्सा आता है, जिसे वह समय-समय पर सूखा, बाढ़, तूफान आदि के रूप में व्यक्त करते हुए मनुष्य को सचेत करती है। 

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