Edited By ,Updated: 21 Nov, 2015 04:51 PM
श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी भारत के एक राज्य आसाम में श्रीहरिनाम संकीर्तन का प्रचार कर रहे थे। आसाम के ही हाउली नगर में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया था।
श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज जी भारत के एक राज्य आसाम में श्रीहरिनाम संकीर्तन का प्रचार कर रहे थे। आसाम के ही हाउली नगर में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया था।
सभी धर्मों के लोग वहां पर आपको सुनने आए हुए थे। प्रवचन के बीच में श्रोताओं की ओर से प्रश्न आ सकते हैं, इस आशंका से आपने अपने प्रवचन के प्रारम्भ में ही कह दिया कि यदि किसी का कोई प्रश्न हो तो वह प्रवचन के बीच में न पूछे । प्रश्नों के उत्तर के लिए सभा के बाद 15-20 मिनट का समय दिया जाएगा।
आपका दिव्य प्रवचन प्रारम्भ हुआ। कुछ ही देर बाद एक मौलवी साहब ने बीच में ही उठ कर प्रश्न किया, 'आप जो आत्मा व परमात्मा की बात कर रहे हैं, क्या आत्मा-परमात्मा को किसी ने देखा है? आप आत्मा-परमात्मा की बात कहकर दुनियां के लोगों को धोखा नहीं दे रहे हैं, इसका क्या प्रमाण है?'
कई श्रोता उन मौलवी साहब के ऐसे बीच में उठने की वजह से नाराज़ भी हुए और उन्होंने कहा, 'स्वामी जी, इनका प्रश्न सभा के नियम के प्रतिकूल है इसलिए आप इनकी बात पर ध्यान न दें। '
किंतु लोग यह न समझें कि स्वामी जी के पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं है इसलिए आपने सभा में ही मौलवी साहब के प्रश्न का उत्तर दिया। वैसे भी आपमें आध्यात्मिक प्रश्नों के उत्तर देने में हाज़िर-जवाब वाला स्वभाविक गुण था।
मौलवी साहब के हाथ में एक पुस्तक को देख कर आपने मौलवी साहब को पूछा, 'आपके हाथ में जो पुस्तक है, उसका नाम क्या है?'
मौलवी साहब ने उस किताब का नाम बताया।
आपने कहा, 'मैं बंगला, आसामी, हिन्दी तथा अंग्रेज़ी इत्यादि भाषाएं जानता हूं । कई भाषाओं का ज्ञान होने पर भी व आंखें ठीक होने पर भी मैं उस किताब का 'वो' नाम क्यों नहीं देख पा रहा हूं?
मौलवी साहब ! आप मुझे धोखा नहीं दे रहे हैं, इसका क्या प्रमाण है?'
आपके इस प्रश्न पर आसपास बैठे लोगों ने उस किताब को अच्छी तरह से देखा और कहा कि मौलवी साहब किताब का जो नाम बता रहे हैं, वो ठीक है।
आपने कहा,'आप सब लोग एक साथ मिल कर मुझे धोखा दे रहे हैं।'
मौलवी साहब बड़े हैरान हुए व बोले,'आप को क्या दिख रहा है?'
आपने कहा, 'मैं देखता हूं कि एक कौवा स्याही पर बैठा होगा। बाद में वही आपकी इस किताब के ऊपर बैठ गया होगा, ये उसी के पैरों के निशान हैं।'
मौलवी साहब, 'आप निश्चय ही उर्दू नहीं जानते।'
'हां , मैं उर्दू नहीं जानता।'
'तब आप उर्दू लेख को कैसे समझ सकोगे?'
'आपको उर्दू सीखनी होगी । तब आप भी देख पाओगे कि इस किताब का नाम वही है जो मैं बता रहा हूँ।'
आपने उत्तर दिया, 'बहुत सी भाषाएं जानते हुए भी, बहुत सा ज्ञान होने पर भी, उर्दू भाषा को समझने के लिए उर्दू का ज्ञान होना आवश्यक है। जिस प्रकार आंखों की दृष्टि-शक्ति ठीक रहने पर भी, दृष्टि-शक्ति के पीछे उर्दू का ज्ञान न रहने पर उर्दू भाषा के शब्द का अर्थ समझा नहीं जा सकता, उर्दू भाषा के अक्षरों को पहचाना नहीं जा सकता, उसी प्रकार दुनियांदारी का बहुत सा ज्ञान व योग्यता रहने पर भी, आत्मा व परमात्मा को समझने की विशेष योग्यता जब तक अर्जित नहीं हो जाती, तब तक आत्मा व परमात्मा की अनुभूति नहीं होती ।'
अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के सौजन्य से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com