‘उफ महंगाई’ : 66 प्रतिशत लोगों के लिए ‘घर का खर्च चलाना हुआ मुश्किल’

Edited By ,Updated: 14 Feb, 2020 01:08 AM

66 percent of people find it difficult to run household expenses

एक ओर देश में आर्थिक मंदी के कारण रोजगार लगभग समाप्त हो गए हैं और बेरोजगारी की दर 45 वर्षों के उच्चतम शिखर पर जा पहुंची है तो दूसरी ओर खाद्य वस्तुओं के दामों में हुई वृद्धि के चलते खुदरा महंगाई दर जनवरी में बढ़ कर 7.59 प्रतिशत हो गई जो 6 वर्ष की सबसे

एक ओर देश में आर्थिक मंदी के कारण रोजगार लगभग समाप्त हो गए हैं और बेरोजगारी की दर 45 वर्षों के उच्चतम शिखर पर जा पहुंची है तो दूसरी ओर खाद्य वस्तुओं के दामों में हुई वृद्धि के चलते खुदरा महंगाई दर जनवरी में बढ़ कर 7.59 प्रतिशत हो गई जो 6 वर्ष की सबसे ऊंची दर है।

इससे पूर्व दिसम्बर 2019 में महंगाई दर साढ़े पांच वर्ष के उच्चतम स्तर पर लगभग 7.35 प्रतिशत तथा नवम्बर में 5.54 प्रतिशत थी। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एन.एस.ओ.) के अनुसार खाद्य वस्तुओं और र्ईंधन के मूल्यों में वृद्धि के कारण लगातार छठे महीने खुदरा महंगाई की दर बढ़ी है। जनवरी में सब्जियों-दालों, मांस-मछली और अंडों के दाम में सर्वाधिक वृद्धि हुई। गत वर्ष जनवरी की तुलना में सब्जियों के दाम 50.19 और दालों तथा इनके उत्पादों के दाम 16.71 प्रतिशत बढ़े।

पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे आम लोगों को एक और बड़ा झटका लगा जब दिल्ली चुनावों के परिणामों के तुरंत बाद 12 फरवरी को पैट्रोलियम कम्पनियों ने बिना सबसिडी वाले रसोई गैस सिलैंडर की कीमत में 144.50 रुपए की वृद्धि कर दी।

वर्ष 2014 के बाद रसोई गैस के भाव में यह सबसे बड़ी वृद्धि है जिसके विरुद्ध 13 फरवरी को देश व्यापी प्रदर्शन शुरू हो गए हैं और अनेक स्थानों पर प्रदर्शनकारियों द्वारा केंद्र सरकार के पुतले भी जलाए गए हैं। कांग्रेस की महिला इकाई व अन्य संगठनों ने नई दिल्ली में रसोई गैस की कीमतों में वृद्धि के विरुद्ध 13 फरवरी को पैट्रोलियम मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन करके वृद्धि तत्काल वापस लेने की मांग की।

लोगों का कहना है कि रसोई  गैस की कीमत बढ़ाकर सरकार दिल्ली के चुनावों में हार की भड़ास निकाल रही है और यह वृद्धि उस समय की गई है जब देश में आर्थिक वृद्धि और बेरोजगारी अपने चरम पर है। लोगों की नौकरियां जा रही हैं और ऐसी हालत में केंद्र सरकार ने आम लोगों पर फिर से महंगाई का बड़ा वार कर दिया है। जैसे कि इतना ही काफी नहीं था, निर्माण क्षेत्र में उत्पादन घटने से देश में दिसम्बर महीने में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि की दर 0.3 प्रतिशत घट कर 2.5 प्रतिशत  पर पहुंच गई है।

कमर तोड़ महंगाई से आम आदमी की गृहस्थी कितनी गड़बड़ा गई है इसका अनुमान इस वर्ष जनवरी में आई.ए.एन.सी.-सी वोटर द्वारा देश में करवाए गए एक संयुक्त सर्वेक्षण से लगाया जा सकता है। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से इस सर्वे में शामिल किए गए लोगों में से 65.8 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें अपनी आय तथा दैनिक खर्चों के बीच तालमेल बिठाने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।

अधिकांश लोगों के अनुसार उनकी आय तो एक समान रही परंतु खर्च बढ़ गया जबकि कुछ अन्य ने कहा कि उनका दैनिक घरेलू खर्च तो बढ़ गया है परंतु आय घट गई है। भाजपा सरकार के सत्ता संभालने के प्रथम वर्ष के दौरान वर्ष 2015 में 46.1 प्रतिशत लोगों ने अपने दैनिक खर्चों का प्रबंधन करने में असमर्थता जताई थी। इससे स्पष्टï है कि 2015 की तुलना में 2020 में भी अधिकांश लोगों के जीवनयापन की सुविधाओं में सुधार की बजाय कमी आई है।

यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि 2014 में भी कांग्रेस नीत यू.पी.ए. सरकार के समय में लगभग 65 प्रतिशत लोगों ने माना था कि वे अपने खर्चों का प्रबंधन करने में असमर्थ हैं। कुल मिला कर आम देशवासी आज पहले की भांति ही उन समस्याओं से जूझ रहे हैं जिनसे वे कांग्रेस के शासन में जूझ रहे थे और अच्छे दिनों का सपना अभी तक सपना ही बना हुआ है। महंगाई की यह स्थिति लोगों का जीवनयापन लगातार कठिन होते जाने की ओर संकेत करती है जिसका निवारण सुधारात्मक उपायों और देश में रोजगार के अवसर बढ़ाने से ही संभव है। —विजय कुमार

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