किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए अग्रिम प्रबंध जरूरी

Edited By ,Updated: 27 Sep, 2020 01:21 AM

advance management is necessary to prevent farmers from burning stubble

अब एक बार फिर वही मौसम आ गया है जब खरीफ (धान की फसल) की देश के विभिन्न हिस्सों में कटाई शुरू होते ही किसानों ने खेतों में पराली को आग लगानी शुरू कर दी है। अमरीका की अंतरिक्ष एजैंसी ‘नासा’ द्वारा जारी चित्र के अनुसार इस बार ‘पराली’ जलाने से फैलने वाला

अब एक बार फिर वही मौसम आ गया है जब खरीफ (धान की फसल) की देश के विभिन्न हिस्सों में कटाई शुरू होते ही किसानों ने खेतों में पराली को आग लगानी शुरू कर दी है। अमरीका की अंतरिक्ष एजैंसी ‘नासा’ द्वारा जारी चित्र के अनुसार इस बार ‘पराली’ जलाने से फैलने वाला वायु प्रदूषण जल्दी ही दिल्ली समेत इस क्षेत्र के अधिकांश भाग को लपेट में ले लेगा जो सॢदयां आने तक और गम्भीर हो जाएगा। 

पंजाब में अमृतसर, तरनतारन और फिरोजपुर के अलावा जालंधर, कपूरथला और मानसा तथा हरियाणा में फतेहाबाद और अम्बाला केे विभिन्न भागों से ‘पराली’ जलाने के समाचार मिले हैं जिसमें तेजी से वृद्धि हो रही है, जबकि गत वर्ष खेतों में पराली जलाने की घटनाओं के आधार पर इस वर्ष हरियाणा में अभी तक 332 गांवों की ‘रैड जोन’ के रूप में पहचान की गई है। नाड़ और पराली जलाने के कारण वायुमंडल में प्रदूषण का स्तर अर्थात पी.एम. 2.5 बढ़ कर 500 तक हो जाता है जो दीवाली के आसपास 1000 तक पहुंच जाता है जबकि यह अधिकतम 50 होना चाहिए और लॉकडाऊन के कारण सड़कों पर वाहनों आदि की कमी हो जाने के कारण वायु प्रदूषण घट कर 20 प्रतिशत तक सिमट गया था और इस समय 45 है परंतु पराली जलाने से इसके दोबारा बढऩे का खतरा पैदा हो गया है जो विशेष रूप से बच्चों और बुजुर्गों के लिए अधिक नुक्सानदेह है। 

कृषि अवशेष प्रबंधन विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि चूंकि कोरोना वायरस श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है, अत: पराली जलाने से वायुमंडल में जहरीली गैसों की वृद्धि के कारण श्वसन समस्याएं बढऩे से कोरोना महामारी के और घातक रूप धारण कर लेने की आशंका पैदा हो गई है। गत 5-6 वर्षों से देश में पराली जलाने का यह दुष्चक्र जारी है। हालांकि किसान भी जानते हैं कि ऐसा करना हानिकारक है परंतु इसके बावजूद वे समय और साधनों की कमी के कारण पराली का सही निपटारा नहीं कर पाने के कारण इसे खेत में जला देते हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारें भी हर साल पराली जलाने के सीजन में पराली खरीद कर इसे विभिन्न रूपों में इस्तेमाल करने आदि की योजनाएं बनाती हैं परंतु अंतिम समय पर ऐसा निर्णय लेने के कारण वे अगले वर्ष के लिए टल जाती हैं और इस तरह क्रियात्मक रूप से ये योजनाएं खटाई में पड़ जाती हैं। यदि यह सब तीन-चार महीने पहले हो सके तो क्या यह सबके लिए बेहतर नहीं होगा! 

बहरहाल, इस वर्ष तो स्थिति पिछले वर्षों से कुछ अधिक ही खराब है। इस समय जबकि कृषि विधेयकों को लेकर किसान पहले ही सड़कों पर उतरे हुए हैं, इस बात की संभावना कम ही है कि पराली जलाने वालों के विरुद्ध सम्बन्धित सरकारें कोई कठोर कदम उठाएंगी परंतु किसानों को भी समझना चाहिए कि पराली पर रोक लगाना किसी एक वर्ग के लिए नहीं बल्कि सबकी सुरक्षा के लिए और उनके लिए भी समान रूप से जरूरी है अत: उन्हें सरकार के इस सम्बन्धी किए प्रयासों में सहयोग करना चाहिए।  

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