आयुध भंडारों में लगातार हो रहे भीषण अग्निकांडों से हमने कुछ नहीं सीखा

Edited By ,Updated: 05 Jun, 2016 01:45 AM

armament stores are constantly in fierce fire we learned nothing

महाराष्ट में पुलगांव स्थित आयुध भंडार की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के जमाने में ब्रिटिश सेना के एक मेजर ने की थी। अंग्रेज अपना सबसे बड़ा आयुध भंडार ऐसी जगह बनाना चाहते थे

महाराष्ट में पुलगांव स्थित आयुध भंडार की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के जमाने में ब्रिटिश सेना के एक मेजर ने की थी। अंग्रेज अपना सबसे बड़ा आयुध भंडार ऐसी जगह बनाना चाहते थे जो भारत के मध्य में स्थित हो तथा वहां से किसी भी समय किसी भी मोर्चे पर लड़ रही सेनाओं को यथा  शीघ्र हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति की जा सके। 

 
तभी से यह भारत के सबसे बड़े आयुध भंडार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके दर्जनों शैडों में से एक शैड में 31 मई को हुए भीषण विस्फोट से 130 टन गोला-बारूद जल कर स्वाह हो गया, एक शैड पूरी तरह नष्ट हो गया तथा निकट के तीन शैडों को कुछ क्षति पहुंची। इस आयुध भंडार में 11 तरह के विस्फोटक और हथियार रखे गए थे।
 
पुलगांव में अधिकांश गोला-बारूद खुले में रखा हुआ है जो या तो त्रिपाल की शीटों के नीचे पड़ा है या कंक्रीट फ्लोरिंग वाले शैडों में रखा जाता है जिन्हें ‘विस्फोटक भंडार गृह’ कहा जाता है। पुलगांव में ऐसे 250 से 300 के बीच शैड हैं जहां बड़ी संख्या में गोला-बारूद पड़ा है।
 
इसमें ऐसा गोला-बारूद भी शामिल है जिसे सिवाय एमरजैंसी के रात में इधर-उधर करना भी मना है। ऐसे शैडों की बहुत देखभाल करनी पड़ती है। यह बहुत खतरनाक होता है और घुन अथवा चूहे भी इनके डिब्बों को कुतर कर विस्फोट का कारण बन सकते हैं। 
 
जिस शैड में विस्फोट हुआ वहां रखे हुए गोला-बारूद की मियाद समाप्त हो चुकी थी फिर भी 19 अनमोल जानें चली गईं, अत: कल्पना की जा सकती है कि यदि यह ‘जिंदा’ होता तो क्षति कितनी अधिक होती।
 
भारत के आयुध भंडारों में अग्निकांडों का यह कोई पहला अवसर नहीं है। तीन सालों में ही देश के आयुध भंडारों में लगभग 23 अग्निकांड हो चुके हैं जिनमें हजारों करोड़ रुपए का गोला-बारूद नष्ट हो चुका है। 
 
पुलगांव आयुध भंडार में मई 1989 में भीषण अग्निकांड के बाद सेना की जांच समिति ने इनके आसपास घास न उगाने तथा नागरिक आबादी को इनसे सुरक्षित दूरी पर रखने की सिफारिश की थी। 
 
संयुक्त राष्ट ने भी विभिन्न प्रकार के गोला-बारूद को सुरक्षित रखने के मापदंड निर्धारित किए हैं और 1970 से ही भारत में विभिन्न समितियों द्वारा इसे सुरक्षित रखने संबंधी सिफारिशें की जाती रही हैं। 
 
मई, 1989 के अग्निकांड से तीन वर्ष पूर्व जबलपुर के आयुध भंडार में लगी आग तीन दिनों में बुझी थी और इन दोनों अग्निकांडों के बीच की अवधि में सेना के एक दल ने यह जानने के लिए यूरोप का दौरा किया था कि ‘नाटो’ देश अपना गोला-बारूद किस प्रकार सुरक्षित रखते हैं। 
 
इस दल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अधिकांश देशों ने अपने गोला-बारूद के लिए विशेष रूप से भूमिगत ‘इगलू’ (बर्फ से निर्मित विशेष प्रकार के घर) बना रखे हैं। लागत अधिक आने के कारण आज तक इस सिफारिश पर अमल नहीं हुआ। 
 
भारतीय सेना का कालातीत हो चुका गोला-बारूद, जिसे योजनाबद्ध ढंग से नष्ट करना वांछित है, भी आयुध भंडारों में ही पड़ा है। अब पुलगांव में आयुध भंडार के अग्निकांड के बाद विशेषज्ञों ने सेना के गोला-बारूद की प्रबंधन प्रणाली को पूरी तरह ओवर हाल करने की आवश्यकता जताई है।
 
इस घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए शिव सेना ने कहा है कि ‘‘हमारे आयुध भंडार के नष्टï होने पर पाकिस्तान और चीन जैसे हमारे शत्रु अवश्य प्रसन्न हो रहे होंगे। इतनी क्षति तो किसी युद्ध में भी न हुई होती। हमारी सरकार सिर्फ दुख व्यक्त करती है और घटना की जांच के आदेश दे देती है। ऐसे मामलों में लापरवाही बरतना शर्मनाक है।’’
 
पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी.पी. मलिक के अनुसार हालांकि अब 75-80 प्रतिशत गोला-बारूद विशेष ‘हट्स’ में रखा जाता है फिर भी लगभग 25 प्रतिशत अभी भी खुले में त्रिपालों के नीचे या अस्थायी शैडों में पड़ा है।
 
भारतीय सेना गोला-बारूद और हथियारों की कमी से जूझ रही है, अत: अब समय आ गया है कि हम गोला-बारूद सुरक्षित रखने की विकसित देशों की सर्वश्रेष्ठ तकनीकों का गहराई से अध्ययन करें तथा ऐसे उपाय करें जिनसे भविष्य में ऐसी घटनाओं से प्राणहानि तथा राष्ट की इस मूल्यवान सम्पदा की क्षति न हो।
 

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