भारत में लगातार बढ़ रही है शराब पीने वाले लोगों की संख्या

Edited By ,Updated: 23 May, 2015 01:30 AM

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हालांकि शराब जहर है और शरीर पर इसके घातक दुष्प्रभावों के चलते विकसित देशों में शराबनोशी के खतरे को लेकर जागरूकता बढ़ रही है परंतु भारतवर्ष में लोग तेजी से इस जानलेवा लत के अधिक शिकार हो रहे हैं।

हालांकि शराब जहर है और शरीर पर इसके घातक दुष्प्रभावों के चलते विकसित देशों में शराबनोशी के खतरे को लेकर जागरूकता बढ़ रही है परंतु भारतवर्ष में लोग तेजी से इस जानलेवा लत के अधिक शिकार हो रहे हैं। 1992 से 2012 तक मात्र 20 वर्षों में ही भारत में इसके उपयोग में 55 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। पैरिस स्थित आर्गेनाइजेशन फार इकोनोमिक कोआप्रेशन एंड डिवैल्पमैंट (ओ.ई.सी.डी.) नामक एन.जी.ओ. द्वारा अमेरिका, चीन, जापान, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस व जर्मनी सहित 40 देशों में शराबनोशी के हानिकारक प्रभाव संबंधी अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है।

भारत अधिक शराबनोशी के मामले में केवल रूस और एस्टोनिया से ही पीछे है। जसलोक अस्पताल मुम्बई में जिगर सम्बन्धी रोगों की विशेषज्ञ  डा. आभा नागराल के अनुसार मृत्यु और सड़क दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप विकलांगता का पांचवां सबसे बड़ा कारण शराबनोशी ही है।
 
अधिक शराबनोशी करने वालों में नौकरी नहीं मिलने या नौकरी छूट जाने की समस्या से जूझ रहे लोग भी शामिल हैं और इस लत के शिकार बारोजगार लोगों में भी अपने काम से अनुपस्थित रहने जैसी समस्याएं आम पाई जाती हैं।
 
शराब की लत के शिकार लोगों की उत्पादकता शराब न पीने वाले लोगों से कम होती है। इन्हें शराब न पीने वालों की तुलना में वेतन या उजरत भी कम मिलती है। शराबनोशी के कारण भारत जैसे विकासशील देश के वर्करों की उत्पादकता घटने से वाॢषक आऊटपुट में कमी आ रही है
 
शराबनोशी से जन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव बारे बताया गया है कि भारत सहित कई देशों में कम उम्र में ही युवाओं में शराब का अत्यधिक सेवन करने की आदत लगातार बढ़ कर लत का रूप लेती जा रही है।
 
इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि शराबनोशी करने वाले युवाओं और महिलाओं की संख्या में काफी उछाल आया है और अब महिलाओं में भी शराब पीने की लत को एक ‘टैबू’ नहीं माना जाता। 
 
सेक्सरिया इंस्टीच्यूट आफ पब्लिक हैल्थ के निदेशक डा. पी.सी. गुप्ता ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के हवाले से बताया कि लगभग 30 प्रतिशत भारतीय शराब का सेवन करते हैं जिनमें से लगभग 13 प्रतिशत प्रतिदिन शराब पीने वाले हैं और इनमें से 50 प्रतिशत बुरी तरह शराबनोशी की लत के शिकार हैं। 
 
शराबनोशी से 200 से अधिक बीमारियां होती हैं जिनमें लिवर सिरोसिस, उच्च रक्तचाप, अवसाद, एनीमिया, गठिया, स्नायुरोग, मोटापा, हृदयरोग आदि के अलावा महिलाओं में गर्भपात, गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव और विभिन्न विकारों से पीड़ित शिशुओं का जन्म शामिल है।
 
यही नहीं शराबनोशी कैंसर का कारण भी बन रही है जो अमीर तथा गरीब दोनों को ही एक समान लपेट में ले रहा है। टाटा मैमोरियल अस्पताल के डॉ. पंकज चतुर्वेदी के अनुसार मुंह, जिगर, छाती आदि के कैंसर के मामलों के लिए भी शराब का सेवन उत्तरदायी माना जा रहा है।
 
शराब की कम मात्रा भी यदि लम्बे समय तक ली जाए तो व्यक्ति गंभीर रोगों का शिकार हो सकता है। शराब के नियमित सेवन से जिगर के तंतु इस हद तक क्षतिग्रस्त हो सकते हैं कि उनको दोबारा सुधारा नहीं जा सकता। 
 
इसके बावजूद बोतलों पर प्रमुखता से शराब के सेवन से होने वाली हानियों की चेतावनी प्रदॢशत किए बिना ही यह धड़ल्ले से बेची जा रही है तथा शराबनोशी के परिणामस्वरूप अपराधों में भी भारी वृद्धि हो रही है। 
 
चूंकि हमारे नेता तो शराब को नशा ही नहीं मानते इसलिए शराब एवं अन्य नशों के सेवन से होने वाली भारी हानियों के बावजूद हमारी राज्य सरकारों ने इस ओर से पूरी तरह आंखें मूंद रखी हैं। हमारी सरकारें इसकी बिक्री से होने वाली भारी-भरकम आय को खोना नहीं चाहतीं और इसलिए इसके उत्पादन में कमी की बजाय हर वर्ष इसकी वृद्धि को ही बढ़ावा दे रही हैं। 
 
वैसे तो ऊपरी तौर पर दिखावे के लिए हमारे नेतागण नशों पर रोक लगाने की बातें करते रहेंगे परंतु क्रियात्मक रूप से इसे समाप्त करने के लिए कुछ भी नहीं करेंगे और जब तक शराब तथा अन्य नशों पर रोक नहीं लगाई जाएगी तब तक परिवारों की तबाही और युवाओं की सेहत की बर्बादी का यह भयावह सिलसिला इसी तरह चलता रहेगा।  

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