‘मुख्य न्यायाधीश गवई पर हमला’ हुआ संविधान का अपमान!

Edited By Updated: 08 Oct, 2025 05:15 AM

attack on chief justice gavai  is an insult to the constitution

अदालतों को ‘न्याय के मंदिर’ माना जाता है तथा न्यायाधीशों को सम्मान की दृष्टिï से देखा जाता है और उनसे बिना किसी भेदभाव के सबके प्रति एक जैसा भाव रखते हुए न्याय करने की उम्मीद की जाती है, फिर भी अपवाद स्वरूप कुछ घटनाएं हुई हैं जिनमें न्यायाधीशों के...

अदालतों को ‘न्याय के मंदिर’ माना जाता है तथा न्यायाधीशों को सम्मान की दृष्टिï से देखा जाता है और उनसे बिना किसी भेदभाव के सबके प्रति एक जैसा भाव रखते हुए न्याय करने की उम्मीद की जाती है, फिर भी अपवाद स्वरूप कुछ घटनाएं हुई हैं जिनमें न्यायाधीशों के सम्मान को ठेस पहुंचाने की कोशिश कुछ लोगों ने की है। इसी वर्ष 21 अप्रैल को दिल्ली में ‘द्वारका कोर्ट’ की न्यायिक मैजिस्ट्रेट ‘शिवांगी मंगला’ ने कहा कि ‘‘जब एक अभियुक्त ने सुना कि मेरा फैसला उसके विरुद्ध आया है तो वह गुस्से में भड़क उठा और अदालत में अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने लगा और बोला, ‘‘तू है क्या चीज। तू बाहर मिल। देखते हैं तू कैसे जिंदा घर जाती है।’’ 

और अब 6 अक्तूबर को सुप्रीमकोर्ट में एक केस की सुनवाई के दौरान ‘राकेश किशोर’ नामक एक वकील ने मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई पर हमला करते हुए उनकी ओर जूता उछालने की कोशिश की परंतु श्री गवई ने संयम बनाए रखा और वकीलों से दलीलें जारी रखने का आग्रह करते हुए कहा,‘‘इन सब बातों से आप लोग विचलित मत हों। इन बातों का मुझ पर कोई असर नहीं पड़ता।’’ घटना के बाद वकील ‘राकेश किशोर’ ने कहा कि उसने जूता सिर्फ मुख्य न्यायाधीश की ओर उछाला था। इसके बाद कोर्ट रूम सिक्योरिटी वाले उसे डिटेन करके तुरन्त अदालत परिसर से बाहर ले गए तथा बाद में पुलिस ने उसे रिहा कर दिया। जब उसे बाहर ले जाया जा रहा था तो वह चिल्लाते हुए कह रहा था, ‘‘सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान।’’ वकील ‘राकेश किशोर’ का कहना था कि,‘‘सी.जे.आई. के भगवान विष्णु पर दिए बयान से मैं आहत हूं। उनकी टिप्पणी पर यह मेरी प्रतिक्रिया थी और जो हुआ मुझे उसका अफसोस नहीं।’’

उल्लेखनीय है कि यह मामला इसी वर्ष ‘खजुराहो मंदिर’ के भगवान विष्णु की मूर्ति पर दिए गए श्री गवई के बयान से जुड़ा है। एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान श्री गवई ने कहा था कि ‘‘यह पब्लिक इंट्रैस्ट लिटिगेशन है। अब देवता से ही पूछ लो कि क्या करें।’’ विशेषज्ञों का कहना है कि,‘‘यह हमला मुख्य न्यायाधीश पर नहीं बल्कि समूचे संविधान और देश की गरिमा पर था। देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पर इस तरह के हमले को हल्के में नहीं लिया जा सकता। अत: अदालत को इस संबंध में संज्ञान लेकर बनती कार्रवाई करनी चाहिए।’’ हालांकि ‘बार काऊंसिल आफ इंडिया’ ने वकील ‘राकेश किशोर’ का लाइसैंस तुरन्त प्रभाव से निलंबित कर दिया है, परन्तु इतना ही काफी नहीं है। वकील के विरुद्ध कठोरतम कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई वकील तो क्या कोई भी अन्य व्यक्ति इस तरह की धृष्टïता न कर पाए। किसी वकील के लिए तो यह बात और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इन्हीं में से बाद में न्यायाधीश बनते हैं। 

इस घटना की जहां चारों ओर आलोचना हो रही है, वहीं इसने राजनीतिक रंग लेना भी शुरू कर दिया है तथा ‘आम आदमी पार्टी’ ने नई दिल्ली में और ‘राकांपा (शरद पवार)’ ने मुम्बई एवं महाराष्टï्र के अन्य हिस्सों में प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने डा. भीम राव आम्बेडकर की तस्वीरेंं लेकर ‘जय भीम’ तथा ‘मुख्य न्यायाधीश का अपमान, नहीं सहेगा हिंदुस्तान’  के नारे लगाए। बहरहाल आरोपी वकील के विरुद्ध कार्रवाई करने या न करने का फैसला तो अदालत ही करेगी परन्तु यदि ऐसी घटनाएं होने लगें तब तो धर्म स्थलों की भांति अदालत कक्षों में भी जूते उतार कर ही प्रवेश करने की अनुमति देने की नौबत आ जाएगी। वकील ‘राकेश किशोर’ ने मुख्य न्यायाधीश पर हमला करके संविधान की गरिमा को भारी ठेस पहुंचाई है। बेशक ‘बार काऊंसिल आफ इंडिया’ ने उसका लाइसैंस तुरन्त प्रभाव से निलंबित कर दिया है, परंतु इतना ही काफी नहीं है। अन्य बार काऊंसिलों को भी उसके कृत्य की निंदा करनी चाहिए ताकि इस तरह के गलत आचरण को एक परम्परा बनने से पहले ही दबा दिया जाए।—विजय कुमार

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