‘पंजाब कांग्रेस सरकार में धमाका’ मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह ने दिया इस्तीफा

Edited By ,Updated: 19 Sep, 2021 03:18 AM

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पंजाब के मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र सिंह द्वारा 2 वर्ष पूर्व नवजोत सिंह सिद्धू से महत्वपूर्ण मंत्रालय छीन लेने पर सिद्धू ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देने के बाद उनके विरुद्ध मोर्चा खोल रखा था, जिसमें कुछ अन्य मंत्री व विधायक भी शामिल हो गए और इस वर्ष...

पंजाब के मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र सिंह द्वारा 2 वर्ष पूर्व नवजोत सिंह सिद्धू से महत्वपूर्ण मंत्रालय छीन लेने पर सिद्धू ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देने के बाद उनके विरुद्ध मोर्चा खोल रखा था, जिसमें कुछ अन्य मंत्री व विधायक भी शामिल हो गए और इस वर्ष मई के बाद यह टकराव बेहद बढ़ गया था। कांग्रेस आलाकमान द्वारा गठित मल्लिकार्जुन समिति ने पंजाब के अनेक नेताओं से बातचीत की तथा अमरेंद्र सिंह व नवजोत सिद्धू सहित कांग्रेसी नेताओं की दिल्ली में राहुल व प्रियंका गांधी से 3 मुलाकातों के बावजूद इसे सुलझाने में विफल रही। इस माहौल के बीच 18 जुलाई को कांग्रेस हाईकमान द्वारा नवजोत सिंह सिद्धू को अध्यक्ष बनाने तथा पंजाब कांग्रेस के 4 कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने की घोषणा करते हुए कैप्टन अमरेंद्र सिंह को सरकार संभालने को कहा गया। 

हालांकि अमरेन्द्र सिंह ने नवजोत सिद्धू से सार्वजनिक माफी की मांग करते हुए उसकी ताजपोशी में शामिल नहीं होने की बात कही परंतु एकाएक 23 जुलाई को उन्होंने पंजाब भवन में ब्रेकफास्ट का आयोजन करके सिद्धू व अन्य नेताओं को आमंत्रित किया और सिद्धू के माफी न मांगने के बावजूद उनके ताजपोशी समारोह में शामिल हुए। इससे इस विवाद का अंत होता दिखाई दिया परंतु यह अनुमान गलत निकला तथा दोनों के बीच समय-समय पर नाराजगी सामने आती रही और दोनों अपनी-अपनी शिकायतें लेकर दिल्ली में आलाकमान से गुहार लगाते रहे और एक-दूसरे पर आरोप लगाना जारी रहा। इसी कारण कुछ समय से नवजोत सिंह सिद्धू के कुछ समर्थक विधायकों द्वारा नए मुख्यमंत्री की मांग की जा रही थी। गत माह 4 मंत्रियों और अनेक विधायकों ने यहां तक कह दिया कि ‘‘हमें अब यह विश्वास नहीं है कि अमरेंद्र सिंह में अधूरे वायदे पूरे करने की क्षमता है।’’ 

अब जबकि राज्य चुनावों में 6 महीने से भी कम समय बचा है, पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत ने 17 सितम्बर रात पौने बारह बजे ट्वीट करके 18 सितम्बर शाम 5 बजे पंजाब कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाए जाने की सूचना सांझी करके धमाका कर दिया। इस पर नाराजगी जताते हुए कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने सोनिया गांधी से फोन पर बात करके शिकायत की कि विधायक दल की बैठक उन्हें विश्वास में लिए बिना बुलाई गई है और त्यागपत्र दे देने के अपने निर्णय से अवगत करवाते हुए उन्होंने कहा कि, ‘‘यह तीसरी बार हो रहा है और मैं इस तरह के अपमान के साथ पार्टी में नहीं रह सकता।’’ लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने उनकी शिकायत को नजरअंदाज कर दिया और सोनिया गांधी ने कहा कि, ‘‘आई एम सॉरी अमरेंद्र’’ और इसके बाद उन्होंने त्यागपत्र दे दिया और इसके साथ ही अगले मुख्यमंत्री के बारे में अटकलें लगाई जाने लगीं। 

अमरेंद्र सिंह ने विधायक दल की बैठक से पूर्व दोपहर 2 बजे अपने समर्थक विधायकों की बैठक बुलाने की घोषणा की थी पर कांग्रेस हाईकमान ने विधायकों को अमरेंद्र सिंह की बुलाई बैठक में जाने से मना कर दिया व कहा कि अमरेंद्र सिंह को जो बात कहनी है वह शाम 5 बजे विधायक दल की बैठक में ही कहें। बताया जाता है कि इस बैठक में दर्जन भर के करीब विधायकों ने भाग लिया। बहरहाल अपने फैसले पर अडिग रहते हुए कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने 5 बजे विधायक दल की बैठक के पूर्व साढ़े 4 बजे राज्यपाल से भेंट करके उन्हें अपना त्यागपत्र सौंप दिया और बाद में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा : 

‘‘2 महीनों में 3 बार विधायकों की बैठक बुला कर मेरा अपमान किया गया जिससे मुझे लगता है कि पार्टी नेतृत्व में मेरे प्रति कोई संदेह का अंश (एलीमैंट आफ डाऊट) है। लिहाजा मैं अपने पद से इस्तीफा दे रहा हूं, हाईकमान जिसे चाहे मुख्यमंत्री बना दे।’’ उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें राजनीति में 52 साल हो गए हैं और इस अवधि के दौरान वह साढ़े नौ वर्ष राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा, ‘‘मैं कांग्रेस में हूं और अपने साथियों से बात करने के बाद ही भविष्य की रणनीति तय करूंगा।’’  इस पृष्ठभूमि में अमरेंद्र सिंह के सामने यही विकल्प बचे थे कि या तो वह पद से त्यागपत्र दे दें, या अपने पसंदीदा नेता को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करवा दें या फिर पार्टी के विरुद्ध विद्रोह कर दें। उन्होंने अपनी समझ द्वारा पहला विकल्प चुना। बाद में जहां अमरेंद्र सिंह ने नवजोत सिद्धू की पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष बाजवा से दोस्ती का उल्लेख करते हुए कहा कि सिद्धू देश के लिए विनाशकारी सिद्ध होंगे वहीं विधायक दल की बैठक में भावी मुख्यमंत्री के चुनाव का निर्णय सोनिया गांधी पर छोड़ दिया गया। 

इस घटनाक्रम का परिणाम जो भी हो एक बात तो स्पष्ट है कि चुनावों से ठीक पहले इतनी अधिक अंदरूनी लड़ाई कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा झटका सिद्ध हो सकती है। हाईकमान के इस फैसले ने विरोधी दलों को कांग्रेस की आलोचना का खुला मौका दे दिया है और उनमें खुशी की लहर दौड़ गई है। यह देखना अब दिलचस्प होगा कि सोनिया गांधी किसे मुख्यमंत्री के रूप में चुनती हैं जिसमें सुनील जाखड़ का नाम सबसे ऊपर बताया जा रहा है। इस बीच 19 सितम्बर को भी 11 बजे सुबह कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुला ली गई है जिसमें नए मुख्यमंत्री का नाम घोषित करने के साथ-साथ मंत्रियों की सूची भी रखी जा सकती है। बहरहाल, कोई भी मुख्यमंत्री बने, अब कैप्टन अमरेंद्र सिंह को भी यह फैसला करना होगा कि उन्होंने राजनीति या कांग्रेस में रहना है या नहीं या नई पार्टी बनानी है या किसी पार्टी से गठजोड़ करना है जिसका जवाब भविष्य के गर्भ में है।-विजय कुमार

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