दलाई लामा के अगले उत्तराधिकारी को लेकर चीन की अड़ंगेबाजी

Edited By Updated: 07 Jul, 2025 05:29 AM

china s obstruction over the next successor of the dalai lama

बौद्धों के सर्वोच्च धार्मिक गुरु दलाई लामा के अनुयायी केवल चीन, मंगोलिया, नेपाल, म्यांमार तथा दक्षिण एशिया के देशों तक ही सीमित नहीं बल्कि इंडोनेशिया व इसके आसपास के देशों के साथ-साथ अमरीका में भी मौजूद हैं। दलाई लामा एक ऐसे आध्यात्मिक नेता हैं...

बौद्धों के सर्वोच्च धार्मिक गुरु दलाई लामा के अनुयायी केवल चीन, मंगोलिया, नेपाल, म्यांमार तथा दक्षिण एशिया के देशों तक ही सीमित नहीं बल्कि इंडोनेशिया व इसके आसपास के देशों के साथ-साथ अमरीका में भी मौजूद हैं। दलाई लामा एक ऐसे आध्यात्मिक नेता हैं जिनका कहना लोगों के लिए मायने रखता है। वर्तमान दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर इन दिनों चर्चा जोरों पर है और इस मामले में धमकी देने पर उतारू चीन ने भारत सरकार से तिब्बत से जुड़े मुद्दों पर सावधानी बरतने के लिए कहा है। 

इसी संदर्भ में अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू जो स्वयं अरुणाचल से संबंध रखने वाले बौद्ध हैं, ने कहा है कि भारत को इस विषय में कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है क्योंकि अपने उत्तराधिकारी का फैसला वर्तमान दलाई लामा ही करेंगे। परन्तुु प्रश्र यह है कि आखिर यह मुद्दा उठ क्यों रहा है? इसका पहला कारण तो यह है कि जब चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया तो दलाई लामा भारत में आ गए थे और भारत से ही अपनी गतिविधियां चला रहे हैं। दूसरी ओर हालांकि चीन में किसी भी धर्म के पालन की अनुमति नहीं है, फिर भी वे अपने देश में बौद्ध धर्म को रोक नहीं पाए  तथा वहां बौद्ध धर्म से जुड़े स्थान मौजूद हैं। हालांकि चीन ने तिब्बत पर अपना सम्पूर्ण कंट्रोल कर रखा है परन्तु अभी भी वर्तमान दलाई लामा के रूप में वहां ऐसी ताकत मौजूद है जिस पर चीन का जोर नहीं चला और दलाई लामा निर्वासन में रहने के बावजूद दुनिया भर के बौद्धों पर अपना प्रभाव रखते हैं। 

इसी 2 जुलाई को दलाई लामा ने एक बयान जारी करके कहा कि दलाई लामा की संस्था उनकी मृत्यु के बाद भी जारी रहेगी और उनके उत्तराधिकारी को भी वही नैतिक और कूटनीतिक अधिकार विरासत में मिलेंगे जो वर्तमान दलाई लामा को प्राप्त हैं। जहां तक चीन का संबंध है, दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर उसके नियंत्रण से दशकों से प्रतिरोध का प्रतीक बने तिब्बत पर चीन के द्वारा कब्जा करने का औचित्य सिद्ध हो जाएगा। दलाई लामा ने यह भी घोषणा की है कि नए दलाई लामा का जन्म स्वतंत्र विश्व में होगा। उनके इस कथन के पीछे निहित अर्थ यह है कि अगला दलाई लामा चीन तथा तिब्बत की सीमाओं से बाहर तिब्बती निर्वासितों या विशाल तिब्बती बौद्ध समुदाय में से होगा। 

चीन द्वारा दलाई लामा के चयन का प्रयास 1792 तक किंग राजवंश के मंचु शासकों तक जाता है तथा सांझी सहमति से दलाई लामा के उत्तराधिकारी की संभावना 1995 में समाप्त हो गई जब चीन ने तिब्बत में दूसरे सबसे बड़े धार्मिक गुरु 10वें पंचेन लामा के पुनर्जन्म की परम्परा को ध्वस्त करके 11वें वैध पंचेन लामा का उस समय अपहरण कर लिया जब वह 6 वर्ष के थे। तभी से वह परिवार सहित लापता हैं और इस समय 30 वर्ष के हो चुके होंगे। इस रुझान को कायम रखते हुए चीन सरकार द्वारा अपने खुद के उम्मीदवार को 15वां दलाई लामा नियुक्त करने की संभावना है। यदि कहीं चीन पर आॢथक दृष्टिï से निर्भर मंगोलिया या नेपाल में दलाई लामा के पुनर्जन्म का पता चला तो उन पर चीन द्वारा नियुक्त किए हुए उम्मीदवार को मान्यता देने के लिए भारी दबाव डाला जाएगा।

तिब्बत के बाद सबसे बड़ा बौद्ध मठ  ‘तवांग मोनैस्ट्री’ अरुणाचल प्रदेश में है। इस राज्य की सीमाएं चीन, भूटान और म्यांमार से लगने के कारण यह अत्यंत सामरिक महत्व का क्षेत्र है। चीन बलपूर्वक अरुणाचल प्रदेश, जहां दलाई लामा का अत्यधिक प्रभाव है, को दक्षिण तिब्बत बताता है और उसका कहना है कि अरुणाचल ऐतिहासिक दृष्टिï से तिब्बत का हिस्सा होने के कारण चीन का है। दूसरी ओर दलाई लामा को चीन एक अलगाववादी समझता है तथा तिब्बत को अपने कंट्रोल में रखना चाहता है। वह दलाई लामा और इस इलाके में उनके विशाल अनुयायी वर्ग को अपना मकसद पूरा होने के रास्ते में बाधा समझता है।  चीन ने जब तिब्बत को कब्जे में लिया तो उसके शासकों ने तिब्बतियों को दोबारा प्रशिक्षण के लिए चीन भेज दिया और वहां अपने सैनिक तैनात कर दिए। इसके परिणामस्वरूप अब तिब्बत में असली तिब्बती कम रह गए हैं परंतु वे चीन में जहां कहीं भी हैं, भले ही ऊपर से  जाहिर न करें परंतु अंदर से वे दलाई लामा के ही अनुयायी हैं।

जहां तक चीन सरकार से तुलना का प्रश्र है दलाई लामा एक समानांतर आध्यात्मिक नेता और शक्तिशाली व्यक्ति हैं। इसलिए चीन चाह रहा है कि दलाई लामा की मौत के बाद कोई और दलाई लामा न आ सके और यदि आए तो वह चीन से ही हो ताकि चीन सरकार उस पर कंट्रोल कर सके। इसलिए अब भारत को धर्मनिरपेक्षता के रास्ते पर चलते हुए चीन, जो भारत से जूझने के मौके तलाश रहा है, से सतर्क रहना होगा। 

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