भारत में ‘डिप्रैशन’ से 300 लोग कर रहे प्रतिदिन ‘आत्महत्या’

Edited By ,Updated: 19 Jun, 2020 10:29 AM

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फिल्म और टी.वी. अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद देश में बड़ी संख्या में हो रही आत्महत्याओं की ओर लोगों का ध्यान गया है। सुशांत की पूर्व मैनेजर दिशा ने भी कुछ दिन पूर्व आत्महत्या कर ली थी।

फिल्म और टी.वी. अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद देश में बड़ी संख्या में हो रही आत्महत्याओं की ओर लोगों का ध्यान गया है। सुशांत की पूर्व मैनेजर दिशा ने भी कुछ दिन पूर्व आत्महत्या कर ली थी। इनके अलावा आत्महत्या कर चुकी टी.वी. और फिल्मों से जुड़ी हस्तियों में सेजल शर्मा, राहुल दीक्षित, जिया खान, कुलजीत रंधावा, कुशल पंजाबी, शिखा जोशी, विजय लक्ष्मी वाडलापति, मनमीत ग्रेवाल, प्रेक्षा मेहता, चांदना वी.के., तमिल अभिनेता श्रीधर व उनकी बहन जया कल्याणी आदि शामिल हैं। 

इनमें से किसी ने आॢथक तंगी और काम न मिलने के कारण, किसी ने ब्वॉयफ्रैंड द्वारा शादी से इंकार करने और डिप्रैशन, अकेलेपन, अपने सपने टूटने आदि के कारण अपनी जिंदगी की जंग हार दी। परन्तु केवल ग्लैमर जगत ही इस समस्या का शिकार नहीं है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-16) तथा राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार देश में कम से कम 15 प्रतिशत भारतीय किसी न किसी मानसिक समस्या से ग्रस्त हैं जो मुख्यत: आत्महत्या का कारण बनती है तथा प्रतिदिन कम से कम 300 लोग विभिन्न कारणों से आत्महत्या करते हैं। प्रत्येक 20 भारतीयों में कम से कम एक भारतीय डिप्रैशन का शिकार है या हो चुका है परन्तु हमारे यहां लोगों को इससे बाहर निकालने और उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति से रोकने संबंधी कोई सक्रिय कार्यक्रम नहीं है और सरकारें इस समस्या की ओर से उदासीन हैं।  

इसमें सबसे बड़ी समस्या लोगों द्वारा अपनी गिर रही मनोदशा की ओर  ध्यान न देना और मनोचिकित्सकों से परामर्श लेने में संकोच करना है। हालांकि हर सैलीब्रिटी द्वारा आत्महत्या के बाद इस बारे लोगों में जागरूकता पैदा करने की बात उठती है परन्तु उस पर अमल नहीं होता।  अस्पतालों में मनोचिकित्सकों की भारी कमी है तथा इनकी मांग व उपलब्धता में बहुत अंतर है। इस पर ङ्क्षचता व्यक्त करते हुए 7 अगस्त, 2019 को मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूॢत एच.एल. दत्तू ने कहा कि : ‘‘देश में 13,500 मनोचिकित्सकों की आवश्यकता है परन्तु इनकी संख्या केवल 3827 है। इस क्षेत्र में अर्धचिकित्सा स्टाफ की भी भारी कमी है।’’  स्थिति की गंभीरता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हरियाणा के सरकारी अस्पतालों में मात्र 20 तथा हिमाचल में 19 मनोचिकित्सक ही उपलब्ध हैं। अन्य राज्यों की स्थिति भी लगभग ऐसी ही है। सरकारों की संवेदनहीनता भी इन आत्महत्याओं के पीछे एक बड़ा कारण है जो अस्पतालों में मनोचिकित्सकों की भर्ती की ओर ध्यान नहीं दे रही हैं, अत: देश में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मनोचिकित्सकों की यथाशीघ्र भर्ती करके इनकी कमी पूरी करनी चाहिए ताकि आत्महत्याएं रुकें।    —विजय कुमार

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