देश पर जान न्यौछावर करने वाले वीरों की सहायता के लिए बढ़े चंद हाथ

Edited By ,Updated: 14 May, 2017 11:07 PM

increased number of hands to help the heroes who give life to the country

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस.) के अधिकारियों को सरकार के प्रशासनिक ढांचे की रीढ़.....

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस.) के अधिकारियों को सरकार के प्रशासनिक ढांचे की रीढ़ माना जाता है जो देश की नीतियों के निर्माण और उन्हें अमली जामा पहनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अपनी इसी भूमिका को महसूस करते हुए ‘इंडियन सिविल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (सैंट्रल) एसोसिएशन’ के सदस्य एक प्रस्ताव द्वारा माओवादियों के हमलों, आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों या कानून व्यवस्था की बहाली के कत्र्तव्य पालन के दौरान अपनी जान गंवाने वाले सुरक्षा बलों के परिवारों की सहायता करने के लिए आगे आए हैं। 

एसोसिएशन के सचिव संजय भूसरेड्डी के अनुसार ये अधिकारी जिनमें सब-डिवीजनल मैजिस्ट्रेट, एडीशनल जिला मैजिस्ट्रेट या जिला मैजिस्ट्रेट, आदि शामिल हैं, एक्शन में मारे गए सुरक्षा बलों के जवानों के परिवार को गोद लेकर कम से कम 5 से 10 वर्षों तक उन्हें सहायता प्रदान करेंगे, चाहे वे पुलिस से संबंध रखते हों या सेना के अद्र्धसैनिक बलों से। ये अधिकारी परिवार को प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता न देकर उन्हें अन्य तरीकों से सहायता देंगे जिसमें मृतक सुरक्षा कर्मियों के परिवार के सदस्यों को केंद्र और राज्य सरकारों में फंसे हुए उनकी पैंशन, ग्रैच्युटी आदि के भी बकाए दिलवाना यकीनी बनाने तथा अन्य सेवाओं जैसे कि पैट्रोल पम्प, नौकरी आदि दिलवाने में सहायता करना भी शामिल होगा। एसोसिएशन के सदस्य इन परिवारों के बच्चों को स्कूलों में प्रवेश आदि दिलवाने में भी सहायता करेंगे। 

वे इस बात पर नजर रखेंगे कि उनके द्वारा अपनाए गए शहीदों के परिवारों को संबंधित सरकारों से उनके समूचे बकाए आदि मिल गए हैं या नहीं। शुरू में आई.ए.एस. के 2012 से 2015 तक के पिछले 4 बैचों के 700 युवा अधिकारी अपनी तैनाती के इलाके में कम से कम एक शहीद परिवार को अपनाएंगे। श्री भूसरैड्डïी के अनुसार, ‘‘वरिष्ठï अधिकारी या राज्यों की सिविल सेवाओं से संबंध रखने वाले अधिकारी भी स्वैच्छिक रूप से ऐसे परिवारों को गोद ले सकते हैं।’’ 

एसोसिएशन के इसी आह्वान पर आंध्र प्रदेश में आदिलाबाद के कलैक्टर ज्योति बुध प्रकाश ने आगे आकर एक शहीद सैनिक के परिवार को गोद लिया है। इसके लिए उन्होंने 24 दिसम्बर 2015 को सियाचिन में आप्रेशन मेघदूत में शहीद हुए संतोष कुमार के परिवार को चुना है। वह कुंवारे थे और अपने पीछे अपनी मां और भाई को छोड़ गए हैं। शहीद के परिवार के जिले में ही तैनात होने के कारण ज्योति बुध प्रकाश के पास ही यह केस था और उन्होंने न सिर्फ परिवार को क्षतिपूर्ति देने के लिए उनकी फाइल खुलवाई है बल्कि शहीद के भाई को भी पंचायत राज विभाग निर्मल में नौकरी दिलवा दी है। उल्लेखनीय है कि तेलंगाना के जिलों के पुनर्गठन के बाद आदिलाबाद को आसिफाबाद, निर्मल और मनचेरिल नामक तीन जिलों में बांट दिया गया है और अब संतोष कुमार की मां आसिफाबाद में रहती हैं।

ज्योति बुध प्रकाश के अनुसार सबसे पहले उन्होंने यह पता किया कि अपने कमाऊ सदस्य को खोने के बाद परिवार की क्या हालत है। हम जाने वाले की कमी तो पूरी नहीं कर सकते परंतु कम से कम उनके परिवार के साथ जुड़ कर उनके घावों पर राहत का मरहम तो लगा ही सकते हैं। ज्योति बुध प्रकाश के अनुसार देखने में भले ही यह बड़ी छोटी-सी बात लगे परंतु अपनी क्षति से जूझ रहे परिवारों के लिए यह बहुत बड़ी बात है तथा आई.ए.एस. एसोसिएशन ने अपने इस पग द्वारा यह जताने की कोशिश की है कि हमें अपने भाई-बंधुओं की हमेशा सहायता करनी चाहिए। 

ज्योति बुध प्रकाश ने जहां शहीद संतोष कुमार के परिवार तथा हिमाचल के आई.ए.एस. दम्पति यूनुस खान और अंजुम आरा ने शहीद परमजीत सिंह की छोटी बेटी तथा अमृतसर के सांसद गुरजीत सिंह औजला ने उनकी बड़ी बेटी के पालन-पोषण का जिम्मा लिया है, वहीं क्रिकेटर गौतम गंभीर के फाऊंडेशन ने छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में शहीद होने वाले सी.आर.पी.एफ. के 25 जवानों के बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाने की घोषणा की है। निश्चय ही इनकी परदुख कातरता की भावना प्रशंसनीय है। आशा करनी चाहिए कि और संस्थाएं भी आगे आएंगी।  

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