चीन के साथ भारत का व्यापार असंतुलन

Edited By Updated: 24 Nov, 2025 05:14 AM

india s trade imbalance with china

इस वित्तीय वर्ष के पहले 7 महीनों में चीन को भारत से निर्यात में लगातार वृद्धि होती रही जो अक्तूबर में 42 प्रतिशत की वृद्धि के साथ सर्वोच्च शिखर पर पहुंच गया। इससे भारत को भारी भरकम अमरीकी टैरिफ का सामना करने में कुछ सहायता मिली है। एक वर्ष पहले की...

इस वित्तीय वर्ष के पहले 7 महीनों में चीन को भारत से निर्यात में लगातार वृद्धि होती रही जो अक्तूबर में 42 प्रतिशत की वृद्धि के साथ सर्वोच्च शिखर पर पहुंच गया। इससे भारत को भारी भरकम अमरीकी टैरिफ का सामना करने में कुछ सहायता मिली है। एक वर्ष पहले की तुलना में भारत से चीन को हमारे निर्यात में 24.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो अप्रैल-अक्तूबर के बीच 10.03 बिलियन डालर पर पहुंच गया और इसमें पैट्रोलियम उत्पादों, दूरसंचार उपकरणों और समुद्री उत्पादों की भागीदारी सर्वाधिक रही। चूंकि इस समय विश्वव्यापी मांग अनिश्चित बनी हुई है तथा अनेक महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं को अपने निर्यात क्षेत्र में मंदी का सामना करना पड़ रहा है, इस लिहाज से यह अवधि भारत-चीन व्यापार सम्बन्धों के सर्वाधिक लचीले दौर में से एक थी। इस अवधि के दौरान भारत का सर्वाधिक आयात 73.99 बिलियन डालर भी चीन से ही हुआ। 

उल्लेखनीय है कि अप्रैल-जुलाई 2025-26 की अवधि में भारत का निर्यात 19.97 प्रतिशत बढ़कर 5.75 बिलियन  डालर हो गया जबकि आयात 13.06 प्रतिशत बढ़कर 40.65 बिलियन डालर हो गया। वर्ष 2024-25 में भारत ने कुल 14.25 बिलियन डालर का सामान निर्यात किया जबकि 113.5 बिलियन डालर का सामान आयात किया। इससे (आयात और निर्यात में अंतर) व्यापार घाटा जो 2003-04 में  1.1 बिलियन डालर था, वह 2024-25 में बढ़कर 99.2 बिलियन डालर हो गया।  

पिछले वित्तीय वर्ष में चीन का व्यापार घाटा भारत के कुल व्यापार असंतुलन (283 बिलियन) का 35 प्रतिशत था और 2023-24 में अंतर 85.1 बिलियन डालर का रहा। थिंक टैंक ‘जी.टी.आर.आई’. के अनुसार चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा इसलिए चिंताजनक है क्योंकि उद्योगों के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में चीन भारत पर हावी है। इसमें दवाओं और इलैक्ट्रानिक्स के सामान से लेकर निर्माण सामग्री, नवीकरण योग्य ऊर्जा और उपभोक्ता सामग्रियां शामिल हैं। ‘जी.टी.आर.आई.’ विश्लेषण के अनुसार एंटीबायोटिक दवाओं के मामले में भारत की आवश्यकता के 97.7 प्रतिशत सामान की आपूर्ति, इलैक्ट्रानिक्स के 96.8 प्रतिशत सामान की आपूॢत और नवीकरण योग्य ऊर्जा के मामले में सौर पैनलों की 82.7 प्रतिशत आवश्यकता की पूर्ति तथा लिथियम इयोन बैटरियों की 75.2 प्रतिशत आवश्यकता की आपूर्ति चीन करता है। यहां तक कि लैपटाप (हिस्सेदारी 80.5 प्रतिशत), कशीदाकारी की मशीनरी (91.4 प्रतिशत) तथा विस्कोस यार्न (98.9 प्रतिशत) की आपूर्ति चीन से ही होती है। 

जी.टी.आर.आई. के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का कहना है कि बीजिंग से सामान पर आयात पर अत्यधिक निर्भरता से चीन को भारत पर वरीयता मिलती है और राजनीतिक तनाव के मौके पर चीन अपनी सप्लाई चेन को भारत के विरुद्ध एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। भारत द्वारा चीन को निर्यात में कमी के परिणामस्वरूप यह असंतुलन बढ़ता जा रहा है।  दो दशक पूर्व भारत द्वारा चीन से आयात के मुकाबले में 42 प्रतिशत सामान निर्यात किया जाता था जो अब घटकर सिर्फ 11.2 प्रतिशत रह गया है। परंतु वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार चीन से आयात की जाने वाली अधिकांश वस्तुएं कच्चा माल ही हैं, जिनमें इलैक्ट्रानिक पुर्जे, मोबाइल फोन के पुर्जे, मशीनरी और दवाओं के सामान में प्रयुक्त होने वाले पदार्थ शामिल हैं। इनसे बनाए गए (फिनिश्ड) उत्पादों का निर्यात किया जाता है और इनका आयात भी होता है। इन श्रेणियों में भारत की निर्भरता मुख्यत: आपूर्ति और मांग में अंतर का परिणाम है। 

हालांकि भारत सरकार ने 14 से अधिक क्षेत्रों में घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन योजनाएं जारी की हैं और सरकार भारतीय व्यापारिक प्रतिष्ठानों को वैकल्पिक आपूर्तिकत्र्ताओं की तलाश को बढ़ावा दे रही है ताकि किसी वस्तु की आपूर्ति के लिए किसी को एक स्रोत पर ही निर्भर न रहना पड़े।  इसके साथ ही वाणिज्य मंत्रालय द्वारा नियमित रूप से विदेशों से किए जाने वाले आयात में वृद्धि पर भी नजर रखी जा रही है तथा ‘डायरैक्टोरेट जनरल आफ ट्रेड रैमेडीज’ को अनुचित व्यापार आचरण करने वालों के विरुद्ध उचित कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया है। जहां तक चीन के साथ व्यापार असंतुलन से भारत पर पडऩे वाले प्रभाव का संबंध है इससे हमारे विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव पड़ता है, विदेशी सप्लायरों पर निर्भरता बढ़ती है और सस्ते आयात से स्थानीय निर्माताओं के हितों को क्षति पहुंचती है जिससे मुद्रा का अवमूल्यन होने के कारण आयातित वस्तुओं की लागत में वृद्धि होती है। महंगाई बढ़ती है और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विदेशी आयात पर निर्भरता भारत के दीर्घकालिक औद्योगिक विकास में रुकावट बनती है। 

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