‘जस्टिस कर्णन जेल में’ न्याय पालिका ने सिद्ध की निष्पक्षता

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Jun, 2017 10:42 PM

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आज संसद और विधानसभाओं में कोई काम न होने के कारण ये क्रियात्मक ....

आज संसद और विधानसभाओं में कोई काम न होने के कारण ये क्रियात्मक रूप से लगभग ठप्प होकर रह गई हैं जिस कारण कार्यपालिका तथा विधायिका निष्क्रिय हो चुकी हैं। इसी कारण प्रशासन में चुस्ती लाने के लिए सरकारें ताबड़तोड़ अपने अधिकारियों के तबादले कर रही हैं जो हाल ही में उत्तर प्रदेश, पंजाब व केंद्र में थोक तबादलों से स्पष्ट है। ऐसे में केवल न्याय पालिका और मीडिया ही जनहित से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकारों को झिंझोड़ रहे हैं परंतु अब न्याय पालिका में भी अनेक त्रुटियां घर करने लगी हैं और इससे जुड़ी शीर्ष हस्तियों के साथ अनावश्यक विवाद जुडऩे लगे हैं। 

नवीनतम मामला कलकता हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस सी.एस. कर्णन का है जिन्होंने 2011 में मद्रास हाईकोर्ट का स्थायी जज नियुक्त होते ही आरोप लगा दिया था कि दलित होने के चलते दूसरे जज इनका उत्पीडऩ करते हैं। इसके बाद तो उन पर अपने साथी जजों को धमकाने व उनसे दुव्र्यवहार करने के आरोप लगते चले गए। इनके 21 साथी जजों ने सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस को लिखित रूप में इनके विरुद्ध एक शिकायत भी भेजी। बहरहाल, 2016 में जब जस्टिस कर्णन ने अपने ही चीफ जस्टिस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए तो इसके बाद सुप्रीमकोर्ट ने उन्हें मद्रास से कलकत्ता हाईकोर्ट ट्रांसफर करने का आदेश जारी कर दिया परंतु जस्टिस कर्णन ने अपने तबादले के आदेश पर स्वयं ही रोक लगा दी। बाद में चीफ जस्टिस टी.एस. ठाकुर के हस्तक्षेप पर कर्णन ने न सिर्फ हताशा में किए अपने इस आचरण के लिए माफी मांगी बल्कि तबादले का आदेश स्वीकार करके कलकत्ता हाईकोर्ट में ज्वाइन भी कर लिया। 

परंतु 23 जनवरी, 2017 को जब उन्होंने राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर मद्रास हाईकोर्ट के 20 जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए उनके विरुद्ध जांच की मांग कर दी तो सुप्रीमकोर्ट ने उन्हें अवमानना का नोटिस जारी करके 7 जजों की पीठ के समक्ष पेश होने का आदेश दिया। भारतीय न्याय पालिका में हाईकोर्ट के सेवारत जज को अवमानना के मामले में सुप्रीमकोर्ट में पेश होने का आदेश देने का यह पहला मौका था। बेशक सुप्रीमकोर्ट द्वारा वारंट जारी होने के बाद वह पेश तो हुए परंतु उन्होंने 14 अप्रैल को सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर सहित 7 जजों को विभिन्न आरोपों में दोषी बनाकर उनके विरुद्ध न सिर्फ सम्मन जारी किए बल्कि अपने समक्ष पेश होने का आदेश दिया और खेहर सहित 7 जजों की विदेश यात्रा पर ‘प्रतिबंध’ लगाने का ‘आदेश’ भी जारी कर दिया। 

इस पर सुप्रीमकोर्ट ने जस्टिस कर्णन की मानसिक जांच का आदेश दिया पर कर्णन ने इससे इंकार करते हुए उलटे 8 मई, 2017 को जस्टिस खेहर सहित सुप्रीमकोर्ट के 7 जजों को 5-5 साल की ‘कड़ी कैद’ की सजा भी सुना दी। इस पर 9 मई को जब सुप्रीमकोर्ट के 7 जजों की पीठ ने जस्टिस कर्णन को अवमानना का दोषी करार देते हुए उन्हें 6 महीने कैद की सजा सुना दी तो इसके तुरंत बाद वह ‘लापता’ हो गए और तभी से फरार चल रहे थे। इसी बीच 12 जून को वह रिटायर भी हो गए और अंतत: 20 जून को उन्हें बंगाल की सी.आई.डी. कोयम्बटूर से गिरफ्तार करके 21 जून को कोलकाता ले आई जहां उन्हें हाईप्रोफाइल प्रैजीडैंसी जेल में रखा गया है।

जेल में जाते ही कर्णन ने छाती में दर्द की शिकायत कर दी जिसके बाद उन्हें शाम को अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहां जांच के दौरान सब कुछ ठीक निकलने पर उन्हें 2 घंटे बाद वापस जेल में पहुंचा दिया गया। बेशक जस्टिस कर्णन की गिरफ्तारी और उन्हें जेल भेजने के सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद यह मामला समाप्त हो गया लगता है परंतु इससे एक बार फिर न्याय पालिका की वरीयता सिद्ध हो गई है और यह भी सिद्ध हो गया है कि न्याय पालिका की नजर में सब बराबर हैं। आज के अशांत राजनीतिक वातावरण में लोगों को न्याय पालिका से ही उम्मीद बची है परंतु अपनी तरह के इस पहले मामले ने धीमी गति से ही सही परंतु न्याय पालिका में प्रवेश करती जा रही स्वेच्छाचारिता की बुराई की ओर इंगित किया है जिसका अनुकरणीय ढंग से निपटारा करके न्याय पालिका ने अपनी निष्पक्षता और वरीयता कायम रखी है।—विजय कुमार    

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