महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश सरकारें ‘आंदोलनकारी किसानों’ की समस्याएं हल करें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Jun, 2017 10:30 PM

maharashtra and madhya pradesh solve problems of agitating farmers

सिवाय मुट्ठी भर समृद्ध किसानों के देश के अधिकांश किसानों की आर्थिक स्थिति अधिक अच्छी.....

सिवाय मुट्ठी भर समृद्ध किसानों के देश के अधिकांश किसानों की आर्थिक स्थिति अधिक अच्छी नहीं जिस कारण विभिन्न राज्यों में भारी आर्थिक बोझ तले दबे किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। 

इसी क्रम में जहां हाल ही में किसानों का बोझ घटाने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने किसानों के लिए कर्जा माफी की घोषणा की है वहीं दो भाजपा शासित राज्यों मध्यप्रदेश औरमहाराष्ट्र की सरकारों द्वारा किसानों की कर्ज माफी का वायदा पूरा न करने के विरुद्ध तथा अपनी 20 सूत्रीय मांगों पर बल देने के लिए किसानों ने आंदोलन छेड़ रखा है। इनकी मांगों में कर्ज माफी, उत्पादन लागत से 50 प्रतिशत अधिक एम.एस.पी. (न्यूनतम बिक्री मूल्य) तय करना, 60 साल या अधिक उम्र के किसानों के लिए पैंशन योजना लागू करना, बिना ब्याज के ऋण, दूध का भाव बढ़ा कर 50 रुपए लीटर करना, माइक्रो इरीगेशन उपकरणों के लिए पूरी सबसिडी देना, स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू करना और किसानों पर दायर केस वापस लेना आदि शामिल हैं। 

रोष स्वरूप किसानों ने न सिर्फ लाखों लीटर दूध सड़कों पर बहा दिया बल्कि पड़ोसी राज्यों को सब्जियों, दूध आदि की आपूर्ति भी ठप्प कर दी और इसके साथ ही दोनों राज्यों में आंदोलन के हिंसक रूप धारण कर लेने से दोनों ही राज्यों में अनेक मूल्यवान जानें जा चुकी हैं। महाराष्ट्र में पिछले 24 घंटों में कर्ज से परेशान 4 किसानों ने आत्महत्या भी कर लीं। हालांकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस ने 31 अक्तूबर से पहले 31 लाख किसानों को कर्ज में 30,000 करोड़ रुपए माफी की घोषणा की है पर किसान राज्य के सभी 1.34 करोड़ किसानों की कर्ज माफी की मांग कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में भी लगातार 2 बार के सूखे ने भारी कर्ज में डूबे किसानों की कमर तोड़ दी है और सरकार द्वारा घोषित कृषि प्रोत्साहन योजनाओं का भी उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा जिससे उनमें भारी रोष व्याप्त है। 

इन हालात में मध्यप्रदेश के किसानों का आंदोलन 6 जून को हिंसक हो गया जिस दौरान बेकाबू भीड़ ने मंदसौर और पिपलिया मंडी के बीच हाईवे पर 25 ट्रकों और 1 पुलिस चौकी को आग लगा दी। एक रेलवे फाटक तोड़ दिया, पटरियां उखाडऩे की कोशिश की तथा मंदसौर में धरने पर बैठे किसानों पर पुलिस फायरिंग से 6 किसान मारे गए। जहां प्रशासन ने अनेक शहरों में इंटरनैट बंद करके कफ्र्यू लगा दिया वहीं ‘राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ’ ने आंदोलन को और तेज करने की चेतावनी देते हुए 7 जून को प्रदेश में बंद रखा तथा आंदोलन और उग्र हो गया। 

इस दौरान भी भारी हिंसा और तोड़-फोड़, अनेक स्थानों पर रेल पटरियां उखाड़ कर यातायात बाधित करने, पुलिस से झड़पें और आगजनी, थानों पर पथराव आदि के समाचार हैं। देवास जिले में भोपाल से इंदौर जा रही एक यात्री बस को रोक कर उसमें तोडफ़ोड़ करने के बाद आग लगा दी गई। इसके अलावा लगभग आधा दर्जन अन्य वाहन भी जला दिए गए। आंदोलन शांत करने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मृत किसानों के परिवारों के एक-एक सदस्य को नौकरी के अलावा दी जाने वाली क्षतिपूर्ति राशि बढ़ा कर 1 करोड़ रुपए कर दी है। सरकार ने किसानों के एक धड़े से चर्चा करके उन्हें राहत देने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। इनमें उनकी फसल खरीदने के लिए 1000 करोड़ रुपए का कोष बनाना आदि शामिल है। 

केंद्र सरकार ने उद्योगपतियों पर चढ़े 15 लाख करोड़ रुपए के कर्ज में से करोड़ों रुपए बट्टे-खाते में डाल दिए जबकि किसानों को कर्ज से राहत दिलाने के लिए तो केवल 2.57 लाख करोड़ रुपए की ही जरूरत होगी। चूंकि मध्यप्रदेश के किसान आंदोलन में मारे गए किसानों में से 4 किसान उसी पाटीदार समुदाय से संबंध रखते हैं जिनके आरक्षण के लिए हार्दिक पटेल गुजरात में आंदोलन चला रहे हैं अत: गुजरात में इसी वर्ष होने जा रहे चुनावों में मध्य प्रदेश के किसान आंदोलन की गूंज अवश्य सुनाई देगी। प्राण हानि के अलावा इन आंदोलनों के दौरान अब तक करोड़ों रुपए की सार्वजनिक सम्पत्ति नष्टï हो चुकी है। अत: जितनी जल्दी भाजपा शासित राज्य सरकारें किसानों की उचित मांगें स्वीकार करके देश में चल रहे आंदोलनों को शांत कर लेंगी उतना ही अच्छा होगा। —विजय कुमार

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