कई देश किसान आंदोलन की चपेट में यह क्या हो रहा है! क्यों हो रहा है!! और कब सुलझेगा!!!

Edited By ,Updated: 29 Feb, 2024 04:16 AM

many countries are in the grip of farmers  movement what is happening

भारत ही नहीं, इन दिनों कम से कम 9 यूरोपीय देशों के किसान अपनी मांगों को लेकर अपनी सरकारों के विरुद्ध ट्रैक्टरों के साथ सड़कों पर उतरे हुए हैं। ग्लोबल वार्मिंग के चलते जलवायु परिवर्तन और तापमान से कृषि उपज प्रभावित होने, कहीं वर्षा की कमी से सूखा तो...

भारत ही नहीं, इन दिनों कम से कम 9 यूरोपीय देशों के किसान अपनी मांगों को लेकर अपनी सरकारों के विरुद्ध ट्रैक्टरों के साथ सड़कों पर उतरे हुए हैं। ग्लोबल वार्मिंग के चलते जलवायु परिवर्तन और तापमान से कृषि उपज प्रभावित होने, कहीं वर्षा की कमी से सूखा तो कहीं बाढ़ ने किसानों की कमर तोड़ दी है। स्पेन व पुर्तगाल भीषण सूखे की चपेट में हैं। दो वर्ष पूर्व रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद जहां यूरोप के कई देशों में खाद, बिजली तथा माल ढुलाई की दरों में बढ़ौतरी हुई है, वहीं इस बीच किसानों को उनकी उपज की मिलने वाली कीमत में 9 प्रतिशत की कमी आ गई है। 

बढ़ रही महंगाई को कम करने के लिए इन देशों की सरकारों द्वारा रोजमर्रा की जरूरतों की वस्तुओं की कीमतों में कमी करने तथा लागत बढऩे के कारण भी किसानों में भारी आक्रोष व्याप्त है। यूरोपीय संघ द्वारा खाद, ईंधन तथा दूसरी कुछ अन्य मदों में सबसिडी की कटौती और उसके भुगतान में देरी से भी किसान भड़क उठे हैं। इन देशों की सरकारों ने भी बातचीत तथा कुछ राहतों आदि की बात कही है पर मामला अभी सुलझता दिखाई नहीं दे रहा। 

* पोलैंड में यूक्रेन से सस्ते आयात की बाढ़ तथा स्थानीय उत्पादकों को प्रभावित करने वाले प्रतिबंधों को लेकर रोष व्याप्त है।
* ग्रीस में किसान 2023 की बाढ़ के कारण फसलों और पशुधन की हानि के लिए अधिक सबसिडी और तुरंत मुआवजे की मांग कर रहे हैं।
* पुर्तगाल के किसानों में कम सरकारी सहायता मिलने पर रोष व्याप्त हैै। 
* रोमानिया के किसान डीजल की कीमत और बीमा प्रीमियम में वृद्धि तथा यूरोपीय संघ के कड़े पर्यावरण कानूनों को लेकर नाराज हैं। 
* बैल्जियम भी यूरोपीय संघ के निर्देशों से जूझ रहा है, जहां भूमि का 4 प्रतिशत हिस्सा अलग रखना अनिवार्य किया गया है, साथ ही सस्ते आयात और बड़ी जोत वालों के पक्ष में अधिक सब्सिडी देने पर भी नाराजगी है। 

* 24 फरवरी को फ्रांस के किसानों ने लालफीताशाही, खाद्य पदार्थों के आयात तथा यूरोपीय संघ की नीतियों के विरुद्ध पैरिस में चल रहे कृषि मेले में भारी हंगामा किया। वे घेरा तोड़ कर ‘राष्ट्रपति मैक्रों’ तक पहुंच गए और उनसे त्यागपत्र की मांग की। प्रदर्शनकारी किसानों का कहना था कि वे भ्रष्ट नेताओं के घरों से निकलने का रास्ता ही बंद कर देंगे। 
* 26 फरवरी को यूरोप के विभिन्न देशों के किसान नौकरशाही तथा आयात किए गए सस्ते उत्पादों से प्रतिस्पर्धा को लेकर शक्ति प्रदर्शन के लिए सैंकड़ों ट्रैक्टरों के साथ ब्रसल्स में यूरोपीय परिषद भवन के मुख्य द्वार पर पहुंच गए जहां सदस्य देशों के 27 कृषि मंत्रियों की बैठक होने वाली थी। प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए परिषद भवन को बैरियरों तथा कांटेदार तारों से घेर दिया गया।
* 27 फरवरी को यूक्रेन के साथ लगती पोलैंड की सीमा बंद करने की मांग पर बल देने, यूरोपीय संघ की कृषि नीतियों तथा यूक्रेन से सस्ते अनाज के आयात के विरोध मेें हजारों किसानों ने ‘वारसा’ शहर में मार्च निकाला और संसद भवन का घेराव किया। 

भारत में केंद्र सरकार तथा किसान संगठनों के बीच बातचीत केवल 23 फसलों पर एम.एस.पी. को लेकर ही नहीं बल्कि कुछ अन्य मांगोंं को लेकर भी अटकी हुई है जिसमें किसानों पर पिछले आंदोलन के दौरान दर्ज सभी तरह के केस वापस लेने की मांग भी शामिल है। इस बीच भाजपा के अभिभावक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के सहयोगी संगठन ‘भारतीय किसान संघ’ ने किसानों के प्रति केंद्र सरकार के रवैये को ‘किसी हद तक’ अफसोसनाक बताते हुए कहा है कि : 

‘‘किसानों को उनके उत्पाद की लाभप्रद कीमत मिलनी चाहिए, किसानों को आय सहायता (इन्कम सपोर्ट) में पर्याप्त वृद्धि होनी चाहिए तथा सरकार को कृषि इनपुट्स पर जी.एस.टी. नहीं लेना चाहिए।’’आने वाले चंद दिनों में पता चलेगा कि उक्त सभी देशों की सरकारें अपने यहां चल रहे किसान आंदोलनों में उठाई जा रही समस्याएं किस प्रकार सुलझा कर किसानों की शिकायतें दूर कर पाती हैं!-विजय कुमार

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