‘भारत की अधिकांश युवा पीढ़ी’ अवसाद और चिंता के उच्च स्तर की शिकार!

Edited By Updated: 06 Oct, 2025 04:59 AM

most of india s young generation suffers from high levels of anxiety

युवाओं को किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत माना जाता है और जिस देश की युवा शक्ति जितनी मजबूत होगी, वह देश उतना ही मजबूत माना जाता है। हाल ही के दिनों में हम नेपाल में युवाओं की शक्ति का चमत्कार देख चुके हैं, जहां युवाओं ने सरकार को हिला दिया।

युवाओं को किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत माना जाता है और जिस देश की युवा शक्ति जितनी मजबूत होगी, वह देश उतना ही मजबूत माना जाता है। हाल ही के दिनों में हम नेपाल में युवाओं की शक्ति का चमत्कार देख चुके हैं, जहां युवाओं ने सरकार को हिला दिया। लेकिन इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि आज के दौर में भारत की युवा शक्ति अर्थात स्कूलों और कालेजों में पढऩे वाले युवक-युवतियां पढ़ाई के दबाव और अकेलेपन से ग्रस्त होने के कारण चुपचाप बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहे हैं। 

हाल ही में देश के विभिन्न शहरों में किए गए शोध से पता चला है कि युवाओं में चिंता, अवसाद और भावनात्मक संकट का स्तर चिंताजनक रूप से बहुत ऊंचा है। शोध में यह चौंकाने वाली बात भी सामने आई कि राजधानी दिल्ली के छात्र अन्य शहरों के छात्रों की तुलना में अधिक अवसाद ग्रस्त हैं। इस शोध में 18-29 वर्ष की आयु के 1628 छात्र शामिल थे जिनमें 47.1 प्रतिशत पुरुष और 52.9 प्रतिशत महिलाएं थीं। शोध में शामिल लगभग 70 प्रतिशत छात्र मध्यम से उच्च स्तर की चिंता से ग्रस्त पाए गए जबकि लगभग 60 प्रतिशत छात्र-छात्राओं में अवसाद के लक्षण दिखाई दिए और 70 प्रतिशत से अधिक ने अत्यधिक तनाव का अनुभव किया। लगभग एक तिहाई ने कमजोर भावनात्मक संबंधों की सूचना दी।

14.6 प्रतिशत छात्र-छात्राओं में जीवन से संतुष्टि कम थी और लगभग 8 प्रतिशत में खराब समग्र मानसिक स्वास्थ्य सूचकांक दर्ज किया। जहां लड़कों ने काफी अधिक तनाव और स्वास्थ्य में खराबी के बारे में बताया वहीं युवतियों के लिए उनकी तत्काल समाधान आवश्यकता रेखांकित हुई। दिल्ली के छात्रों में कुल मिलाकर अवसाद का उच्च स्तर दर्ज किया गया जो मानसिक स्वास्थ्य के मामले में क्षेत्रीय असमानताओं को उजागर करता है। इसी शोध के अनुसार, केंद्रीय विश्वविद्यालयों के छात्रों में अवसाद अधिक पाया गया और सरकारी महाविद्यालयों के छात्रों में जीवन से संतुष्टि का स्तर कम पाया गया।

इन परेशान करने वाले आंकड़ों के बावजूद बहुत कम छात्रों ने मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग किया। शोधकत्र्ताओं ने पाया कि लोक लाज, जागरूकता की कमी और अपर्याप्त परिसर-आधारित सहायता इस समस्या के समाधान में प्रमुख बाधाएं बनी हुई हैं। महामारी के बाद तो स्थिति और भी बिगड़ गई है, जिससे युवाओं में शैक्षणिक तनाव, अकेलापन और भविष्य को लेकर अनिश्चितता बढ़ गई है। कुल मिला कर इस शोध का निष्कर्ष यह है कि युवा वयस्कों में ङ्क्षचता, अवसाद और हताशा आदि लक्षण दिखाई देते ही उनकी काऊंसङ्क्षलग तथा युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने वाली स्वास्थ्य नीतियों को स्कूलों या कालेजों में लागू करने की तत्काल आवश्यकता है। विशेषज्ञों के अनुसार यह निष्कर्ष नीति निर्माताओं और विश्वविद्यालयों के लिए एक चेतावनी है और उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य की तरह ही गंभीरता से लिया जाना चाहिए। 

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