Edited By ,Updated: 24 Aug, 2023 04:38 AM
23 अगस्त, 2023 को शाम 6.04 बजे का समय भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया, जब ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इसरो) के ‘चंद्रयान-3 मिशन’ का लैंडर माड्यूल चंद्रमा की सतह पर कठिन दक्षिणी धु्रव पर साफ्ट लैंडिंग करने में सफल हो गया...
23 अगस्त, 2023 को शाम 6.04 बजे का समय भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया, जब ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इसरो) के ‘चंद्रयान-3 मिशन’ का लैंडर माड्यूल चंद्रमा की सतह पर कठिन दक्षिणी धु्रव पर साफ्ट लैंडिंग करने में सफल हो गया जिसके लिए सारा देश प्रार्थनाएं तथा धार्मिक अनुष्ठान कर रहा था। कुछ दिन पहले रूस ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने की कोशिश की थी परन्तु उसका अंतरिक्ष यान ‘लूना-25’ चांद की सतह से टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के कारण भारत के चंद्रयान-3 मिशन का महत्व और भी बढ़ गया था तथा सारे विश्व की नजरें भारत के मिशन पर थी।
‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इसरो) की स्थापना औपचारिक रूप से 1969 में हुई थी, जबकि इससे पूर्व 1962 से यह अनौपचारिक रूप से ‘भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति’ के नाम से काम कर रहा था।
‘इसरो’ का पहला उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ 19 अप्रैल, 1975 को सोवियत संघ द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया था और तब से अब तक ‘इसरो’ विश्व के लगभग 2 दर्जन देशों के 5 दर्जन से अधिक उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेज चुका है।
‘इसरो’ ने अपने चंद्र खोज अभियान की शुरुआत चंद्रयान-1 से की थी। यह 22 अक्तूबर, 2008 को श्रीहरिकोटा से भेजा गया था तथा 30 अगस्त, 2009 को ‘इसरो’ से इसका संपर्क टूट गया।
इस बीच 18 सितम्बर, 2008 को तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने चंद्रयान-2 मिशन को स्वीकृति दी जिसे 20 अगस्त, 2019 को भाजपा सरकार के दौरान अंतरिक्ष में भेजा गया, पर यह मिशन अंतिम समय में विफल हो गया। इसके बाद 14 जुलाई, 2023 को भारतीय समय के अनुसार बाद दोपहर 2.35 बजे चंद्रयान-3 भेजा गया, जिसने पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार 23 अगस्त, 2023 को भारतीय समय के अनुसार शाम 6.04 बजे सफल लैंङ्क्षडग कर इतिहास रच दिया है।
इस प्रकार रूस, अमरीका और चीन के बाद चांद की सतह पर उतरने वाला भारत विश्व का चौथा देश तथा इसके दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला विश्व का पहला देश बन गया है।
हमारे लिए यह और भी गर्व की बात है क्योंकि चंद्रयान-3 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारा गया जहां आज तक कोई देश नहीं पहुंच सका हालांकि अमरीका 5 दशक पूर्व 20 जुलाई, 1969 को अपोलो मिशन के जरिए चांद पर अंतरिक्ष यात्रियों ‘नील आर्मस्ट्रांग’ तथा ‘एडविन बज एल्ड्रिन’ को उतार चुका है। इस बीच 3 अप्रैल, 1984 को 2 अन्य सोवियत अंतरिक्ष यात्रियों के साथ अंतरिक्ष यान ‘सोयुज टी-11’ में 8 दिन अंतरिक्ष में रहने वाले राकेश शर्मा भारत के पहले और विश्व के 138वें व्यक्ति बने थे।
पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी ‘भारतीय चंद्रयान-3’ जिंदाबाद हो रहा है। पाकिस्तान के पूर्व सूचना व प्रसारण मंत्री फवाद चौधरी ने भारत की इस सफलता पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि :
‘‘इसरो और भारतीय वैज्ञानिकों को बधाई। इससे दुनिया को फायदा होगा। यह पूरी मानवता की कामयाबी है। सही चीज का हमेशा स्वागत होना चाहिए। विज्ञान और तकनीक का विरोध करने वाला मूर्ख ही होगा। जो नफरत में अंधा है वही इसे गलत कहेगा और इसकी बुराई करेगा। यह सारी दुनिया और हम सबके लिए महत्वपूर्ण है।’’
भारत स्थित श्रीलंका के उच्चायुक्त मिलिंद मोरागोडा ने भी भारतीय
‘चंद्रयान-3 मिशन’ की सफलता की प्रशंसा करते हुए कहा है कि ‘‘यह पूरे उपमहाद्वीप के लिए गर्व की बात है और हमारे लिए भी गर्व का क्षण है।’’ निश्चय ही इसरो के 17,000 वैज्ञानिकों और कर्मचारियों ने अपनी लगन और मेहनत से इस मिशन को सफल बनाकर न सिर्फ हर भारतवासी का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है, बल्कि भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के अग्रणी देशों में ला खड़ा किया है जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर इसरो तथा देशवासियों को बधाई देते हुए ठीक ही कहा है कि‘‘पिछली हार से सबक लेकर जीत कैसे हासिल की जाती है। यह पल विकसित भारत के शंखनाद का है।’’आशा है कि भविष्य में भी ‘इसरो’ के वैज्ञानिक और कर्मचारी अपने अगले सूर्य अभियान ‘आदित्य एल-1’ में भी सफलता का इतिहास रचेंगे।—विजय कुमार