भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर में जी-20 समारोह की मेजबानी पर पाक और चीन तिलमिलाए

Edited By ,Updated: 08 Jul, 2022 04:20 AM

pak and china scoff at india s hosting of g20 event in jammu and kashmir

25 वर्ष पूर्व विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश यू.के., अमरीका, आस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस

25 वर्ष पूर्व विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश यू.के., अमरीका, आस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की और यूरोपीय संघ विश्व व्यापी वित्तीय संकट से बचने के उपाय तलाश करने के लिए एक समूह बनाने पर सहमत हुए। 

इसी के अंतर्गत 1999 में उक्त देशों ने ‘ग्रुप आफ ट्वैंटी’ (जी-20) नाम से एक संगठन कायम किया। वर्ष 2008 से ‘जी-20’ देशों के लगातार आयोजित होने वाले शिखर सम्मेलनों में सभी देशों को दरपेश आर्थिक, ग्लोबल वार्मिंग, स्वास्थ्य, आतंकवाद आदि मुद्दों पर चर्चा की जाती है। 

इस समय इंडोनेशिया इस समूह का अध्यक्ष है जबकि भारत इस वर्ष 1 दिसम्बर को इसका अध्यक्ष बन जाने के बाद अगले वर्ष अपने यहां ‘जी-20’ शिखर सम्मेलन आयोजित करने जा रहा है। इसके कुछ कार्यक्रम जम्मू- कश्मीर में आयोजित किए जाएंगे और इनकी तैयारी के लिए एक 5 सदस्यीय समिति का गठन कर दिया गया है। 

‘जी-20’ समूह का सदस्य न होने के बावजूद पाकिस्तान के नेताओं में भारत के इस फैसले से खलबली मच गई है और वे भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर में यह समारोह आयोजित करने से रुकवाने के लिए ‘जी-20’ समूह में शामिल अपने मित्र देशों से गुहार लगा रहे हैं कि वे इस मामले में भारत पर दबाव डालें। पाकिस्तान के नेताओं का मानना है कि भारत के इस कदम से जम्मू-कश्मीर पर भारत का दावा और मजबूत होगा जबकि यह क्षेत्र तो है ही भारत का। उनका कहना है कि पाकिस्तान और भारत के बीच जम्मू-कश्मीर अंतर्राष्ट्रीय तौर पर मान्य विवादित क्षेत्र है जो सात से अधिक दशकों से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एजैंडे में रहा है, जबकि तथ्य इसके विपरीत हैं। 

1947 में भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र में यह मामला ले जाने के बाद संयुक्त राष्ट्र ने वहां जनमत संग्रह के लिए जो शर्तें लगाई थीं, वे सब 6 महीने के भीतर पूरी हो जानी चाहिए थीं, जैसे कि कबायलियों का पाकिस्तान वापस लौटना और पाकिस्तानी सेना का कश्मीर छोड़ कर लौट जाना परंतु चूंकि इस संबंध में कुछ नहीं हुआ था इसलिए वह प्रस्ताव भी समाप्त हो चुका है। लिहाजा जम्मू-कश्मीर को अब विवादास्पद इलाका कहा ही नहीं जा सकता। 

सबसे बड़ी बात यह है कि ‘इंस्टूमैंट आफ एक्सैशन लॉ’ (विलय पत्र) के अंतर्गत अन्य रियासतों की भांति ही राजा हरी सिंह ने भी स्वेच्छा से अपनी रियासत जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय स्वीकार किया था, अत: इस पर कोई आपत्ति करना अब निरर्थक ही है। ऐसे घटनाक्रम के बीच एशिया में पाकिस्तान के सबसे बड़े मित्र चीन  के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ‘झाओ लिजियान’ ने भी पाकिस्तान की हां में हां मिला कर भारत की योजना का विरोध करते हुए कह दिया है कि संबंधित पक्षों को मुद्दे को राजनीतिक रंग देने से बचना चाहिए। 

चीन की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए भारत ने अगले वर्ष जम्मू-कश्मीर ही नहीं बल्कि लद्दाख में भी जी-20 की बैठकें करने का संकेत दिया है, जहां ‘लाइन आफ एक्चुअल कंट्रोल’ (एल.ए.सी.) पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच पिछले लगभग 2 वर्षों से तनाव का माहौल बना हुआ है। हालांकि कुछ जगहों पर दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटी हैं लेकिन गतिरोध अभी भी बरकरार है। 

इसे भारत की ओर से चीन को सख्त और दो टूक संदेश के तौर पर देखा जा सकता है कि वह अपने घरेलू मामलों में किसी अन्य देश को हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देगा। मोदी सरकार द्वारा इस संबंध में लिए गए मजबूत स्टैंड ने चीन को मुश्किल में डाल दिया है क्योंकि इस आयोजन को एक तरह से सभी प्रमुख शक्तिशाली देशों द्वारा भारत की नीति की मान्यता के रूप में समझा जाएगा। जम्मू-कश्मीर में 2019 में धारा-370 और जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने के बाद यह पहला बड़ा अंतर्राष्ट्रीय आयोजन होने जा रहा है, जिसकी सफलता से भारत की अंतर्राष्ट्रीय दृश्य पटल पर छवि और निखरेगी।—विजय कुमार

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