‘कोरोना से बचने के लिए’ ‘अंधविश्वासों व झाड़-फूंक में फंस रहे लोग’

Edited By ,Updated: 13 May, 2021 05:07 AM

people trapped in superstition and chaos to escape from corona

कोरोना महामारी ने पूरे देश में हाहाकार मचा रखा है। स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि श्मशान भूमियों में मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए जगह तथा लकडिय़ों तक की कमी हो गई है परंतु

कोरोना महामारी ने पूरे देश में हाहाकार मचा रखा है। स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि श्मशान भूमियों में मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए जगह तथा लकडिय़ों तक की कमी हो गई है परंतु कई जगह लोग सही इलाज करवाने की बजाय अंधविश्वासों और झाड़- फूंक आदि करने वालों के चक्कर में पड़ कर अपना नुक्सान कर रहे हैं। 

* विशेषज्ञों ने कई बार कहा है कि कोरोना संक्रमण रोकने में गोबर या गौमूत्र प्रभावहीन है, इसके बावजूद गुजरात के अहमदाबाद में स्थित एक प्रसिद्ध गौशाला में लोगों को ‘गोबर थैरेपी’ दी जा रही है। गत दिवस यहां कई लोगों के शरीर पर गोबर मलने के बाद उन्हें दूध से नहलाया गया।

* गुजरात में अहमदाबाद के निकट साणंद जिले के नवापुरा गांव में सुरक्षा संबंधी तमाम नियमों की अवहेलना करते हुए कोरोना वायरस को भगाने के लिए 500 से अधिक महिलाओं के सिर पर पानी से भरे कलश रख कर उनसे मंदिर की परिक्रमा करवाई गई और गांव के पुरुष सदस्यों ने वह पानी इस विश्वास के साथ मंदिर परिसर में उंडेला कि इससे कोरोना भाग जाएगा। 

* मध्य प्रदेश के गुना जिले के ‘बमोरी’ ब्लाक के ‘जोहरी’ गांव से गुजरने वाली 2-3 महीने से सूखी पड़ी नदी में जब कुछ लोग खुदाई कर रहे थे तो उसमें से पानी निकल आने पर किसी ने अफवाह उड़ा दी कि यह चमत्कारी पानी है और इसे पीने से कोरोना की बीमारी ठीक हो जाएगी। अफवाह फैलते ही आनन-फानन में वहां लोगों की भीड़ जुट गई और लोग गड्ढा खोद कर उसमें से निकलने वाला गंदा पानी दवाई समझ कर पीने लगे। अधिकारियों के समझाने का भी उन पर कोई असर नहीं हुआ। 

* राजस्थान के झालावाड़ जिले के ‘डग’ इलाके के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग कोरोना से बचाव के लिए अनोखे तरीके अपना रहे हैं। कुछ क्षेत्रों में लोगों ने दिन के समय पूरा गांव खाली करके यह कहते हुए जंगल में रहना शुरू कर दिया कि वहां रह कर वे महामारी से सुरक्षित रहेंगे। ग्रामीण सूर्योदय के साथ ही घरों से निकल जाते और दिन भर जंगल में रहते। गांव की महिलाएं खाना बनातीं और खिलातीं। वे जंगल में दिन बिताने के बाद सूर्यास्त होने पर अपने घरों को लौटते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह तरीका अपनाने के लिए उन्हें ‘माता जी’ ने निर्देश दिया है। दिन ढलने से पहले किसी को भी गांव में प्रवेश करने की इजाजत नहीं है।

* मध्य प्रदेश में शिवपुरी जिले के एक गांव में क र्यू के बावजूद ग्रामीणों ने कोरोना को भगाने के लिए विशेष पूजा और भंडारे का आयोजन किया। सूचना मिलने पर जब पुलिस आयोजन रुकवाने गांव में पहुंची तो गांव वालों ने उस पर पथराव कर दिया। इस पथराव में अन्यों के अलावा पूजा-पाठ और भंडारा करवाने वाला ‘बाबा’ भी घायल हो गया।

* उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ के अनेक ग्रामीण क्षेत्रों में यह अंधविश्वास व्याप्त है कि ‘देवी’ के नाराज हो जाने से कोरोना फैला है। लिहाजा बड़ी सं या में महिलाएं पूजा-पाठ और ‘देवी’ को हलवा-पूरी अॢपत करके कोरोना के प्रकोप से मुक्ति पाने और उसे अपने क्षेत्र से भगाने के लिए मन्नतें मांग रही हैं। महिलाओं का कहना है कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो महामारी धीरे-धीरे सभी को जकड़ लेगी और सब मर जाएंगे। 

* उत्तर प्रदेश में ही गोरखपुर के गांवों और शहरों में बड़ी संख्या में महिलाएं इस बीमारी को दैवीय आपदा मान कर सुबह-शाम ‘कोरोना माई’ को जल चढ़ा रही हैं। महिलाओं का मानना है कि ऐसा करने से  ‘देवी’ खुश हो जाएंगी और दुनिया को इस प्रकोप से मुक्त कर देंगी। उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि आज 21वीं सदी में भी लोग किस कदर टोने-टोटके आदि में उलझे हुए हैं और उनकी अज्ञानता का लाभ उठाकर झाड़-फूंक करने वाले इस महामारी से मुक्ति दिलाने के नाम पर मनमानी कमाई कर रहे हैं। यह आस्था नहीं अंधविश्वास है जबकि आवश्यकता अनमोल जीवन बचाने के लिए विशेषज्ञों के बताए सुरक्षा उपायों का स ती से पालन करने की है। ऐसा करके ही हम इस महामारी से पीछा छुड़ा सकते हैं, अंधविश्वासों के चक्कर में पड़ कर नहींं।—विजय कुमार

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