Edited By ,Updated: 09 Jan, 2024 05:56 AM
बंगलादेश के 12वें संसदीय चुनाव में नजरबंद पूर्व प्रधानमंत्री ‘खालिदा जिया’ की मुख्य विपक्षी पार्टी ‘बंगलादेश नैशनलिस्ट पार्टी’ (बी.एन.पी.) तथा उसके सहयोगियों को हरा कर देश की प्रधानमंत्री ‘शेख हसीना’ की पार्टी ‘अवामी लीग’ ने 300 चुनावी सीटों में से...
बंगलादेश के 12वें संसदीय चुनाव में नजरबंद पूर्व प्रधानमंत्री ‘खालिदा जिया’ की मुख्य विपक्षी पार्टी ‘बंगलादेश नैशनलिस्ट पार्टी’ (बी.एन.पी.) तथा उसके सहयोगियों को हरा कर देश की प्रधानमंत्री ‘शेख हसीना’ की पार्टी ‘अवामी लीग’ ने 300 चुनावी सीटों में से 223 सीटें जीत लीं, जबकि विरोधी दलों को 76 सीटें ही मिल सकीं। यह शेख हसीना की पार्टी की लगातार चौथी विजय है। ‘शेख हसीना’ को गोपालगंज संसदीय सीट पर 2,49,965 वोट मिले तथा उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी ‘बंगलादेश सुप्रीम पार्टी’ के एम. निजाम उद्दीन लश्कर को 469 वोट ही मिले।
वैसे बंगलादेश में इस बार के चुनावों में चीन भी वहां किए अपने निवेश के कारण ‘शेख हसीना’ की पार्टी की विजय के पक्ष में था, जबकि ‘शेख हसीना’ का ‘खामोश समर्थक’ भारत भी था। इसका एक बड़ा कारण राष्ट्रीय सुरक्षा है। भारत और बंगलादेश के बीच हजारों किलोमीटर का बार्डर सांझा है।
1971 में पाकिस्तान के कब्जे से बंगलादेश को छुड़ाने में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यहिया खां की तानाशाह सरकार द्वारा पूर्वी पाकिस्तान (अब बंगलादेश) के लोगों पर अत्याचारों के विरुद्ध ‘शेख हसीना’ के पिता ‘शेख मुजीबुर्रहमान’ ने पाकिस्तान से आजादी के लिए ‘मुक्ति संग्राम’ चलाया। जब पाकिस्तान के विरुद्ध विद्रोह तेज हुआ तो पाकिस्तान सरकार ने वहां अपनी सेना उतार दी और ‘अवामी लीग’ के सदस्य वहां से भाग कर भारत में शरण लेने लगे।
बंगलादेशी शरणार्थियों के बढऩे पर भारत ने ‘मुक्ति वाहिनी’ की सहायता की तो पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया जिसमें पाकिस्तान की शर्मनाक हार के बाद 16 दिसम्बर, 1971 को स्वतंत्र बंगलादेश अस्तित्व में आया और 12 जनवरी, 1972 को ‘शेख मुजीबुर्रहमान’ इसके प्रधानमंत्री बने। 1975 में सेना की कुछ टुकडिय़ों ने विद्रोह करने के बाद ‘शेख मुजीबुर्रहमान’ की हत्या कर दी। इसके बाद विद्रोहियों ने उनके परिवार और निजी सहायक ‘शेख कमाल’ के परिवार के अनेक सदस्यों को मार डाला।
‘शेख हसीना’ उस समय अपने पति के साथ जर्मनी में थीं इस कारण उनकी जान बच गई। वह भारत की आभारी हैं क्योंकि 1975 में उनके संकटकाल मेें भारत ने ही उन्हें शरण दी थी तथा वह 6 वर्ष भारत में रहीं। बंगलादेश में ‘शेख हसीना’ और उनकी पार्टी की सरकार बनने के बाद काफी कुछ बदल गया। ‘शेख हसीना’ ने न सिर्फ भारत की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया बल्कि विरोधियों के विरुद्घ कार्रवाई भी की। ‘शेख हसीना’ के शासनकाल में दोनों देशों के सम्बन्ध काफी अच्छे हुए तथा दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते हुए। इनमें ‘तीस्ता नदी जल बंटवारा’, ‘खुलना मोंगला रेल लाइन परियोजना’ तथा ‘मैत्री सुपर थर्मल प्रोजैक्ट’ आदि मुख्य हैं।
दूसरी ओर ‘खालिदा जिया’ की पार्टी को पाकिस्तान की समर्थक माना जाता है। 1991 से 1996 और 2001 से 2006 तक पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं ‘खालिदा जिया’ के नेतृत्व वाली बी.एन.पी. सरकार पाकिस्तान की जासूसी एजैंसी आई.एस.आई. तथा जमात-ए-इस्लामी के साथ दोस्ती निभा रही थी। बंगलादेश में बनी ‘खालिदा जिया’ के नेतृत्व वाली बी.एन.पी. की सरकार के शासन में कई कट्टïरपंथी संगठन सक्रिय हो जाने के कारण भारत के साथ उसके रिश्ते बिगडऩे लगे थे और पाकिस्तान के पाले हुए आतंकवादी बढऩे लगेथे। 2006 में बंगलादेश के ‘हरकत उल जिहाद अल इस्लाम’ नामक संगठन ने भारत के उत्तर प्रदेश में कई जगह एक के बाद एक धमाके भी करवाए थे।
चुनाव जीतते ही ‘शेख हसीना’ ने कहा है कि ‘‘भारत हमारा विश्वस्त देश है। उसने हमेशा हमारा समर्थन किया है। उसने हमारे लिब्रेशन आंदोलन के दौर में भी हमारा साथ दिया।’’ निश्चित ही बंगलादेश में भारत समर्थक ‘शेख हसीना’ की पार्टी ‘अवामी लीग’ का एक बार फिर सत्ता में आना न सिर्फ बंगलादेश के लिए बल्कि भारत के लिए भी एक अच्छा संकेत है जिससे दोनों देशों के संबंध और मजबूत होने तथा इनमें सक्रिय अराजक तत्वों से निपटने में दोनों ही देशों को सहायता अवश्य मिलेगी।—विजय कुमार