Edited By ,Updated: 14 Oct, 2025 04:26 AM

शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार शैक्षणिक वर्ष 2024-25 में देश में 1,04,125 स्कूल ऐसे थे जो केवल एक-एक शिक्षक के सहारे चल रहे थे और ऐसे स्कूलों में 33,76,769 छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे थे।
शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार शैक्षणिक वर्ष 2024-25 में देश में 1,04,125 स्कूल ऐसे थे जो केवल एक-एक शिक्षक के सहारे चल रहे थे और ऐसे स्कूलों में 33,76,769 छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। अर्थात औसतन प्रत्येक स्कूल में लगभग 34 छात्र थे। आंध्र प्रदेश में ऐसे स्कूलों की संख्या सबसे अधिक है। इसके बाद उत्तर प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक और लक्षद्वीप का स्थान आता है। उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश के 125 स्कूलों में तो एक भी अध्यापक नहीं है जबकि प्रदेश में 2600 स्कूल ऐसे हैं जहां सिर्फ एक ही अध्यापक से काम चलाया जा रहा है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों की तुलना में देश में एकल (सिंगल) अध्यापकों वाले स्कूलों में कुछ कमी तो आ रही है परंतु शिक्षक-छात्र का अंतर अभी भी अधिक बना हुआ है।
देश में माध्यमिक (सैकेंडरी) तथा प्राथमिक (प्राइमरी) दोनों ही स्तरों पर 8.4 लाख से अधिक अध्यापकों की कमी है। कई राज्यों में तो अध्यापकों की 30 से 35 प्रतिशत तक आसामियां खाली हैं। शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अध्यापकों की कमी अधिक है। यहां यह तथ्य भी ध्यान देने योग्य है कि प्राथमिक (प्राइमरी) स्कूलों में अध्यापकों की अधिक आसामियां खाली हैं। शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार प्राथमिक विद्यालयों में 7.2 लाख और माध्यमिक विद्यालयों में 1.2 लाख अध्यापकों की आसामियां खाली हैं।
बिहार, उत्तर प्रदेश तथा झारखंड जैसे राज्यों में प्राथमिक और माध्यमिक दोनों स्तरों पर अध्यापकों की आधे से अधिक आसामियां खाली हैं। बिहार में 1,92,097, उत्तर प्रदेश में 1,43,564, झारखंड में 75,726, पश्चिम बंगाल में 53,137 और मध्य प्रदेश में 62,394 प्राथमिक (प्राइमरी) अध्यापकों की आसामियां खाली हैं। इन राज्यों में प्राथमिक (प्राइमरी) शिक्षा के क्षेत्र में अध्यापकों की भारी कमी देखी जा रही है। जहां तक माध्यमिक स्कूलों में अध्यापकों की कमी का संबंध है, बिहार में 32,929, झारखंड में 21,717, मध्य प्रदेश में 15,145, उत्तर प्रदेश में 7,492 और पश्चिम बंगाल में 7,378 माध्यमिक अध्यापकों की आसामियां खाली हैं।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अनुसार देश में वर्ष 2024 में सरकारी प्राथमिक (प्राइमरी) स्कूलों में अधिकांश पद खाली हैं जबकि बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और झारखंड में प्राथमिक (प्राइमरी) और माध्यमिक (सैकेंडरी) दोनों ही स्तरों पर अध्यापकों की आधे से अधिक आसामियां खाली हैं। देश में ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009’ के तहत ‘प्राथमिक (प्राइमरी) स्तर’ (कक्षा 1 से 5) पर 30 बच्चों पर 1 तथा ‘उच्च प्राथमिक (अपर प्राइमरी) स्तर’ पर 35 बच्चों पर एक अध्यापक का होना अनिवार्य किया गया है, परंतु स्थिति इसके विपरीत है। अनेक राज्यों में अध्यापकों के स्वीकृत पदों की फाइलें वर्षों से धूल फांक रही हैं। इसी वर्ष सितम्बर में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2 वर्षों से बिना अध्यापकों के चल रहे ‘चित्रकूट’ (उत्तर प्रदेश) की ‘मानिकपुर’ तहसील के अंतर्गत ‘रैपुरा जूनियर हाई स्कूल’ को लेकर राज्य सरकार और बेसिक शिक्षा परिषद से जवाब मांगा है कि उक्त स्कूल में पिछले 2 वर्षों से एक भी अध्यापक क्यों नहीं है?
प्रशासनिक उदासीनता और सरकार की ढुलमुल भर्ती नीति भी देश में अध्यापकों की कमी का बड़ा कारण है। स्वतंत्रता के 78 वर्षों के बाद भी भारत के पूर्ण साक्षर देश न बन पाने के पीछे एक कारण देश की सरकारों द्वारा प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा पर ध्यान न देना है। अत: जितनी जल्दी इन त्रुटियों को दूर किया जाएगा, देश में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए उतना ही अच्छा होगा।—विजय कुमार