वरिष्ठ पत्रकार श्री कुलदीप नैयर का निधन

Edited By Yaspal,Updated: 24 Aug, 2018 01:38 AM

senior journalist mr kuldeep nayar passes away

देश के लिए यह वर्ष कई बुरी खबरों के साथ रहा है। मात्र इसी महीने हमने द्रमुक नेता एम. करुणानिधि, लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी, वरिष्ठ भाजपा नेता व छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बलरामजी दास टंडन, पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस...

देश के लिए यह वर्ष कई बुरी खबरों के साथ रहा है। मात्र इसी महीने हमने द्रमुक नेता एम. करुणानिधि, लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी, वरिष्ठ भाजपा नेता व छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बलरामजी दास टंडन, पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस नेता गुरु दास कामत को खोया और अब ‘पंजाब केसरी’ के सुपरिचित लेखक और वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता व राजनयिक श्री कुलदीप नैयर का बुधवार 22 अगस्त को देर रात 95 वर्ष की आयु में संक्षिप्त बीमारी के बाद निधन हो गया।

14 अगस्त, 1923 को स्यालकोट (पाकिस्तान) के ट्रंक बाजार में जन्मे कुलदीप नैयर ने स्कूली शिक्षा स्यालकोट में ली व लाहौर से कानून की डिग्री लेकर एक स्कालरशिप मिलने पर अमरीका की नार्थ वैस्टर्न यूनिवॢसटी से पत्रकारिता की डिग्री लेने के अलावा दर्शन शास्त्र में पी.एचडी. की। उन्होंने अपना करियर लाहौर में उर्दू अखबार ‘अंजाम’ से बतौर उर्दू प्रैस रिपोर्टर शुरू किया था। 13 सितम्बर, 1947 को इनका परिवार दो कपड़ों में दिल्ली के शरणार्थी शिविर में आ गया और उसके बाद ये जालंधर आ गए।

जालंधर में वह भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय में कई वर्ष सूचना अधिकारी रहे और बाद में संवाद समिति ‘यू.एन.आई.’ और अंग्रेजी दैनिक ‘स्टेट्समैन’ (दिल्ली) और ‘इंडियन एक्सप्रैस’ से भी लम्बे समय तक जुड़े रहे। वह 25 वर्ष तक ‘द टाइम्स लंदन’ के संवाददाता भी रहे।

वह 1985 से ‘बिटविन द लाइंस’ शीर्षक से अपना कालम लिख रहे थे जो ‘पंजाब केसरी ग्रुप’ के समाचारपत्रों सहित 14 भाषाओं में देश-विदेश के 80 समाचारपत्रों में छपता था। वह भारत के पहले पत्रकार थे जिनका सिंडीकेटेड कालम शुरू हुआ। उन्होंने फीचर एजैंसी मंदिरा पब्लिकेशन्स शुरू की और अनेक लेखकों को समाचारपत्रों से जोड़ा जिनमें पाकिस्तानी पत्रकार भी शामिल थे। उनका अंतिम कालम ‘पंजाब केसरी’ में 22 अगस्त को ‘उत्तर पूर्व में सुशासन व विकास की ओर ध्यान दे केंद्र सरकार’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने देश के उत्तर-पूर्वी भाग की ओर ध्यान दिलाया था।

उन्होंने 15 पुस्तकें भी लिखीं जिनमें इंडिया आफ्टर नेहरू, वाल ऐट वाघा, इंडिया-पाकिस्तान रिलेशनशिप, इंडिया हाऊस आदि मुख्य हैं। उन्होंने अपनी पहली पुस्तक से प्राप्त आय की राशि तिरुपति देव स्थानम को दान में दी थी। अपनी पुस्तकों में उन्होंने सत्ता के गलियारों की हलचल से जुड़े अनेक रहस्योद्घाटन किए। अपनी आत्मकथा ‘बियोंड द लाइंस’ में कुलदीप नैयर ने लिखा है कि जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद उनके दिए हुए ‘स्कूप’ ने लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनवाया था और जब शास्त्री जी पार्टी के नेता चुने गए तो उन्होंने सबके सामने इन्हें गले से लगा लिया था।

उन्होंने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का खुल कर विरोध किया और मीसा के अंतर्गत जेल में भी रहे। 1990 में उन्हें ब्रिटेन में उच्चायुक्त नियुक्त किया गया, 1996 में संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में शामिल किया गया और अगस्त, 1997 में राज्यसभा में नामांकित किया गया।

इन्होंने एक भारत-पाकिस्तान मैत्री समूह बनाया था और भारत-पाकिस्तान (अटारी-वाघा) सीमा पर वर्ष 2000 से वह हर साल 14 अगस्त को दोनों देशों के बीच शांति बनाए रखने के उद्देश्य से अपने साथियों सहित मोमबत्तियां जलाया करते थे। यह सिलसिला एक दशक से अधिक चला। उन्हें आशा थी कि एक दिन दक्षिण एशिया के लोग शांति, सद्भाव और सहयोग को समझेंगे और मोहब्बत की लौ जगेगी।

‘पंजाब केसरी’ परिवार के श्री कुलदीप नैयर के परिवार के साथ शुरू से ही निजी एवं पारिवारिक संबंध थे। उनके पिता डा. गुरबख्श सिंह नैयर बच्चों के रोगों के डाक्टर थे और जब भी परिवार का कोई बच्चा बीमार होता था तो हम उसे डा. गुरबख्श सिंह नैयर के पास ही लेकर जाते और वह उसका उपचार करते। ‘पंजाब केसरी ग्रुप’ द्वारा आतंकवाद पीड़ितों की सहायता के लिए शुरू किए गए ‘शहीद परिवार फंड’ के अंतर्गत आयोजित सहायता वितरण समारोहों में भाग लेने के लिए वह 3 बार जालंधर आए।

बड़े भाई श्री रमेश जी से उनका बहुत स्नेह था और जब कभी रमेश जी दिल्ली जाते थे तो उनसे अवश्य मिलते थे। इसी प्रकार पंजाब केसरी दिल्ली संस्करण का प्रकाशन शुरू करने के समय हुए विचार-विमर्श में उन्होंने सकारात्मक योगदान और सहयोग दिया। अपने जीवन के अंतिम क्षण तक सक्रिय रहे श्री कुलदीप नैयर देश के पुरानी परम्परा के वरिष्ठïतम पत्रकारों और राजनयिकों में से एक थे जिनकी कमी हमेशा महसूस की जाएगी।        —विजय कुमार

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