भाजपा और शिव सेना का समझौता ‘यह तो होना ही चाहिए था’

Edited By ,Updated: 20 Feb, 2019 04:13 AM

the agreement of bjp and shiv sena  it must have happened

पिछले कुछ समय के दौरान शिव सेना और भाजपा के नेता एक-दूसरे के प्रति जिस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे और जो घटनाक्रम चल रहा था उससे तो यही लगता था कि इस बार दोनों ही पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ेंगी परंतु राजनीतिक मजबूरियों के कारण दोनों ने ही...

पिछले कुछ समय के दौरान शिव सेना और भाजपा के नेता एक-दूसरे के प्रति जिस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे और जो घटनाक्रम चल रहा था उससे तो यही लगता था कि इस बार दोनों ही पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ेंगी परंतु राजनीतिक मजबूरियों के कारण दोनों ने ही इकट्ठे चुनाव लडऩे में ही भलाई समझी और शिव सेना 18 फरवरी को भाजपा के साथ मिल कर चुनाव लडऩा मान गई। 

उल्लेखनीय है कि 1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन सहयोगियों का तेजी से विस्तार हुआ व उन्होंने राजग के तीन दलों के गठबंधन को 26 दलों तक पहुंचा दिया परंतु उनके सक्रिय राजनीति से हटने के बाद इसके कई गठबंधन सहयोगी विभिन्न मुद्दों पर असहमति के चलते इसे छोड़ गए। वर्ष 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़ते समय राजग गठबंधन में 28 घटक दल थे और अब जबकि कुछ ही महीनों में एक बार फिर लोकसभा के चुनाव होने जा रहे हैं, 2014 से अब तक भाजपा से नाराज 16 मित्र दलों ने इसका साथ छोड़ दिया है। यहां तक कि 25 वर्षों से इसका महत्वपूर्ण सहयोगी दल शिव सेना भी भाजपा के नेतृत्व से नाराज चला आ रहा है। 

वर्षों तक ‘शिव सेना’ के जूनियर पार्टनर की भूमिका निभाती रही भाजपा के तेवर 2014 में भारी जीत के बाद बदल गए और इसने केंद्र सरकार में ‘शिव सेना’ को उसका पसंदीदा मंत्रालय नहीं दिया। महाराष्ट्र की भाजपा नीत देवेंद्र फडऩवीस सरकार में शिव सेना के 12 मंत्री हैं जिनमें 5 कैबिनेट दर्जे के हैं और केंद्र की मोदी सरकार में शिव सेना का केवल एक मंत्री है और इस पर वह कई बार नाखुशी जता चुकी है। ऐसी ही बातों तथा महत्वपूर्ण मुद्दों पर असहमति के चलते भाजपा और शिव सेना में कटुता शिखर पर पहुंच गई जो दोनों दलों द्वारा स्थानीय निकाय चुनाव अलग-अलग लडऩे के बाद और बढ़ गई। भाजपा से नाराजगी जताने के लिए शिव सेना नेतृत्व भाजपा पर आरोपों के गोले लगातार दागने लगा। 

इसी पृष्ठभूमि में गत वर्ष 23 जनवरी को शिव सेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में 2019 के लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव राजग से अलग होकर अपने दम पर लडऩे का प्रस्ताव पेश किया गया जिसे स्वीकार कर लिए जाने के बाद दोनों दलों के नेताओं में दूरियां और बढ़ती चली गईं। इस बीच इस वर्ष 23 जनवरी को महाराष्ट्र सरकार ने शिव सेना संस्थापक बाल ठाकरे के स्मारक के लिए 100 करोड़ रुपए के बजट को स्वीकृति दी जिसे लोकसभा चुनाव नजदीक होने के चलते दोनों दलों के संबंधों में सुधार की कोशिश के तौर पर देखा गया। शिव सेना ने इसके बावजूद 28 जनवरी को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में पार्टी सांसदों की बैठक के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव अकेले लडऩे व सभी 48 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा कर दी। 

शिव सेना की उक्त घोषणा के बाद मची हलचल के बीच भाजपा और शिव सेना नेताओं के मध्य मान-मनौव्वल का सिलसिला शुरू हुआ। अमित शाह ने पार्टी काडर को शिव सेना बारे कोई भी उकसाहट भरा बयान न देने का फरमान जारी किया और वार्ता प्रयास जारी रखे। अंतत: 18 फरवरी को भाजपा से गठबंधन जारी रखने पर शिव सेना नेता सहमत हो गए और अमित शाह तथा उद्धव ठाकरे के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस ने दोनों दलों के बीच समझौता होने की घोषणा कर दी। इसके अनुसार महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से भाजपा 25 पर और शिव सेना 23 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। दोनों पार्टियां इस वर्ष प्रस्तावित राज्य विधानसभा चुनाव में बराबर-बराबर सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगी। 

भाजपा और शिव सेना द्वारा गठबंधन जारी रखने और मिल कर परस्पर सहमति से चुनाव लडऩे का निर्णय सही है। दोनों दलों के बीच मनमुटाव के कारण जो रिश्ते खराब हो गए थे वे अब पुन: सही जगह पर आ गए हैं। इसी प्रकार भाजपा नेतृत्व को अपने अन्य रूठे हुए साथियों को भी मनाना चाहिए ताकि गठबंधन मजबूत हो। जितनी जल्दी भाजपा और इसके अन्य सहयोगी दल आपस में मिल-बैठ कर अपने मतभेद दूर कर सकेंगे उतना ही भाजपा के लिए अच्छा होगा।—विजय कुमार 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!