अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रहार ‘मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यों ज्यों दवा की’

Edited By ,Updated: 17 Jun, 2019 01:50 AM

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तीन दिनों में उत्तर प्रदेश में 5 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिसकी शुरूआत 8 जून को प्रशांत कन्नौजिया नामक पत्रकार की गिरफ्तारी के साथ हुई क्योंकि उसने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया था जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दफ्तर के बाहर...

तीन दिनों में उत्तर प्रदेश में 5 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिसकी शुरूआत 8 जून को प्रशांत कन्नौजिया नामक पत्रकार की गिरफ्तारी के साथ हुई क्योंकि उसने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया था जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दफ्तर के बाहर एक महिला पत्रकारों से बात कर रही थी। महिला का दावा था कि वीडियो चैट पर वह मुख्यमंत्री के साथ बातचीत करती है और उसने उन्हें विवाह प्रस्ताव भी भेजा है। 

रविवार को न्यूज चैनल ‘नेशन लाइव’ की प्रमुख इशिता सिंह और चैनल के एक एडिटर अनुज शुक्ला को भी कथित रूप से कन्नौजिया द्वारा शेयर किए वीडियोज को अपने चैनल पर प्रसारित करके मुख्यमंत्री की मानहानि के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। राज्य सरकार को आखिर कन्नौजिया को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रिहा करना पड़ा। अपने आदेश में सख्त शब्दों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘मामले में कानून का स्पष्ट उल्लंघन हुआ है’ और ‘स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है जिस पर कोई समझौता नहीं हो सकता।’ इस प्रकार अपने अभिव्यक्ति के अधिकार को कायम रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश के राजनीतिज्ञों को एक कड़ा संदेश दिया है परंतु प्रश्न यह है कि क्या इसे हमारे राजनीतिज्ञ समझेंगे या सम्मान भी करेंगे? 

गोरखपुर से सोमवार को गिरफ्तार दो लोग अभी भी जेल में हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में कथित आपत्तिजनक कमैंट्स करने के आरोप में गिरफ्तार इन लोगों में गोला इलाके का एक कबाडिय़ा तथा शाहपुर के नॄसग होम का एक मैनेजर शामिल है। परंतु इस प्रकार की कार्रवाई केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है, छत्तीसगढ़ की रायपुर पुलिस ने 34 वर्षीय ललित यादव को राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बारे में कथित आपत्तिजनक टिप्पणियों के आरोप में गिरफ्तार किया। ऐसा ही त्रिपुरा, असम और फिर से केरल में हुआ। निस्संदेह सोशल मीडिया को लेकर एक नीति बनाने की जरूरत है जिसमें तय हो कि कोई किसी भी अन्य व्यक्ति चाहे वह राजनीतिज्ञ हो या सुधारक, के विरुद्ध किस सीमा तक आरोप लगा सकता है। ऑनलाइन कमैंटिंग के बारे में कानूनी, तार्किक तथा मर्यादित मापदंड तय करने की जरूरत है। 

हालांकि गूगल, फेसबुक, व्हाट्सएप जैसी विभिन्न सोशल मीडिया कम्पनियां अपने सब्सक्राइबर्स पर पाबंदियों के पक्ष में नहीं हैं, ऐसे में सरकार को ही इस बारे में कोई नीति बनानी होगी परंतु ऐसी नीति सभी पर लागू होगी जिसमें पार्टी समॢथत ट्रोलर भी शामिल होंगे इसलिए इस दिशा में सख्त कदम उठाने में किसी पार्टी को खास दिलचस्पी नहीं है। बेशक हमारे राजनीतिज्ञ अपनी ‘छवि’ साफ रखने को लेकर बेहद संवेदनशील हैं परंतु उन्हें यह बात समझ लेने की जरूरत है कि आज केवल पत्रकार ही कैमरे से लैस नहीं हैं, हर आम आदमी के हाथ में कैमरे वाला फोन है जिसका मतलब है कि कोई भी बात अब ज्यादा देर तक छिप नहीं सकती। 

यदि आलोचना मर्ज है तो लोकतंत्र में गिरफ्तारी से यह बढ़ता जाएगा इसलिए इसे स्वीकार करने तथा शांतचित्त से इसका सामना करने के लिए तैयार रहना होगा। इसके साथ ही राजनीतिज्ञ यदि चाहें तो अपनी नजर में आपत्तिजनक आलोचना करने वालों के विरुद्ध वे मानहानि का केस कर सकते हैं। आलोचना पर शुरुआती प्रतिक्रिया स्वरूप गिरफ्तारी करना कदापि उचित नहीं है। इस तरह की गिरफ्तारियों को लेकर खौफ का माहौल बनता जा रहा है, इसे रोकना होगा।

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