एक राष्ट्र एक भाषा का विचार अब व्यावहारिक नहीं

Edited By ,Updated: 16 Sep, 2019 01:40 AM

the idea of one nation one language is no longer practical

भारतीय समाज को एकजुट करने वाली ताकत के रूप में हिन्दी के बारे में बात करने से पहले भारतीय भाषाओं के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य जान लेना आवश्यक है। सबसे पहले तो भारत की सबसे पुरानी तथा आज भी प्रयोग होने वाली भाषा कौन-सी है? उत्तर है तमिल। वास्तव...

भारतीय समाज को एकजुट करने वाली ताकत के रूप में हिन्दी के बारे में बात करने से पहले भारतीय भाषाओं के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य जान लेना आवश्यक है। सबसे पहले तो भारत की सबसे पुरानी तथा आज भी प्रयोग होने वाली भाषा कौन-सी है? उत्तर है तमिल। वास्तव में विश्व की 8 सबसे पुरानी तथा प्रयोग हो रही भाषाओं में यह पहले स्थान पर है। 

दूसरा, भारत में कितने लोग हिन्दी बोलते हैं? उत्तर है 41.03 प्रतिशत। भारत में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है अंग्रेजी जिसे 12.1 प्रतिशत लोग बोलते हैं। तीसरी सबसे अधिक 8.11 प्रतिशत लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है बंगाली जिसके बाद तेलगू का स्थान है। 

संविधान का आर्टिकल 343 तथा ऑफिशियल लैंग्वेज एक्ट ने 1950 में कहा कि संविधान में 14 राष्ट्रीय भाषाएं होंगी। तब से तीन बार संशोधन करके इनकी संख्या 22 हो चुकी है। यह महसूस किया गया कि हिन्दी तथा कुछ समय के लिए अंग्रेजी सरकारी भाषा रहेंगी। इसके अलावा क्षेत्रीय भाषाओं को भी बढ़ावा दिया जाएगा परंतु अनुसूचित भाषाओं को समान स्थान दिया जाएगा परंतु समय-समय पर हिन्दी को प्रांतों पर तथा अनुसूचित भाषाओं को हिन्दी की जगह आधिकारिक भाषा के रूप में न्यायालयों और विधानसभाओं आदि पर थोपने की कोशिश की जाती रही। ऐसे में केंद्र व राज्यों में तनावपूर्ण स्थिति बन जाती है। 

तमिल विरोध के चलते तमिलनाडु में सारा आधिकारिक कार्य तमिल में होने लगा तो पंजाब में पंजाबी सूबा आंदोलन इसकी वजह बना। महाराष्ट्र में शिवसेना ने केवल बम्बई का नाम मुम्बई ही नहीं किया, सभी दुकानों के नामों के बोर्ड भी मराठी में लिखने पर उन्होंने जोर दिया। हालांकि, यह एक अलग मुद्दा है कि शिवसेना नेता अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढऩे के लिए भेजते रहे। 

तो हिन्दी दिवस पर अमित शाह द्वारा वर्ष 2022 तक सभी को हिन्दी पढ़ाए जाने के बयान पर दक्षिण भारतीय राज्यों में हिन्दी विरोधी उबाल उठने लगा है। ‘एक राष्ट्र एक भाषा’ का विचार पुराना है और अप्रासंगिक हो चुका है। वास्तव में भारत ही था जो 19,569 से अधिक भाषाओं के बावजूद एक राष्ट्र होने का दीप्तिमान उदाहरण है। ई.यू. के गठन के समय उन्होंने भारत जैसे बहुराष्ट्रीय देश से प्रेरणा लेते हुए सभी राज्यों को सम्मानजनक स्थान दिया। इसराईली लेखक युवाल नोहा लिखते हैं, ‘‘मनुष्य छोटे-छोटे कबीलों में रहना पसंद करते थे परंतु जब ये कबीले बड़ी-बड़ी समस्याओं जैसे बाढ़, सूखा आदि का हल अकेले नहीं निकाल सके तो राष्ट्रों का निर्माण हुआ। ऐसे में जरूरी नहीं कि आप राष्ट्र के हर व्यक्ति का नाम जानते हों या उससे बात करते हों।’’ 

किसी देश को इकट्ठा रखने वाला कारक कोई सांझी भाषा या धर्म नहीं बल्कि यह अवधारणा है कि वे एक ही सांझी संस्कृति, सांझे अनुभव से संबंध रखते हैं और उनकी खुशियां और गम दोनों सांझे हो जाते हैं। संभवत: गृह मंत्री अमित शाह का चुनावों के अवसर पर बयान हिन्दी भाषी राज्यों और हिन्दी दिवस मनाने वाले लोगों के लिए एक आह्वïान था जो हिन्दी न बोलने वाले देश के 49 प्रतिशत लोगों को पसंद नहीं आया। द्रमुक के नेता एम.के. स्टालिन तो पहले ही हिन्दी विरोधी स्वर निकाल रहे हैं लिहाजा एक भाषा की बात करने से हम एक एकीकृत राष्ट्र की अवधारणा से हट कर संभवत: लोगों को विभाजन और भय की ओर ही ले जाएंगे।

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