‘उत्तर प्रदेश की जेलों में भारी भ्रष्टाचार’जेल मंत्री रामूवालिया की स्वीकारोक्ति

Edited By ,Updated: 09 Apr, 2016 01:46 AM

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हमारे देश की अनेक जेलें अपराधियों को सुधारने की बजाय उन्हें बिगाडऩे का अड्डा बन गई हैं। जेलों में बंद अपराधी न केवल जेलों में से ही सब तरह की गैर-कानूनी गतिविधियां चलाते हैं

हमारे देश की अनेक जेलें अपराधियों को सुधारने की बजाय उन्हें बिगाडऩे का अड्डा बन गई हैं। जेलों में बंद अपराधी न केवल जेलों में से ही सब तरह की गैर-कानूनी गतिविधियां चलाते हैं बल्कि उनमें गैंगवार तथा खून-खराबा होना व जेल अधिकारियों पर हमला करना भी अब आम बात हो गई है। 

 
जेलों में तमाम तरह के नशे, घातक हथियार और अन्य तमाम चीजें पहुंच रही हैं। अस्पताल में जांच के बहाने बाहर निकलने और सैर-सपाटे का अवसर भी मिल जाता है। उत्तर प्रदेश की जेलें इसका सजीव उदाहरण हैं जो अक्सर गोलियों के धमाकों से गूंज उठती हैं। 
 
* 17 जनवरी 2015 को मथुरा जेल में हुई गैंगवार में एक गिरोह के बदमाशों ने दूसरे गिरोह के 2 सदस्यों को गोलियां मार कर लहुलुहान कर दिया जिसमें एक कैदी की मृत्यु हो गई तथा अधिकारी मृतक का शव भी बरामद नहीं कर सके जिसके बारे में कहा जाता है कि हत्यारों ने उसे जला दिया। 
 
* 11 नवम्बर 2015 को मेरठ जेल में वर्चस्व की जंग को लेकर कैदियों के 2 गिरोह भिड़ गए तथा एक कैदी ने दूसरे कैदी को गंभीर रूप से घायल कर दिया। 
 
* 10 जनवरी 2016 को प्रतापगढ़ जेल में किसी काम से पहुंचे एक सिपाही को जेल में चंद हत्यारोपियों ने घेर कर उसे बुरी तरह पीट कर लहूलुहान कर दिया और इसके अगले ही दिन 11 जनवरी को गाजीपुर जेल में कैदियों की गिनती के दौरान कुछ कैदियों ने डिप्टी जेलर पर हमला कर दिया। 
 
* 14 मार्च 2016 को मऊ जेल में एक हत्या के सिलसिले में बंद विक्रांत यादव ने उससे पूछताछ करने पहुंचे एक पुलिस अधिकारी पर हमला कर दिया। 
 
* 02 अप्रैल, 2016 को वाराणसी की जिला जेल में सुबह-सवेरे 9.30 बजे ही खराब खाने को लेकर कैदियों और सुरक्षा कर्मचारियों के बीच हिंसा भड़क उठी और जम कर मारपीट तथा पथराव हुआ। कैदियों का आरोप है कि उन्हें जेल में कैंटीन के भोजन से लेकर बैरक बदलवाने और अपने परिवार के सदस्यों से मिलने तक के लिए कर्मचारियों को ‘सुविधा शुल्क’ देना पड़ता है। 
 
जेल में  परेड के दौरान अजय यादव नामक एक कैदी दो मिनट देर से पहुंचा तो नाराज डिप्टी जेलर अजय कुमार राय के निर्देश पर जेल के एक कर्मचारी ने उसे पीट दिया। कैदियों का कहना है कि पिटाई का कारण अजय का देर से आना नहीं बल्कि उसके द्वारा अधिकारियों को ‘सुविधा शुल्क’ न देना था।
 
अजय को पिटता देख कर सभी कैदी इकठ्ठे होकर विरोध करने लगे तो वहां पहुंचे जेल सुपरिंटैंडैंट आशीष तिवारी ने भी कथित रूप से डिप्टी जेलर का ही पक्ष लिया जिस पर कैदी भड़क उठे। कैदियों ने सभी बैरकों को जाने वाले मुख्य गेट अंदर से बंद कर दिए और जेल सुपरिंटैंडैंट तथा डिप्टी जेलर को बुरी तरह पीटा। पुलिस की हवाई फायरिंग के जवाब में कैदियों ने जम कर पथराव भी किया और शाम के 4.30 बजे तक पूरे 7 घंटे उन्हें बंधक बनाए रखा। 
 
इस दौरान डिप्टी जेलर सहित कई पुलिस कर्मी तथा सुरक्षा कर्मचारियों की फायरिंग से आधा दर्जन के लगभग कैदी भी घायल हो गए। हालात इस कदर बेकाबू हो गए कि जिला मैजिस्ट्रेट ने स्वयं वहां आकर कैदियों की मांगें मानीं, जेल सुपरिंटैंडैंट तथा डिप्टी जेलर को कार्यमुक्त किया और पड़़ोसी जिलों से सुरक्षा बल बुला कर स्थिति को नियंत्रित किया। 
 
प्रदेश की जेलों की इस दुर्दशा और वहां व्याप्त भ्रष्टाचार से आहत राज्य के जेल मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया ने 6 अप्रैल को एक प्रैस कान्फ्रैंस में कहा कि कैदी को पैरोल देने के लिए रिश्वत ली जाती है। उन्होंने एक व्यक्ति भी पेश किया जिसके बेटे को पैरोल दिलवाने के लिए उससे रिश्वत ली गई थी।  
 
उन्होंने तो यहां तक कहा कि ‘‘जम्मू-कश्मीर में शांति आ सकती है, उत्तर प्रदेश की जेलों में नहीं। यहां की जेलों जैसा भ्रष्टïाचार कहीं भी नहीं है तथा यहां के जेलर आज भी अंग्रेजी हुकूमत वाली मानसिकता से बाहर नहीं आए हैं।’’
 
देश की अन्य जेलों में भी यही स्थिति है। इस समय तो हमारी जेलों व सुधार घरों का माहौल ऐसा है कि वहां कुछ समय बिताने वाला व्यक्ति भी पहले की तुलना में अधिक शातिर और मंजा हुआ अपराधी बन कर बाहर आता है। 
 
ऐसे में जब तक देश के जेल प्रबंधन में शुचिता नहीं लाई जाती और वहां होने वाले अपराधों के लिए संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों को जवाबदेह नहीं बनाया जाता, नशीले पदार्थों, हथियारों, मोबाइल फोनों आदि का प्रवेश रोकने के लिए सुरक्षा प्रबंध कड़े नहीं किए जाते तब तक वहां इसी प्रकार गैंगवारें होती रहेंगी और खून बहता रहेगा।
 

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