गांव-जहां गंदगी, प्रदूषण और शराब के कारण नहीं बज रहीं शहनाइयां

Edited By ,Updated: 07 Nov, 2019 12:17 AM

village  where the clarinets are not playing due to dirt pollution and alcohol

स्वतंत्रता के 72 वर्ष बाद भी देश में अनेक स्थान ऐसे हैं जहां रहने वाले लोग जीवनोपयोगी सुविधाओं की कमी और शराबनोशी जैसी बुराइयों का दंश झेल रहे हैं जिससे उनका पारिवारिक जीवन प्रभावित हो रहा...

स्वतंत्रता के 72 वर्ष बाद भी देश में अनेक स्थान ऐसे हैं जहां रहने वाले लोग जीवनोपयोगी सुविधाओं की कमी और शराबनोशी जैसी बुराइयों का दंश झेल रहे हैं जिससे उनका पारिवारिक जीवन प्रभावित हो रहा है।

मध्य प्रदेश के मंडला जिले में कई गांवों के लोग पानी के संकट से जूझ रहे हैं। हृदय नगर नामक गांव में पानी की कमी के कारण कोई भी व्यक्ति अपनी बेटी नहीं देना चाहता। रिश्ता लेकर आने वाला हर व्यक्ति यह कह कर लौट जाता है कि यहां तो उसकी बेटी प्यासी मर जाएगी। इसी कारण गांव के आधे से अधिक युवक कुंवारे बैठे हैं। गांव वासी मात्र एक हैंडपम्प पर आश्रित हैं जो गांव से एक किलोमीटर दूर है।

मध्य प्रदेश के ही मुरैना में निचली बहराई नामक गांव में वर्षभर पानी का अभाव रहने से न सिर्फ यहां के लोगों की किसानी चौपट हो गई बल्कि मवेशियों का चारा न मिलने के कारण वे पशु पालन भी नहीं कर सकते।

उल्लेखनीय है कि यहां आवागमन के साधन भी नहीं हैं और बिजली, परिवहन तथा अन्य बुनियादी सुविधाओं के भी न होने के कारण अधिकांश परिवारों के 40-40 वर्ष के लड़के भी शादी के लिए तरस रहे हैं। देश में भले ही स्वच्छता का नारा बुलंद हो रहा है परंतु उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के आसपास के अनेक गांवों पनकी पड़ाव, जमुई, बदुआपुर और सरायमिता आदि में फैली गंदगी और कचरे ने बर्बादी ला दी है। दुर्र्गंध और गंदगी से पैदा होने वाली बीमारियां बड़ी तेजी से फैली हैं और यहां 70 प्रतिशत लोग टी.बी. और दमा जैसे रोगों से पीड़ित हैं।

जहां इस इलाके में ‘शारीरिक रोग’ बढ़ रहे हैं वहीं लड़की वालों द्वारा इन गांवो में अपनी बेटियां न ब्याहने के कारण यहां के युवकों में ‘कुंवारा रोग’ भी छूत की बीमारी की तरह बढ़ रहा है। इन गांवों में 5 वर्षों से कोई शादी नहीं हो पाई और यदि भूले-भटके कोई शादी हुई भी तो वह टूट गई। बदुआपुर के तालाब को कई टन कूड़े का डम्प बना दिया गया है। लोगों का कहना है कि पूरे कानपुर शहर की गंदगी उनके माथे मढ़ दी गई है। इस कूड़े में गर्मियों के मौसम में अक्सर आग लगती रहती है जिस कारण यहां गर्मियों में कोई नहीं रुकता।

इसके आसपास के गांवों कलकपुरवा, बनपुरवा, सुंदर नगर, स्पात नगर आदि में भी वर्षों से शहनाइयां नहीं बजीं। यहां कूड़े, दुर्र्गंध और बीमारियों का पता चलने पर लड़की वाले बिना रिश्ता किए लौट जाते हैं। बंगाल के पश्चिमी मिदनापुर में कई गांवों की सड़कों की हालत बरसात में इतनी खराब हो जाती है कि लोगों को इन पर से गुजरने के लिए 10 बार सोचना पड़ता है। इसी कारण यहां भी लड़कों की शादी नहीं हो पाती। कच्ची शराब के लिए बदनाम गोरखपुर शहर के निकट सटे गांव बहरामपुर दक्षिणी में अपनी उम्र पूरी करके कम ही लोग मरते हैं। यहां कम से कम 85 महिलाओं के पति शराब की भेंट चढ़ गए हैं। शराब के लिए बदनाम होने के कारण इस गांव के लड़कों की शादी भी आसानी से नहीं होती और सैंकड़ों युवक यहां कुंवारे बैठे हैं।

पानीपत से 13 किलोमीटर दूर बसे खुखराना गांव को थर्मल प्लांट की राख ने उजाड़ दिया है। लोग घरों के बाहर नहीं बैठ सकते। गांव में पानी और हवा इतनी खराब है कि यहां गांव में मेहमान रुकना पसंद ही नहीं करते और न ही यहां अपनी बेटियों की शादी करना अच्छा समझते हैं। यहां का पानी इतना खराब हो चुका है कि यदि रात को पानी का गिलास भर कर रखा जाए तो सुबह होने तक उसका रंग पीला पड़ जाता है और प्रदूषण के कारण बच्चों को छोटी उम्र में ही चश्मा लग गया है।

यह कुछ स्थानों की ही कहानी नहीं बल्कि देश में अनेक ऐसे स्थान हैं जहां शराब एवं अन्य नशों जैसी बुराइयों और सुविधाओं के अभाव के कारण लोगों को नारकीय जीवन बिताने को विवश होना पड़ रहा है। संबंधित प्रशासन द्वारा बुनियादी सुविधाओं में सुधार लाकर और शराब जैसी बुराइयों को सख्तीपूर्वक रोक कर ही इस स्थिति को सुधारा जा सकता है।  —विजय कुमार 

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