अपनी अनमोल प्राचीन धरोहरों को संभालने में विफल हैं हम

Edited By ,Updated: 26 Sep, 2022 05:14 AM

we have failed to take care of our precious ancient heritage

8 वर्ष बाद भी ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग’ (ए.एस.आई.) पुराना किला में खुदाई के दौरान मिले पिछले 2,500 वर्षों के सांस्कृतिक भंडार को संरक्षित करने में विफल रहा है।

8 वर्ष बाद भी ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग’ (ए.एस.आई.) पुराना किला में खुदाई के दौरान मिले पिछले 2,500 वर्षों के सांस्कृतिक भंडार को संरक्षित करने में विफल रहा है। तीन सदी ईसा पूर्व तक जाने वाला व पूर्व मौर्य काल से मुगल काल तक के सांस्कृतिक संबंधों को प्रदर्शित करने वाला दिल्ली में यह एकमात्र स्थल है।

इन अवशेषों को प्रदर्शित करते समय उनकी सुरक्षा के लिए जिस शैड का निर्माण किया जाना था, उसे भी अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। वर्ष 2014 में खुदाई के बाद ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग’ के अधिकारियों ने एक छत के साथ साइट को कवर करने की योजना बना कर जनता के सामने प्रदर्शित करने के बारे में सोचा था, जिसके माध्यम से शहर के इतिहास और इस स्थल से जुड़े 9 ऐतिहासिक युगों के बारे में जनता को बताया जाना वांछित था। परंतु यहां पर अभी तक बुनियादी ढांचा ही नहीं बना है और ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग’ अभी भी केवल शैड डिजाइन को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है।

उक्त विभाग के निदेशक और प्रवक्ता वसंत स्वर्णकार ने माना कि वास्तव में यह योजना थी कि साइट को उचित ढंग से कवर करने के बाद 2014 की खुदाई के परिणाम जनता के लिए प्रदॢशत किए जाएंगे लेकिन खुदाई स्थल को फिर से खोलने और खुदाई वाले क्षेत्र में शैड उपलब्ध कराने के प्रयास अभी भी हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि खुदाई स्थलों को ए.एस.आई. अभिलेखागार (आर्कइव्स) के पुराने चित्रों और तस्वीरों की मदद से संरक्षित किया जाएगा। अब तक प्राचीन संरचनाओं की रक्षा के लिए खोदी गई जगहों को मिट्टी से पाट दिया जाता रहा है।

पिछले 60 वर्षों में पुराना किला में खुदाई के तीन अभियान चलाए गए हैं। खुदाई में मिली कलाकृतियों में मौर्य काल के टेराकोटा मोती और खिलौने, शुंग युग की टेराकोटा की यक्षी मूॢत, कुषाण युग की टेराकोटा मूॢतयां और तांबे के सिक्के, गुप्त काल की मोहरें और सिक्के, मूंगा, विभिन्न प्रकार के मोती, क्रिस्टल और मुगल सल्तनत के काल के सिक्के और चीनी शिलालेखों के साथ चीनी मिट्टी के बर्तन, कांच की शराब की बोतलें और मुगल काल से सम्बन्धित एक सोने की बाली शामिल हैं।

पहली खुदाई वर्ष 1954-55 के दौरान प्रसिद्ध पुरातत्वविद् बी.बी. लाल ने की थी, जिनकी इस महीने के शुरू में मृत्यु हो गई। बी.बी. लाल ने टीले के नीचे चित्रित ‘ग्रे वेयर कल्चर’ के अवशेषों का पता लगाया था। इन अवशेषों के आधार पर उन्होंने दावा किया था कि पुराना किला इंद्रप्रस्थ के पांडव साम्राज्य का हिस्सा था और अनुमान लगाया कि महाकाव्यों में वॢणत युद्ध 900 ईसा पूर्व में हुआ था। वर्ष 2014 में खुदाई के दौरान, चित्रित भूरे रंग के बर्तनों के अवशेष पाए गए तथा 2017 में एक अन्य खुदाई ने इस स्थल के लौह युग के पूर्व-मौर्य काल से संबंधों के अस्तित्व की पुष्टि की।

मौर्य काल से पहले के दौर की तथा तीसरी सदी ईस्वी पूर्व से पहले की इतनी महत्वपूर्ण धरोहरें देश की राजधानी दिल्ली में होने के बावजूद उनको भी यदि पुरातत्व विभाग न संभाल पाए तो इससे बढ़ कर दुखद बात और क्या हो सकती है। पंजाब के राजपुरा और हरियाणा में भी पुरातात्विक महत्व की अनेक धरोहरें देखभाल की कमी के कारण खराब हो रहीे हैं और हम बातें तो बहुत करते हैं और उस पर गर्व करते नहीं थकते, परंतु बात केवल गर्व करने से ही नहीं बनेगी।

हमारे पुरातत्व विभाग के साथ-साथ पुरातत्व में दिलचस्पी रखने वालों और अपने समृद्ध अतीत पर गर्व करने वालों को अपनी प्राचीन गौरवमयी धरोहरों की रखवाली करने की दिशा में कठोर कदम उठाने की भी आवश्यकता है। यदि हमने अपनी प्राचीन अनमोल धरोहर ही नहीं संभाली तो इससे बुरी बात और क्या हो सकती है! यूं तो हमारी सरकार बहुत सारे पुरातन स्थलों का निजीकरण करने की कोशिश कर रही है।

ऐसे में शायद और भी प्राचीन इमारतों का निजीकरण करने की कोशिश की जानी चाहिए। अपने पुरातात्विक महत्व के स्थलों व इमारतों के संरक्षण के संबंध में यदि हमें कुछ सीखना है तो इसराईल, इंगलैंड और इटली से काफी कुछ सीख सकते हैं।

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