कश्मीर बारे एक दंत कथा ऐसी भी

Edited By ,Updated: 26 Oct, 2019 01:25 AM

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5अगस्त, 2019 यानी कश्मीर घाटी का विशेष अलंकार-अनुच्छेद 370 के हट जाने पर मैंने कश्मीर घाटी पर अपनी ही लाइब्रेरी से कोई बारह पुस्तकें सामने रखीं। उलटा-पुलटा सभी को पर मन लिखने को तैयार नहीं हुआ। आज मुकेरियां चुनाव की थोड़ी धूल छंटी तो कश्मीर घाटी के...

5 अगस्त, 2019 यानी कश्मीर घाटी का विशेष अलंकार-अनुच्छेद 370 के हट जाने पर मैंने कश्मीर घाटी पर अपनी ही लाइब्रेरी से कोई बारह पुस्तकें सामने रखीं। उलटा-पुलटा सभी को पर मन लिखने को तैयार नहीं हुआ। आज मुकेरियां चुनाव की थोड़ी धूल छंटी तो कश्मीर घाटी के उद्गम की सोचने लगा। पढऩे लगा तो पता चला कि कश्मीर घाटी के इतिहास में सुनहरी पृष्ठ यदि दो हैं तो इसके इतिहास में शोक, षड्यंत्र, धोखे, दबाव-प्रभाव, उतार-चढ़ाव और दुराचार के सैंकड़ों पृष्ठ पढऩे को मिले। कश्मीर घाटी आज ही यंत्रणाओं, यातनाओं का पुङ्क्षलदा नहीं, इसका जन्म ही त्रासदियों को समेटे है। कश्मीर का इतिहास राजाओं, सुल्तानों, पटरानियों का कथानक ही नहीं बल्कि यहां के निवासियों के जीवन-यापन की कहानी है। ङ्क्षहदू धर्म की विडम्बना थी कि इसमें इतिहास लिखने की परम्परा ही नहीं रही।

भारत के इतिहास से यदि कश्मीर घाटी के इतिहास के पृष्ठ निकाल दें तो इसका सारा इतिहास नीरस रह जाएगा। कश्मीर घाटी के इतिहास के दर्शन 1148-50 ईस्वी के बीच रचे गए जो कल्हण के महाकाव्य ‘राजतरंगिणी’ से होते हुए नजर आते हैं। ‘राजतरंगिणी’ अर्थात राजाओं का दरिया। संस्कृत का यह महाकाव्य वास्तव में कविता के रूप में कश्मीर घाटी का इतिहास है। कश्मीर घाटी विश्व के प्राचीनतम और गौरवमयी दो धर्मों ङ्क्षहदू और बौद्ध की जन्मस्थली है। यहां के निवासियों ने इन दोनों संस्कृतियों को अपने-अपने ढंग से संभाला और संवारा है। ‘शैव मत’ और ‘ब्रह्मवाद’ का जीवनदर्शन यहीं से सीखने को मिला। 

कश्मीर घाटी शिव की अर्धांगिनी ‘पार्वती’ का प्रदेश है। महाराजा कनिष्क ने बौद्ध धर्म का चौथा महा सम्मेलन इसी कश्मीर घाटी में आयोजित करवाया था। विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा के अवशेष श्रीनगर शहर से थोड़ी दूरी पर ही मिले हैं। इस्लाम तो कश्मीर-घाटी में चौदहवीं शताब्दी में आया। सभी जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर के स्वर्गीय मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के पितामह पंडित बाल मुकंद रैना थे। अवन्तीपुरम, मार्तंड-मंदिर (सूर्य मंदिर) मट्टन, श्रीनगर इत्यादि नाम हिंदू संस्कृति के प्रतीक हैं। 

कश्यप ऋषि से इसे कश्मीर नाम मिला। दूसरा, केसर की खेती इसे कश्मीरियत से जोड़ती नजर आती है। महाकवि तुलसीदास की अमरकृति ‘श्रीराम चरितमानस’ के किष्किंधा-कांड में भगवान राम वर्षा ऋतु के बीत जाने पर लक्ष्मण से प्रकृति का आनंद लेते कुछ पंक्तियां कहते हैं :
बरषा बिगत सरद ऋतु आई।
लछमण देखहु परम सुहाई॥
फूलें कास सकल महि छाई।
जनु बरषा कृत प्रगट बुढ़ाई॥ 

यहां मैं ‘कास’ शब्द पर जोर देना चाहता हूं। ‘कास’ एक प्रकार का घास है। संस्कृत में ‘कास’ शब्द ‘केसर’ के लिए भी प्रयोग होता है। कश्मीर में केसर की खेती आम होती है। संभवत: इसी ‘कास’ शब्द से चलते-चलते कश्मीर शब्द बन गया है। कश्मीर शब्द के उद्गम पर समय नष्ट न कर मैं एक पौराणिक कथा की ओर अपने पाठकों को लिए चलता हूं। ‘नीलमता-पुराण’ के अनुसार इस प्रदेश का नाम ‘सतिदेश’ था जिसकी आकृति किसी आधुनिक ‘डैम’ के समान थी। दोनों ओर ऊंची-ऊंची पर्वत शृंखलाएं और बीच में एक बड़ी लम्बी-चौड़ी विशालकाय झील। वर्षों पहले एक बालक एक विशेष उद्देश्य से ‘सतिदेश’ में आया। इस बालक का नाम ‘जलोदभव’ था जिसका अर्थ है पानी से पैदा हुआ। पानी में रह कर इसने तपस्या की और ‘ब्रह्मा’ जी से वरदान ले लिया कि ‘जब तक मैं पानी में रहूं मुझे कोई न मार सके।’ ब्रह्मा जी ने ‘तथास्तु’ कह दिया। बालक जलोदभव युवा हो गया। उसका दिमाग घूम गया। वह लोगों की मृत्यु का कारण बनने लगा, विनाश करने लगा। चारों तरफ इसने उत्पात मचा दिया। वह जिद्दी और क्रूर भी था। इसका पिता नील बेचारा परेशान हो उठा। उसे यह सब बर्दाश्त नहीं था। 

नील अपने पिता कश्यप ऋषि के पास जलोदभव की शिकायत लेकर पहुंचा। कश्यप ऋषि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास जलोदभव को ठिकाने लगाने की प्रार्थना करने लगे। विष्णु भगवान ने जलोदभव को सीधे रास्ते लगाने की कोशिश की परन्तु उसे तो ब्रह्मा ने वरदान दे रखा था कि जब तक वह पानी में रहेगा उसे कोई नहीं मार सकेगा। जब-जब जलोदभव को मारने का देवताओं ने यत्न किया वह ‘सतिसर’ झील में जा छुपता। देवताओं को ङ्क्षचता सताने लगी कि जलोदभव को कैसे मारा जाए? नीलमता पुराण में ऐसी कथा आती है कि देवताओं ने निर्णय किया कि ‘सतिसर’ झील को ही सुखा दिया जाए। बारह स्थानों से ‘सतिसर’ झील को घेरे हुए पहाड़ों को चीरा जाने लगा। बारह सुरंगों से पानी आसमान को छूता हुआ ऊंची-ऊंची तरंगों से बहने लगा। जहां बारह सुरंगों का पानी निकला वहां ‘बारामूला’ शहर बसा। ‘सतिसर’ झील सूख गई। जलोदभव को छुपने को कहीं पानी नहीं मिला। परिणामस्वरूप भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से जलोदभव का सिर धड़ से अलग कर दिया। लोगों ने सुख की सांस ली। 

इसी ‘सतिसर’ झील में समय बीतने पर नई सभ्यता ने जन्म लिया। यही ‘सतिसर’ झील कालांतर में कश्मीर घाटी के नाम से विकसित हुई। इसी कश्मीर घाटी का लम्बा इतिहास है। मिथिक कथाओं का कोई ठोस प्रमाण नहीं होता परन्तु ऐसी कथाएं लोक कथाओं में प्रचलित हो जाती हैं परन्तु यह सच है कि भौगोलिक परिवर्तनों ने इस ‘सतिसर’ झील को समयानुसार वर्तमान कश्मीर घाटी बना दिया। यह 5000 लाख साल पुरानी है। 2000 ईस्वी पूर्व के अवशेष तो मिले ही हैं। नाग, खासी, धर, भूटा, निषाद इत्याादि जातियों के अस्तित्व को कश्मीर घाटी से नकारा नहीं जा सकता। राजा के दैवी सिद्धांत का उद्गम कश्मीर घाटी से शुरू हुआ। विदेशी आक्रमणकारी इसी घाटी की सुंदरता के प्रलोभन से भारत में घुसे। इस घाटी की सीमाएं रूस, चीन, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से सटी हुई हैं। भारत द्रोही शक्तियां इसी कश्मीर घाटी को डकार जाना चाहती हैं। कभी यह घाटी ङ्क्षहदू सभ्यता और बौद्ध धर्म की संरक्षक थी, आज इस्लामिक ताकतें दनदना रही हैं।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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