आखिर मेरा कसूर क्या है

Edited By ,Updated: 02 Aug, 2022 05:05 AM

after all what is my fault

सुबह का वक्त है। दरवाजे पर जोर से घंटी बजती है। दरवाजा खोलने पर आपको अफसर नुमा लोग दिखाई देते हैं, ‘‘हम ई.डी. से आए हैं। आपको पूछताछ के लिए हमारे साथ चलना होगा, अभी।’’ उनके

सुबह का वक्त है। दरवाजे पर जोर से घंटी बजती है। दरवाजा खोलने पर आपको अफसर नुमा लोग दिखाई देते हैं, ‘‘हम ई.डी. से आए हैं। आपको पूछताछ के लिए हमारे साथ चलना होगा, अभी।’’ उनके दफ्तर पहुंचने पर आप से पूछा जाता है, ‘‘क्या आपने पिछले साल अपना एक प्लॉट एक गुप्ता जी को बेचा था?’’ आप कहते हैं, ‘‘हां, मेरा अपना प्लॉट था, कोई विवादित संपत्ति नहीं थी। एक नंबर में खरीदा था, कोई ब्लैक का मामला नहीं है। बाकायदा रजिस्ट्री हुई है, गवाह हैं, सारे प्रमाण हैं।’’ 

उन्हें आपके प्रमाण में कोई दिलचस्पी नहीं है, ‘‘आपको पता है कि जिन गुप्ता जी को आपने प्लॉट बेचा था, उस पर 420 का केस है, अपने बिजनैस में धांधली करने का आरोप है?’’ आप हंसते हैं, ‘‘भाई मैंने उसे प्लॉट बेचा है, कन्यादान नहीं किया। प्रॉपर्टी एजैंट ने डील करवाई थी। पेमैंट चैक से मिल रहा था। उनसे, उनके परिवार या बिजनैस से मेरा कोई लेना-देना नहीं है। कुछ महीने पहले मैंने अखबार में पढ़ा था कि उन पर कोई पर्चा दर्ज हुआ है। लेकिन वो हमारी डील के बाद की बात है।’’  आप सोचते हैं कि गलतफहमी दूर हुई, मामला सुलट गया। 

लेकिन अब पहाड़ टूटता है, ‘‘लगता है आप PMLA (प्रिवैंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) के बारे में नहीं जानते। इस कानून के तहत आप अपराधी हैं, चूंकि अपराध की कमाई आपकी जेब में पहुंची है। अब गुप्ता जी ही नहीं, आप भी अपराधी हैं। हम आप को गिरफ्तार कर रहे हैं!’’ अब आपको याद आता है कि पिछले महीने आपकी स्थानीय एस.डी.एम. से कहा-सुनी हो गई थी। उसने आपको धमकाया था ‘जेल की चक्की पिसवाऊंगा तुमसे!’ 

फिर भी आपके होशो हवास कायम हैं, गिरफ्तार करना है तो एफ.आई.आर. तो दीजिए मुझे’’। ई.डी. का अफसर मुस्कुराता है, ‘‘हमारे यहां कोई एफ.आई.आर. नहीं होती। यह पुलिस थाना नहीं है। हमारे यहां प्राथमिक रिपोर्ट को ई.सी.आई.आर. कहते हैं।’’ झख मारकर आप कहते हैं, ‘‘अच्छा भाई, जो भी नाम होता हो, मुझे उसकी कॉपी तो दो।’’ वे फिर मुस्कुराते हैं, ‘‘जी नहीं, ई.सी.आई.आर. एक गुप्त दस्तावेज है, अपराधी को नहीं दिया जा सकता। और यह भी सुन लीजिए। आपका मुकद्दमा सी.आर.पी.सी. के हिसाब से नहीं चलेगा। हमारे अपने नियम हैं। और वह भी गुप्त हैं! 

‘‘आप हैरान हैं, ‘‘भाई, जिसे कत्ल के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है एफ.आई.आर. की कापी तो उसे भी दी जाती है। कोर्ट मार्शल के भी नियम बताए जाते हैं। और सुनिए, मैं आरोपी हूं, अभी से अपराधी नहीं हूं।’’ अब उनकी मुस्कुराहट कुटिल है, प्रिवैंशन ऑफ मनी लॉड्रिंग एक्ट के मुताबिक क्योंकि ई.डी. ने आप पर शक किया है इसलिए अब आप अपराधी हैं। अब आपको साबित करना होगा कि आप निर्दोष हैं।’’ 

थक कर आप कहते हैं, ‘‘भाई, गलती हुई वो प्लॉट बेचा। मैं पैसे वापस कर दूंगा, मेरा प्लॉट वापस कर दो।’’ लेकिन पता चलता है कि इसके लिए बहुत देर हो चुकी है। अब तो प्लॉट को सरकार ने अटैच कर लिया है, मतलब अब आप उसे बेच-खरीद नहीं सकते। यूं भी अब अपराध तो हो गया। 

अच्छे फंसे! अगले दिन आपका वकील पहुंच गया है। आप जमानत की अर्जी देने को कहते हैं। वो कहता है, ‘‘बाबूजी इस मामले में जमानत नामुमकिन समझिए। मतलब यह कि जमानत तभी मिलेगी अगर कोर्ट संतुष्ट हो जाए कि आप के खिलाफ केस झूठा है और यह कि आप आगे से ऐसा अपराध नहीं करेंगे।’’ आप झुंझला उठते हैं, ‘‘मुझे तो यह भी ठीक से नहीं पता कि मेरा अपराध है क्या। मैं साबित कैसे करूंगा कि मैं बेकसूर हूं? वैसे भी कौन जज गारंटी ले सकता है कि ऐसी दुर्घटना किसी के साथ दोबारा नहीं होगी?’’  वकील सिर झुका के कहता है ‘‘इसीलिए मैंने कहा था कि इस मामले में जमानत मिलना नामुमकिन है।’’ 

अब जेल में कई महीने बीत चुके हैं। आप टूट चुके हैं। व्यवसाय में घाटा होना शुरू हो गया है। पड़ोसियों की कानाफूसी और सड़क पर ताने सुन-सुनकर घरवालों और बच्चों ने गली-मोहल्ले में बाहर निकलना बंद कर दिया है। आपके दिमाग में बस बार-बार एक बात घूमती है, ‘‘मैंने तो कुछ किया ही नहीं। मैंने तो बस एक प्लॉट बेचा था। कोई चोरी नहीं की, हेराफेरी नहीं की। कोई बताए तो कि मेरा अपराध क्या है?’’ वकील बोलता है, ‘‘सवाल सच-झूठ का नहीं, कानून  का है।’’  

आपके हमदर्द समझाते हैं, ‘‘पानी में रहकर मगर से बैर नहीं किया जाता। क्या जरूरत थी आई.ए.एस. अफसर से पंगा लेने की? आप नहीं जानते यह कानून बना तो था आतंकवाद की फंडिंग को रोकने के लिए, लेकिन पिछले कई सालों से इसे राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। पहले हर साल औसतन 100 से 200 केस हुआ करते थे, लेकिन पिछले तीन साल में इस कानून के तहत 562, फिर 981 और 1180 केस दर्ज किए गए हैं। चने के साथ-साथ आप जैसा घुन भी पिस गया।’’ 

आपका चेहरा देखकर वकील दिलासा देता है, ‘‘यह मत मानिए कि सजा हो जाएगी। जब सुनवाई शुरू होगी, तब हम आपका सच जज साहब के सामने रखेंगे। मुझे पूरा भरोसा है आप निर्दोष हैं और छूटेंगे। अब तक इस कानून में 5400 केस हुए हैं और सिर्फ 23 लोगों को सजा हुई है।’’ ‘‘लेकिन कब? पांच-दस साल जेल में बिताने के बाद? सारे खानदान का मुंह काला करवाने के बाद? वकील साहब यह तो अंधेरगर्दी है। आप हाई कोर्ट में अपील की तैयारी कीजिए। हम इस असंवैधानिक कानून को ही चैलेंज करेंगे।’’ अब वकील का सिर वाकई झुका हुआ था। 

‘‘बाबूजी यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाकर वापस आ गया है। लगता है आप अखबार नहीं पढ़ते। पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुना दिया है। जस्टिस खानविलकर ने रिटायरमैंट से पहले अपने अंतिम फैसले में इस कानून की सभी धाराओं को सही ठहराया है। अब यही न्याय है।’’-योगेन्द्र यादव

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