उम्र हमारी राह में कोई रोड़े नहीं अटकाती

Edited By Updated: 18 Nov, 2025 05:23 AM

age is no obstacle in our path

पिछले दिनों एक खबर ने बहुत अच्छा महसूस कराया। खबर यों थी कि तमिलनाडु में अमुथावल्ली नाम की एक महिला रहती हैं। उनकी उम्र 49 साल है। उनकी 18 साल की बेटी डॉक्टर बनना चाहती थी। इसलिए नीट परीक्षा की तैयारी कर रही थी। अमुथा बेटी को पढ़ते देखतीं, वह उसकी...

पिछले दिनों एक खबर ने बहुत अच्छा महसूस कराया। खबर यों थी कि तमिलनाडु में अमुथावल्ली नाम की एक महिला रहती हैं। उनकी उम्र 49 साल है। उनकी 18 साल की बेटी डॉक्टर बनना चाहती थी। इसलिए नीट परीक्षा की तैयारी कर रही थी। अमुथा बेटी को पढ़ते देखतीं, वह उसकी किताबें उठाकर पढ़ती रहतीं। बेटी के साथ-साथ उनके मन में भी इच्छा जागती। अंतत: उन्होंने भी एक फैसला लिया। बेटी के साथ उन्होंने भी नीट का इम्तिहान दिया और  परिणाम यह हुआ कि बेटी के साथ-साथ अमुथावल्ली ने भी नीट की परीक्षा में सफलता प्राप्त कर ली। अब मां-बेटी दोनों पढ़ाई साथ-साथ करेंगी और साथ-साथ ही डॉक्टर बनेंगी। 

यह एक मिसाल है कि अगर कोई कुछ करना चाहे तो कभी भी कर सकता है। उम्र उसमें कभी कोई बाधा नहीं बनती। बस खुद में हिम्मत और आत्मविश्वास लाने की जरूरत होती है। जब से यह खबर पढ़ी है, तब से न जाने ऐसी कितनी कथाएं दिमाग में कौंधने लगीं। जहां स्त्रियों ने बड़ी उम्र में अपने मन की करने की सोची और वे कामयाब रहीं।  एक बिल्कुल अपने आसपास की घटना बताती हूं। यह वर्ष 1977  की बात है। दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम के सामने खड़ी थी। वहां हम एक नाटक देखने आए थे। अब नाटक का नाम याद नहीं लेकिन कुछ घटनाएं जस की तस याद हैं। अभी नाटक शुरू नहीं हुआ था। हम बाहर ही खड़े थे।

बहुत से परिचित आ-जा रहे थे। हम सब आपस में बातचीत कर रहे थे। तरह-तरह के व्यवसायों से जुड़े लोग थे। जैसे कि पत्रकार, अध्यापक, बैंकर आदि-आदि। लेकिन सबकी रुचि समान रूप से नाटक देखने में थी।  तभी सामने से एक महिला आती दिखीं। उनके साथ एक बहुत बुजुर्ग महिला भी थीं, जिनका वह हाथ पकड़े थीं। बुजुर्ग महिला धीरे-धीरे चल पा रही थीं। चलते-चलते रुकतीं, फिर चलतीं। पास आकर वह महिला रुकीं तो पति ने परिचय कराया कि वह उनके साथ ही कालेज में पढ़ाती थीं। उनके साथ बुजुर्ग महिला उनकी मां थीं। पता चला कि बुजुर्ग महिला अपनी बेटी के साथ रहती हैं। पति गुजर गए हैं और बेटा पूछता नहीं। मां की परेशानी देखकर बेटी, उन्हें साथ ले आई। 

लेकिन बेटी की समस्या यह है कि जब वह काम पर निकल जाती है तो महिला अकेली रह जाती हैं। घरेलू सहायिका भी काम निपटाकर चली जाती है। जब तक बेटी लौटती है, वह अकेली ही रहती हैं। कितना टी.वी. देखें, कितना सोएं क्योंकि बेटी ने भी विवाह नहीं किया। मन है कि लगता नहीं। समझ में नहीं आता कि क्या करें। एक दिन बुजुर्ग महिला बाल्कनी पर खड़ी थीं तो वहां से उन्होंने कई लड़कियों को गुजरते देखा। वे सब इम्तिहान देने जा रही थीं। जब बुजुर्ग की कालेज में पढ़ाने वाली बेटी घर लौटी तो उन्होंने उससे कहा कि वह भी आगे पढऩा चाहती हैं। बेटी को आश्चर्य हुआ। अब इस उम्र में कैसे पढ़ेंगी? क्या कालेज में एडमिशन लेंगी? बुजुर्ग महिला ने कहा कि नहीं वह प्राइवेट ही पढ़ेंगी। क्या पढ़ेंगी? पूछने पर कहा कि वह अंग्रेजी में एम.ए. करेंगी। बी.ए. तो पहले से है ही। पढ़ेंगी तो मन भी लगेगा। यह भी महसूस नहीं होगा कि घर में अकेली रह कर समय कैसे कटे। 

 बेटी ने उनकी बात को समझा लेकिन बहुत से परिचितों ने नहीं समझा। कइयों ने सुना तो मजाक उड़ाया। अरे इस उम्र में पढ़कर अम्मा क्या करेंगी। कुछ तीर्थ-वीर्थ कराओ। लेकिन बेटी को तो अपनी मां के मन की करनी थी। उसने सत्र शुरू होने पर पत्राचार पाठ्यक्रम में अपनी मां का दाखिला कराया। जरूरी किताबें लाकर दीं। जब पत्राचार की कक्षाएं होतीं तो बेटी मां को ड्राइव करके ले जाती। कक्षा खत्म होने तक मां का इंतजार करती। मां को पढऩे में यदि किसी तरह की कठिनाई आती है तो उसे दूर करने की कोशिश करती।  मां पाठ और सवाल याद करके बेटी को सुनाती। बेटी समय-समय पर टैस्ट भी लेती। इस तरह धीरे-धीरे परीक्षा का समय आ गया। बेटी ने छुट्टी ले ली। वह मां को इम्तिहान दिलाने ले जाती, वापस लाती। उनके सोने-जागने के समय का हिसाब रखती। इम्तिहान के बाद जब परीक्षा परिणाम आया तो बुजुर्ग महिला को पास होने की पूरी उम्मीद थी लेकिन वह पास नहीं हो सकीं।

बेटी को भी लगा कि अब वह निराश हो गई होंगी कि इतनी मेहनत की फिर भी सफलता नहीं मिली लेकिन बुजुर्ग ने कहा कि वह फिर से इम्तिहान देंगी। जवाब याद करके लिखने की प्रैक्टिस भी करेंगी क्योंकि ज्यादा उम्र होने के कारण जल्दी-जल्दी लिखने में कठिनाई होती है और पेपर पूरा नहीं हो पाता। बेटी ने थोड़ा-बहुत विरोध किया फिर मान गई। बुजुर्ग महिला ने वैसा ही किया जैसा कि कहा था। और बस कमाल हो गया। इस बार वह एम.ए. प्रथम वर्ष की परीक्षा में बहुत अच्छे अंकों से पास हुईं। इसी तरह उन्होंने एम.ए. द्वितीय वर्ष की परीक्षा भी पास की। तब उनका उम्र थी 80 वर्ष। तमिलनाडु की अमुथावल्ली की सफलता की कहानी जब से पढ़ी, यही बुजुर्ग महिला याद आती रहीं। बार-बार उनकी तस्वीर दिमाग में कौंधती रही। उम्र हमारी राह में कोई रोड़े नहीं अटकाती, बस हम ही मान बैठते हैं कि ऐसा हो रहा है।-क्षमा शर्मा
 

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