सैन्यबलों में अग्निवीर : तीन सवालों के जवाब जरूरी

Edited By Updated: 20 Jun, 2022 06:25 AM

agniveer in armed forces three questions need to be answered

अग्निवीरों के अग्निपथ पर चलने से भड़की हिंसा की एस.आई.टी. से जांच और इस योजना के पुनर्मूल्यांकन के लिए एक्सपर्ट कमेटी गठित करने की मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट में पी.आई.एल. दायर

अग्निवीरों के अग्निपथ पर चलने से भड़की हिंसा की एस.आई.टी. से जांच और इस योजना के पुनर्मूल्यांकन के लिए एक्सपर्ट कमेटी गठित करने की मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट में पी.आई.एल. दायर हुई है। इस मामले में सरकार की उलझन और विफलता को 6 बिंदुओं में समझा जा सकता है: 

1. ज्ञानवापी पर भाजपा प्रवक्ताओं के बयानों से उठे विवाद को शांत करने और गवर्नैंस के एजैंडे को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी नौकरियों और सैन्य बलों के रिक्त पदों में भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो रही है। पिछले 3 सालों से सैन्य बलों में भर्ती नहीं होने की वजह से युवाओं में नाराजगी थी। उन्हें उम्र में छूट देकर पुराने सिस्टम से भर्ती करने के बाद नए सिरे से संविदा सिस्टम को बाद में लागू किया जाता तो शायद इस बवाल से बचा जा सकता था। 

2. मोदी सरकार ने 2014 में मिनिमम गवर्नमैंट, मैक्सिमम गवर्नैंस यानी सरकार के आकार और भूमिका को कम करने की बात कही थी। नेता लोग वोट लेने के लिए करोड़ों नौकरियों का वादा करते हैं और सरकार बनाने के बाद स्वरोजगार का ज्ञान मिलने लगता है। सैन्य बलों में भी फौजियों की संख्या की बजाय उन्नत तकनीक के इस्तेमाल पर ज्यादा जोर है। लेकिन 2 करोड़ सालाना रोजगार के वायदे को पूरा होता दिखाने के चक्कर में तीन-चौथाई लोगों को 4 साल की संविदा में भर्ती करने का सब्जबाग सरकार के गले की हड्डी बन गया है। 3. सैन्यवीर योजना को इसराईल की अनिवार्य मिलिट्री ट्रेनिंग की तर्ज पर मानना नासमझी है। सोशल मीडिया में यह भले ही चल रहा हो, लेकिन सरकार की ऐसी कोई सोच नहीं है। 

4. सैन्य बलों के 5.25 लाख करोड़ के बजट में से 20 फीसदी यानी 1.2 लाख करोड़ पैंशन के मद में ही खर्च हो जाता है। अग्निवीरों की संविदा में नियुक्ति के पीछे वेतन और पैंशन की बचत का सबसे बड़ा पहलू है, लेकिन पैंशन का अधिकांश हिस्सा बड़े अफसरों की जेब में जाता है और बचत की कोशिश निचले स्तर पर करने की हो रही है। आई.ए.एस., आई.पी.एस., विधायक, सांसद, मंत्री और जजों की भारी भरकम पैंशन को रिव्यू करने की बजाय युवाओं को अग्निपथ पर धकेलना देश की सुरक्षा के साथ सेना के लिए भी ठीक नहीं। 

5. युवाओं की बड़ी संख्या को डैमोग्राफिक डिविडैंड बताया जाता है, लेकिन देश में करोड़ों बेरोजगारों की पुरानी फौज के साथ सालाना 1.12 करोड़ युवा रोजगार और नौकरी की कतार में खड़े हो जाते हैं। युवाओं की सरकारी नौकरी के लिए बेचैनी को आसान पहलुओं से समझा जा सकता है। मनरेगा, जहां पर साल में सिर्फ 100 दिन काम के साथ न्यूनतम दर पर मजदूरी भी नहीं मिलती, वहां पिछले साल 15.11 करोड़़ लोगों ने सरकारी खर्चे पर मजदूरी की। आर.आर.बी. ने 2018 में बैंकों में 89,000 पदों के लिए भर्तियां निकालीं तो 2 करोड़ से ज्यादा एप्लीकेशन आ गईं। 

6. अग्निवीरों की भर्ती को चुनावी वादों के साथ योग्यता, कार्यकुशलता और पेशेवर अभ्यास के नजरिए से देखने की भी जरूरत है। अंग्रेजों के समय सिविल सेवा में नियुक्ति के लिए 21 साल की अधिकतम आयु को सन 1877 में लॉर्ड लिटन ने 19 साल कर दिया था। उसके 150 साल बाद सिविल सेवाओं में नियुक्ति के लिए अधिकतम आयु 32 वर्ष हो गई है। सुप्रीम कोर्ट में जजों की रिटायरमैंट की उम्र 65 वर्ष है, जिसे बढ़ाने की मांग होती रहती है। नौकरशाह भी 60 साल में रिटायरमैंट के बाद पैंशन लेने के साथ दूसरे पदों पर नियुक्ति की फिराक में रहते हैं। इसी लिए देश में युवाओं का बड़ा वर्ग 40 साल की उम्र तक सरकारी नौकरी के लिए कोचिंग करता रहता है। इस कड़वे यथार्थ के माहौल में सैन्य बलों में 24 साल की कच्ची उम्र में रिटायरमैंट की अग्निपरीक्षा का प्लान युवाओं को कैसे पसंद आ सकता है। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विरोधाभास के इस परिदृश्य में युवाओं के आंदोलन और हताशा को समझने की जरूरत है। 

अग्निवीर मॉडल की भर्ती के 3 पहलुओं पर सरकार, संसद और सुप्रीम कोर्ट में मंथन जरूरी है। पहला, अग्निवीर मॉडल से सैन्यबलों में जो तदर्थवाद पैदा होगा, वह देश की सुरक्षा के लिहाज से कितना खतरनाक है? दूसरा, निजी और सरकारी क्षेत्र में अगर अग्निवीर खप भी गए तो अन्य युवाओं को नौकरी कैसे मिलेगी? तीसरा, नोटबंदी के बाद बैंकों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार बढ़ा। देश में भर्ती के लिए बनाए गए लोक सेवा आयोग जैसे संवैधानिक संस्थान गड़बड़ी और भ्रष्टाचार का केंद्र बन गए हैं। योग्यता और प्रशिक्षण के आधार पर नियुक्त अग्निवीरों में से तीन-चौथाई यानी 75 फीसदी को निकाला जाएगा। कुछ मंत्री मसले का सरलीकरण करते हुए युवाओं की हिंसा के पीछे कोङ्क्षचग और पेमैंट सिस्टम को जिम्मेदार बता रहे हैं। अगर यह सही है तो फिर आगे चलकर 25 फीसदी अग्निवीरों को कन्फर्म करने की होड़ में क्या सेना में भी सेवादारी, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार का वायरस नहीं बढ़ेगा? इन अहम सवालों के जवाब और पड़ताल से रोजगार के साथ देश की सरहद की भी सुरक्षा होगी।-विराग गुप्ता (एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 

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