सबकी नजरें उत्तर प्रदेश पर

Edited By ,Updated: 14 May, 2019 03:32 AM

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इन लोकसभा चुनावों में सबकी निगाहें उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई हैं जहां सपा-बसपा-रालोद और कांग्रेस भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने यहां 80 में से 73 सीटें जीती थीं लेकिन इस बार भाजपा का इस आंकड़े तक पहुंचना मुश्किल लगता है...

इन लोकसभा चुनावों में सबकी निगाहें उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई हैं जहां सपा-बसपा-रालोद और कांग्रेस भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने यहां 80 में से 73 सीटें जीती थीं लेकिन इस बार भाजपा का इस आंकड़े तक पहुंचना मुश्किल लगता है क्योंकि सपा-बसपा-रालोद इकट्ठे होकर भाजपा के खिलाफ लड़ रहे हैं। भाजपा ने कभी नहीं सोचा था कि उसके खिलाफ लडऩे के लिए सपा-बसपा इकट्ठे हो जाएंगे।

कांग्रेस केवल भाजपा के वोट तोड़ रही है और कुछ क्षेत्रों में कांग्रेस उम्मीदवार काफी मजबूत हैं तथा भाजपा और सपा-बसपा के उम्मीदवारों को हरा सकते हैं। ऐसी स्थिति पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश क्षेत्र में है। 12 मई को यहां जिन 14 सीटों पर मतदान हुआ वहां भी इस गठबंधन ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी है। आज जिन बड़े चेहरों की प्रतिष्ठा दाव पर है उनमें सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, कांग्रेस नेता संजय सिंह, भाजपा नेता मेनका गांधी और जगदम्बिका पाल प्रमुख हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में इन 14 में से 13 सीटें भाजपा ने जीती थीं। 

सरकार के गठन के लिए बातचीत
लोकसभा चुनावों के परिणाम 23 मई को घोषित होंगे लेकिन राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने नई सरकार के गठन के लिए अभी से बातचीत शुरू कर दी है। टी.डी.पी. प्रमुख चंद्रबाबू नायडू पहले से ही सक्रिय हैं और विपक्ष के नेताओं से मिलने के लिए उन्होंने दिल्ली का दौरा किया है। कांग्रेस का मानना है कि यदि उसे 140 से अधिक सीटें मिलती हैं और भाजपा को 170 सीटों से कम मिलती हैं तो भाजपा सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर सकती। भाजपा विरोधी गठबंधन में कांग्रेस सबसे बड़ा दल है और महागठबंधन के नेतृत्व में उसकी मुख्य भूमिका रहेगी तथा ऐसी स्थिति में राहुल गांधी संभावित प्रधानमंत्री हो सकते हैं। 

यदि कांग्रेस को 100 से कम सीटें मिलती हैं तो गैर भाजपा गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए क्षेत्रीय दलों के नेता दावा ठोंकेंगे। हालांकि यदि भाजपा 230 से ज्यादा सीटें जीत जाती है तो यह अपने  तीन प्रमुख सहयोगियों जद (यू), शिवसेना और अकाली दल के सहयोग से सरकार बनाने की कोशिश करेगी जिसमें उसे वाई.एस.आर. कांग्रेस, बीजू जनता दल (बीजद), टी.आर.एस. और कुछ आजाद उम्मीदवारों का समर्थन मिल सकता है। यदि भाजपा की सीटों का आंकड़ा 170 से 200 के बीच रहता है तो भी  वह अन्य राजनीतिक दलों के समर्थन से सरकार बनाने की उम्मीद कर सकती है यदि वह नरेन्द्र मोदी को नितिन गडकरी या राजनाथ जैसे नेताओं से बदलने पर सहमत हो जाए लेकिन भाजपा का मानना है कि उसे जो भी सीटें मिलेंगी वह मोदी के कारण मिलेंगी इसलिए उन्हें बदलना संभव नहीं होगा। 

इस बीच सपा-बसपा-टी.एम.सी.-टी.आर.एस. तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने के बारे में सोच रहे हैं। इसके लिए ममता बनर्जी कड़ी मेहनत कर रही हैं तथा भाजपा विरोधी महागठबंधन बनाने में भी उनकी मुख्य भूमिका रही है लेकिन एक बसपा नेता का कहना है कि इस बार जो नेता सबसे अधिक सीटें जीतेगा उसे प्रधानमंत्री बनाने पर विचार होगा। इस बीच आप, टी.डी.पी., टी.आर.एस., बीजद, सपा जैसी पाॢटयां ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में हैं। 

चुनावों पर धार्मिक प्रभाव
इन लोकसभा चुनावों में विभिन्न पाॢटयों के सभी नेता आॢथक, रोजगार और विकास जैसे मुद्दों से ज्यादा धार्मिक मुद्दों के पक्ष में या उनके खिलाफ प्रचार कर रहे हैं। इसी समय धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाले दिग्विजय सिंह ने भोपाल लोकसभा क्षेत्र से प्रज्ञा सिंह ठाकुर के खिलाफ अपनी प्रचार रणनीति में बदलाव किया है। जे.एन.यू. के पूर्व यूनियन अध्यक्ष और सी.पी.आई. नेता कन्हैया कुमार दिग्विजय सिंह के लिए प्रचार करने के लिए भोपाल आना चाहते थे। दिग्विजय सिंह ने विनम्रतापूर्वक उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया क्योंकि इससे दिग्विजय सिंह को नुक्सान हो सकता था। धार्मिक झुकाव को देखते हुए दिग्विजय सिंह ने सैंकड़ों साधुओं सहित कम्प्यूटर बाबा को आमंत्रित किया। कम्प्यूटर बाबा और साधुओं के साथ दिग्विजय सिंह और उनकी पत्नी ने यज्ञ में भाग लिया। इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में टी.एम.सी. ने भाजपा के जय श्री राम और हर-हर महादेव जैसे नारों का मुकाबला करने के लिए धार्मिक नारों का प्रयोग किया। 

जंगल महल में टी.एम.सी. और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला 
इस चुनाव में भाजपा ने पश्चिम बंगाल के वामपंथियों के गढ़ रहे क्षेत्र को भगवा क्षेत्र में बदलने के लिए कड़ी मेहनत की है। इस प्रदेश के पश्चिमी जिले पुरुलिया, पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुरा और झाडग़्राम में विकास बहुत कम हुआ है और यहां पर जंगल तथा आदिवासियों के कारण इस क्षेत्र को जंगल महल कहा जाता है। एक दशक पहले तक यह क्षेत्र माओवादियों का गढ़ था, जिन्होंने अपना समानांतर स्थानीय प्रशासन खड़ा कर लिया था लेकिन 2011 में ममता बनर्जी इस वायदे के साथ सत्ता में आईं कि वह जंगल महल क्षेत्र में सड़कें और बिजली उपलब्ध करवाएंगी तथा लोगों के चेहरों पर खुशी लाएंगी। 

टी.एम.सी ने इस क्षेत्र में सभी सीटें जीती हैं लेकिन अब आर.एस.एस. तथा इसके सहयोगी  विहिप और बजरंग दल ने इस क्षेत्र में अपना आधार बढ़ाया है। इसके लिए इन संगठनों ने रामनवमी पर विशाल रैली निकालने के अलावा वनवासी कल्याण आश्रम स्कूल खोले हैं। भाजपा नेताओं का कहना है कि यहां कई वामपंथी नेता  भाजपा में शामिल हो गए हैं क्योंकि  इस क्षेत्र में पार्टी का कोई जनाधार नहीं बचा है। ऐसी स्थिति में टी.एम.सी. ने बड़े चेहरों को टिकट दिए हैं। बांकुरा में ममता ने मुनमुन सेन की जगह सुब्रत मुखर्जी को टिकट दिया है। मेदिनीपुर में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष के खिलाफ चुनाव लडऩे के लिए मानस भुइयां ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया है और झाडग़्राम में पार्टी ने वीरबाहा सोरेन को चुनाव मैदान में उतारा है। 

नवनिर्वाचित सांसदों के स्वागत की तैयारी
अब चुनावों का एक चरण बाकी है और इस बीच मतगणना से पहले दिल्ली दरबार में ड्रैस रिहर्सल शुरू हो गई है। लुटियंस जोन के आसपास फाइव स्टार होटलों की बुकिंग 24 मई और 5 जून के बीच के लिए शुरू हो गई है। रोचक मामला यह है कि  अधिकतर बुकिंग दक्षिण भारत के क्षेत्रीय दलों डी.एम.के. और टी.डी.पी. द्वारा की जा रही है। जाहिर है कि ये पाॢटयां यह मान कर चल रही हैं कि  अगली सरकार के गठन में उनकी अहम भूमिका होगी। इसी तरह लोकसभा सचिवालय भी नए सदस्यों के स्वागत के लिए ब्ल्यू प्रिंट तैयार कर रहा है। संसद का कमरा नं. 62  सजाया जा रहा है जहां सांसदों को पहचानपत्र बांटे जाएंगे। दिल्ली एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशनों पर नव निर्वाचित सांसदों के लिए स्वागत डैस्क स्थापित किए जा रहे हैं।-राहिल नोरा चोपड़ा
 

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