ऐसे आदेशों से संघ जैसे संगठन को समाप्त नहीं कर सकते

Edited By Updated: 29 Oct, 2025 05:20 AM

an organization like the sangh cannot be abolished by such orders

देश और दुनिया में घट रही महत्वपूर्ण घटनाओं के बीच कुछ ऐसे विषय सामने आ रहे हैं जिन पर गहराई से चर्चा करने की आवश्यकता है। कर्नाटक सरकार ने पिछले दिनों एक आदेश जारी कर किसी भी निजी संगठन, संघ या व्यक्तियों के समूह के लिए सरकारी संपत्ति या परिसर का...

देश और दुनिया में घट रही महत्वपूर्ण घटनाओं के बीच कुछ ऐसे विषय सामने आ रहे हैं जिन पर गहराई से चर्चा करने की आवश्यकता है। कर्नाटक सरकार ने पिछले दिनों एक आदेश जारी कर किसी भी निजी संगठन, संघ या व्यक्तियों के समूह के लिए सरकारी संपत्ति या परिसर का उपयोग करने के लिए पूर्व अनुमति अनिवार्य कर दी है। यह आदेश यूं ही नहीं आया है। कर्नाटक के पंचायती राज और आई.टी. मंत्री प्रियांक खरगे ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पत्र लिखकर सार्वजनिक स्थानों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। कर्नाटक के कलबुर्गी में चित्तपुर जिला प्रशासन ने 19 अक्तूबर को शांति और कानून-व्यवस्था भंग होने का हवाला देते हुए संघ के पथ संचलन या रूट मार्च को अनुमति देने से इंकार कर दिया था। चित्तपुर के तहसीलदार ने 18 अक्तूूबर को अपने आदेश में कहा, ‘‘चित्तपुर में शांति और कानून-व्यवस्था भंग होने से रोकने और किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए, 19 अक्तूबर को होने वाले आर.एस.एस. रूट मार्च की अनुमति देने से इंकार किया जाता है।’’ 

एक वीडियो काफी वायरल हुआ जिसमें संघ के स्वयंसेवक नियत तिथि पर शांतिपूर्वक रूट मार्च में कतारबद्ध होकर चले और गिरफ्तार किए गए। न कोई नारा न कोई विरोध प्रदर्शन। हालांकि प्रशासन के आदेश के विरुद्ध चित्तपुर निवासी अशोक पाटिल ने उच्च न्यायालय में अपील की और न्यायालय ने संघ को 2 नवंबर को मार्च की मंजूरी दे दी, पर प्रशासन नहीं मान रहा। संघ अपनी स्थापना का शताब्दी वर्ष मना रहा है। विजयदशमी से देश भर में ऐसे ही रूट मार्च और अन्य कार्यक्रम पूर्व निर्धारित हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक संगठन की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक जबलपुर में संपन्न हो चुकी है। संघ ने राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकार वार्ता बुलाकर या वक्तव्य जारी कर विरोध भी प्रकट नहीं किया। आप किसी संगठन, राजनीतिक दल या नेता पर आरोप लगाइए या उनका विरोध करिए तुरंत अलग-अलग माध्यमों से प्रतिरोध सामने आ जाएगा, वक्तव्य जारी होंगे,खंडन किया जाएगा ,पत्रकार वार्ता बुलाई जाएगी। 

संघ का चरित्र इसके विपरीत है। ऐसा कोई दिन नहीं होता जब संघ के विरुद्ध अतिवादी वक्तव्य नहीं आते। इसके समानांतर संघ खंडन या विरोध करने सामने आता ही नहीं। यह उसकी कार्य पद्धति का ऐसा पहलू है जिसे आम आलोचनाओं, निंदा और विरोध के विपरीत गहराई से समझने की आवश्यकता है। प्रियांक खरगे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के पुत्र हैं। उनके वक्तव्य पर ध्यान दीजिए,‘‘आर.एस.एस. की गतिविधियां युवाओं के दिमाग को ब्रेनवॉश करती हैं, जिससे देश या समाज को कोई मदद नहीं मिल रही है। मैंने मुख्यमंत्री को लिखा है कि आर.एस.एस. की गतिविधियों या उनकी बैठकों को आॢकयोलॉजिकल मंदिरों या सरकारी मंदिरों में भी इजाजत न दें। उन्हें प्राइवेट घरों में ऐसा करने दें। लेकिन आप सरकारी जमीन का इस्तेमाल उनके बड़े पैमाने पर ब्रेनवॉशिंग के लिए नहीं कर सकते।’’

मुख्यमंत्री को लिखे एक और पत्र में खरगे ने कहा कि सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को किसी भी संगठन का सदस्य बनने या उसकी एक्टिविटी में हिस्सा लेने से पूरी तरह मना किया जाना चाहिए। खरगे ऐसा कहने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं और न कर्नाटक सरकार अकेली सरकार है जिसने ऐसा किया है। केरल सरकार पिछले 4 वर्षों से लगातार कोशिश कर रही है कि मंदिरों, धार्मिक स्थानों पर संघ की गतिविधियों को प्रतिबंधित किया जाए। केरल में सरकारी त्रावणकोर देवासम बोर्ड ने सर्कुलर या परिपत्र जारी कर मंदिरों में संघ की गतिविधियों को प्रतिबंधित कर दिया। बोर्ड के नियंत्रण में करीब 1200 मंदिर हैं।

इसकी भाषा इतनी सख्त थी कि उसके बाद अगर संघ की गतिविधियां इन स्थलों पर हुईं तो संबंधित अधिकारी की शामत आ जाती। इसमें औचक निरीक्षण करने, उनको पकडऩे आदि सारे बिंदू शामिल थे। पहले ब्रिटिश काल में संघ की गतिविधियों को प्रतिबंधित करने की कोशिश हुई। स्थानीय स्तरों पर इसका सैंट्रल प्रोविंस या मध्य प्रांत में सभी ने विरोध किया और लागू नहीं हो सका। स्वतंत्रता के बाद 30 नवंबर, 1966 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह आदेश सरकारी कागजों में 58 वर्षों तक रहा। क्या यह धरातल पर लागू हो पाया? औपचारिक रूप से कई राज्य सरकारों ने पहले ही इस प्रतिबंध को समाप्त कर दिया और केंद्र से वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार ने 9 जुलाई, 2024 को इसे निरस्त कर दिया। 

विरोधियों को सोचना चाहिए कि स्वतंत्रता के बाद तीन बार सरकारों ने प्रतिबंध लगाया और ये निष्फल हो गए। कई राज्य सरकारों ने आंशिक या पूर्ण प्रतिबंध लगाने या कार्यक्रमों को रोकने की सत्ता द्वारा कोशिश की और वे भी असफल हुए। किसी संगठन से वैचारिक असहमति अस्वाभाविक नहीं है। भारत के राजनीतिक दलों, एक्टिविस्टों, कुछ एन.जी.ओ. वादियों, मीडिया का एक बड़ा धड़ा आदि के व्यवहार का निष्कर्ष यही है कि हम सच जानेंगे नहीं या जान कर भी वही आरोप लगाएंगे और उन्हीं आधारों पर विरोध करेंगे। विविधताओं भरे इस देश में लोग उनसे भी प्रभावित होते हैं। राजनीतिक दलों को इसके कारण मुस्लिम व ईसाई समुदाय का वोट भी मिलता है। किंतु इससे देश का वातावरण नकारात्मक बनता है।-अवधेश कुमार
 

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