‘अर्नब की गिरफ्तारी एक भारी भूल थी’

Edited By ,Updated: 12 Nov, 2020 02:18 AM

arnab s arrest was a huge mistake

महाराष्ट्र सरकार में ऐसा कौन है जिसने रिपब्लिक टैलीविजन के प्रमुख अर्नब गोस्वामी को लेकर एक पुराने आत्महत्या को उकसाने वाले मामले को पुन: खोलने का मूर्खतापूर्ण निर्णय लिया है। यह मुम्बई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह नहीं हो सकते क्योंकि

महाराष्ट्र सरकार में ऐसा कौन है जिसने रिपब्लिक टैलीविजन के प्रमुख अर्नब गोस्वामी को लेकर एक पुराने आत्महत्या को उकसाने वाले मामले को पुन: खोलने का मूर्खतापूर्ण निर्णय लिया है। यह मुम्बई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह नहीं हो सकते क्योंकि यह आत्महत्या उनके अधिकार क्षेत्र की परिधि से बाहर हुई थी। परमबीर वर्तमान में अर्नब गोस्वामी के साथ एक युद्ध में उलझे हुए हैं। 

मेरा अनुमान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लेकर है क्योंकि उनके मन में गोस्वामी के प्रति मैल थी। परमबीर से परामर्श किया जाना चाहिए था क्योंकि वह निश्चित तौर पर एक फांसे में थे क्योंकि उनके एक निकट अधिकारी सचिन वेज जोकि एक शार्प शूटर भी हैं, अर्नब की गिरफ्तारी के समय उपस्थित थे। उनके साथ पुलिस स्टेशन का स्टाफ भी था जिसके अधिकार क्षेत्र में शहर पड़ता है और गोस्वामी उसी में रहते हैं। आत्महत्या का यह मामला 2018 में रायगढ़ जिले के आसपास का है। एक इंटीरियर डैकोरेटर की अर्नब गोस्वामी तथा उनके दो अन्य लोगों पर  5.4 करोड़ की प्रत्यक्ष राशि बकाया थी। उसने अपनी जान ले ली क्योंकि उस पर वित्तीय संकट गहरा गया था। अजीब ढंग से उसने अपनी ही मां को अपनी जान लेने से पहले मार डाला। 

उस व्यक्ति ने अपने पीछे एक लेख छोड़ा जिसमें उसने गोस्वामी तथा उसके दो सहयोगियों को अपनी मौत का जिम्मेदार ठहराया। उस समय पुलिस ने जांच को बंद कर दिया था और मेरे हिसाब से यह उचित भी था। कर्ज या बकाए की अदायगी न करने वाली बात आत्महत्या को उकसाने की व्याख्या नहीं कर सकती। गोस्वामी तथा उनके सहयोगियों द्वारा उस मृत व्यक्ति को कोई क्रियाशील प्रोत्साहन उपलब्ध नहीं करवाया गया जिससे उस व्यक्ति को यह निर्णय लेना पड़ा। हालांकि यह स्पष्ट है कि बिलों का भुगतान उसकी प्राथमिकता नहीं थी। 

वास्तव में पुलिस ने ‘सी’ समरी के साथ जांच को बंद कर दिया जिसका मतलब यह था कि किसी भी अपराध का खुलासा नहीं हुआ। इसके स्थान पर ‘ए’ समरी बनाई गई जिसका मतलब कि अपराध को अंजाम दिया गया मगर इसको प्रमाणित करने के समर्थन में कोई भी साक्ष्य वहां पर नहीं था। समय है कि अदालतें पुलिस को निर्देश दें कि आत्महत्या के लिए उकसाने का मतलब क्या होता है। वर्तमान में यदि कोई अपना जीवन खो देता है जैसे कि सुशांत सिंह राजपूत ने किया, तब क्या पुलिस ने आत्महत्या का कारण बनने वाले व्यक्ति को परेशान किया? यह सब निरर्थक है। अर्नब गोस्वामी जोकि स्व:घोषित जांचकत्र्ता थे, ने रिया चक्रवर्ती को कारण बनाकर उसका पीछा किया। यदि वह एक कमजोर महिला थी तब आत्महत्या किसने की। क्या अर्नब गोस्वामी इसका कारण है। कानून निर्माताओं का इरादा यह नहीं था!

रायगढ़ मामले में मृत व्यक्ति की विधवा को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि उसे एक स्थानीय ज्यूडीशियल मैजिस्ट्रेट के पास एक शिकायत दर्ज करवाने का परामर्श दिया गया जिन्होंने इस मामले की फिर से जांच करने का पुलिस को निर्देश दिया। मुझे आश्चर्य नहीं होगा कि पुलिस कर्मियों की नई टीम इस मामले को लेकर गुप्त थी। उन्होंने जल्द ही निष्कर्ष निकाला कि गोस्वामी द्वारा भुगतान की अदायगी न करना शायद इस व्यक्ति की आत्महत्या करने का कारण था। मगर उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों के जांच परिणाम को किस तरह नकार दिया जोकि भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान रिकार्ड की गई थी। 

उसके बारे में कोई पता नहीं है। हम सुरक्षित तौर पर यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि अचानक इस मामले का मकसद निजी प्रतिशोध हो सकता है। सत्ता में रहने वाले राजनेताओं की सनक पुलिस द्वारा दोषी ठहराने की नहीं होनी चाहिए। सत्ता में रहने वाली पार्टियां कानून तथा सच्चाई के साथ ऐसे खेल खेलती हैं। सरकार के सभी उपलब्ध एजैंट विरोधियों को शर्मसार करने के लिए नई-नई सामग्री बनाते हैं। इस तरह अपने अनुसार वे पुलिस का राजनीतिकरण करने में सफल होते हैं तथा राजनीति के स्तर को निम्र स्तर पर ले जाते हैं। 

अर्नब गोस्वामी को मुश्किल से एक पत्रकार कहा जा सकता है। मेरे सिविल सर्विसेज परीक्षा देने से पूर्व मैंने 2 वर्षों के लिए ‘नैशनल स्टैंडर्ड’ (अब इंडियन एक्सप्रैस) में सब एडीटर के तौर पर कार्य किया। नए तत्कालीन वरिष्ठ शारदा प्रसाद थे जो बाद में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रैस सलाहकार बने। उनसे पहला सबक जो मैंने सीखा, वह यह था कि एक सच्चे पत्रकार की मूल जिम्मेदारी समय की सरकार को जांचने की है। एक सच्चे पत्रकार की परिभाषा में अर्नब फिट नहीं बैठते। वह मात्र सरकार के एक पेड प्रवक्ता हैं। कई नागरिकों का मानना है कि अर्नब गोस्वामी अपनी दवाई का स्वाद चख रहे हैं। निजी तौर पर मैं महसूस करता हूं कि महाराष्ट्र सरकार ने अर्नब को एक ऐसे अपराध के लिए गिरफ्तार कर एक सामरिक गलती की जो उन्होंने किया ही नहीं।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
 

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