मुफ्ती को ‘दोहरे मापदंड’ अपनाने की अनुमति न दें

Edited By ,Updated: 04 Mar, 2015 12:45 AM

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जम्मू-कश्मीर की नई सरकार ने अपने कामकाज की बोहनी बहुत बदशगुनी भरे ढंग से की। 1 मार्च को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद पी.डी.पी. नेता ने राज्य में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव होने ...

(जोगिन्द्र सिंह) जम्मू-कश्मीर की नई सरकार ने अपने कामकाज की बोहनी बहुत बदशगुनी भरे ढंग से की। 1 मार्च को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद पी.डी.पी. नेता ने राज्य में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव होने देने के लिए पाकिस्तान, अलगाववादियों और आतंकवादियों का धन्यवाद किया।

पुरानी कहावत है : ‘‘मुझे मेरे दोस्तों से बचाना भगवान, दुश्मनों से मैं खुद ही निपट लूंगा।’’ जम्मू-कश्मीर के  वर्तमान मुख्यमंत्री ने इस लोकोक्ति को भली-भांति चरितार्थ कर दिया है। भारत को इस बयान के लिए उनका कृतज्ञ होना चाहिए। सुरक्षा बलों का धन्यवाद करने की बजाय मुख्यमंत्री ने पहला ही गोला दागते हुए पाक समर्थकों और आतंकवादियों तथा पाकिस्तान को श्रेय दे दिया, जबकि शांतिपूर्ण चुनाव सम्पन्न करवाने में सबसे बड़ी भूमिका सेना, बी.एस.एफ., सी.आर.पी.एफ. और जम्मू-कश्मीर पुलिस की थी।

नए मुख्यमंत्री ने जाने या अनजाने में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के बयान को भुला दिया है। 25 दिसम्बर 2014 को नवाज शरीफ ने पाकिस्तानी जनता के नाम अपने मध्यरात्रि संदेश में कहा था : ‘‘पाकिस्तान में आतंकवादियों के दिन अब गिनती के रह गए हैं और उनके साथ कड़ाई से पेश आया जाएगा। पेशावर में उन्होंने जो कुकृत्य किया है उसने पाकिस्तान को बदल दिया है। हमें आतंकवाद को समाप्त करने के लिए उग्रवाद और जेहादी मानसिकता को पराजित करना होगा....पेशावर की घटना ने पूरे पाकिस्तान को हिलाकर रख दिया है......आतंकियों ने बच्चों की हत्या करके इस देश के भविष्य पर वार किया है। समाज में से इस लानत को खत्म करने के लिए बहुत सख्त कार्रवाई की जरूरत है।’’

उन्होंने विस्तार से बताया कि राजनीतिक पार्टियां आतंक संबंधी मामलों से निपटने के लिए सैन्य संचालित ‘विशेष ट्रिब्यूनल’ स्थापित करने हेतु सर्वसम्मति पर पहुंच गई हैं। उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि इंटरनैट और सोशल मीडिया पर आतंकियों के प्रचार तंत्र को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने के साथ-साथ मीडिया में भी आतंकी गुटों का प्रचार पूरी तरह बंद करवाने का फैसला किया गया है।

इसके अलावा नवाज शरीफ की सरकार ने मदरसों को नियमों के अन्तर्गत लाने, अफगान शरणार्थियों को वापस भेजने और आतंकी गुटों के वित्तीय स्रोत समाप्त करने जैसे कदम भी उठाए हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि पाकिस्तान पड़ोसी देशों पर हमले करने के लिए आतंकवादियों को अपनी धरती का प्रयोग नहीं करने देगा और पड़ोसी देशों से भी खुद के प्रति यह ऐसे ही व्यवहार की उम्मीद करता है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रतिबंधित संगठनों को नए नामों की आड़ में काम करने की अनुमति नहीं दी जाएगी और पाकिस्तान मेें किसी भी प्रकार की सशस्त्र मिलिशिया गठित करने की आज्ञा नहीं दी जाएगी।

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री का ताजा बयान तो पाकिस्तान को एक आतंकी शासन तंत्र के रूप में ही प्रस्तुत करता है। मैं यह तो नहीं कहता कि हमें पाकिस्तान के एक-एक शब्द पर विश्वास करना चाहिए। लेकिन फिर भी हमें इंतजार करना होगा कि पाकिस्तान जो कहता है, क्या उसे व्यावहारिक रूप में लागू करता है।

सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार 1989 से लेकर 19-8-2012 तक जम्मू-कश्मीर में 14645 सिविलियन, 6026 सुरक्षा बलों के जवान तथा 22602 आतंकवादी मारे गए। जून 2014 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जम्मू-कश्मीर गृह मंत्रालय का कहना है कि सुरक्षा बलों ने इस अवधि में 30,752 ए.के. 47 राइफलें, 11,431 पिस्तौल व रिवाल्वर, 1,027 यूनिवर्सल मशीनगनें, 2,262 रॉकेट चालित ग्रेनेड लांचर, 391 स्नाइपर राइफलें तथा सैंकड़ों अन्य हथियार बरामद किए हैं, जिनमें एल.एम.जी. और एस.एल.आर. भी शामिल हैं। आतंकियों से विस्फोटक सामग्री भी भारी मात्रा में पकड़ी गई।

इतनी भारी विनाशक शक्ति के बूते ही आतंकवादी और अलगाववादी कश्मीर में उत्पात मचाते रहे हैं। कश्मीरी नेता यह तो चाहते हैं कि भारत उनकी सीमाओं की रक्षा करे, उनके इलाके में सड़कों का निर्माण व खाद्यान्न की आपूर्ति करे और कश्मीर को भारत के बराबर का दर्जा मिले। लेकिन साथ ही यह चाहते हैं कि कश्मीर में भारत सरकार की शक्तियां बिल्कुल सीमित हों और शेष भारत के लोगों को कश्मीर में किसी प्रकार के अधिकार न हों। क्या ऐसी मानसिकता से सहमत होना भारत के साथ द्रोह नहीं।

भारत सरकार ने कश्मीर घाटी के लोगों को खुश करने के लिए शृंखलाबद्ध तरीके से रियायतें दी हैं लेकिन घाटी में 3.70 लाख हिन्दू-सिखों की चिन्ता करने के लिए कोई स्टैंड नहीं है, क्योंकि वे मुस्लिम नहीं थे और आखिर इन लोगों को घाटी से खदेड़ दिया गया। अब ये लोग भारत के अंदर ही शरणार्थी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और उन्हेें नाममात्र की सरकारी सहायता दी जा रही है।

भारत एक सैकुलर देश है, जहां हर किसी को अपनी पूजा पद्धति व मजहब अपनाने की आजादी है। लेकिन किसी को भी उन लोगों को खदेडऩे का अधिकार नहीं, जो बहुसंख्यक लोगों के मजहब में विश्वास नहीं रखते और न ही आतंकवादियों को शरण देते हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री जो भाषा बोल रहे हैं, उससे भारत सरकार की आंखें खुल जानी चाहिएं और जो लोग चुनाव में विघ्न डालते रहे हैं, उनको अपने किए का फल मिलना ही चाहिए। भारत इन लोगों को मजा चखाने की शक्ति रखता है, लेकिन ऐसे फैसले लेने के लिए इच्छाशक्ति की जरूरत है। सत्ता में भागीदार होने के नाते भाजपा को चाहिए कि वह पी.डी.पी. नेता को यह स्पष्ट करने को कहे कि वे भारतीय हैं या नहीं। उन्हें दोहरे मापदंड अपनाते हुए शिकार और शिकारी दोनों के साथ दौडऩे की अनुमति कदापि नहीं दी जानी चाहिए।

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