मौसम के बिगड़े मिज़ाज से हिमाचल के किसान ‘बदहाल’

Edited By ,Updated: 15 Apr, 2015 12:02 AM

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देश भर में मौसम के बिगड़े मिजाज से आहत किसान पशोपेश में हैं। इन्हें कुदरत के कहर कारण विकट संकट सहना पड़ रहा है

(कंवर हरि सिंह): देश भर में मौसम के बिगड़े मिजाज से आहत किसान पशोपेश में हैं। इन्हें कुदरत के कहर कारण विकट संकट सहना पड़ रहा है और भारी क्षति से आहत किसान आत्महत्या कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश भी इसका अपवाद नहीं है। व्यापक बारिशों, ओलावृष्टि तथा पहाड़ों पर बर्फबारी ने हिमाचल प्रदेश के किसानों-बागबानों को झकझोर दिया है। प्रदेश में 70 प्रतिशत से भी ज्यादा किसान-बागबान पहले ही बंदरों, जंगली जानवरों, आवारा पशुओं द्वारा खेती को बर्बाद कर देने कारण अपने मुख्य व एकमात्र व्यवसाय को छोडऩे के कगार पर थे। अब मौसम के क्रूर प्रहार से तो उनकी भारी तबाही हो गई है। ये सब लोग बदहाल, परेशान हो गए हैं। 

किसानों-बागबानों को हुए भारी नुक्सान को आंकने के लिए राज्य सरकार स्पैशल गिरदावरी की प्रक्रिया में है। अभी तक मिले 31 मार्च तक के आंकड़ों से पता चला है कि प्रदेश में 48 करोड़ रुपए का नुक्सान हुआ है। जिलावार नुक्सान शिमला में 53.45 लाख, मंडी में 453.40 लाख, बिलासपुर में 109 लाख, सिरमौर में 853.55 लाख, सोलन में 128.57 लाख, कांगड़ा में 1907.05 लाख, चम्बा में 814.25 लाख, कुल्लू में 178.40 लाख, किन्नौर में 27.87 लाख, हमीरपुर में 114.06 लाख तथा ऊना में यह अनुमान 133.46 लाख रुपए बताया गया है। 
 
शायद राज्य सरकार ने यह आकलन पूर्व में 50 प्रतिशत हुए नुक्सान की पात्रता पर किया हो, केंद्र सरकार ने इस पात्रता को घटा कर 33 प्रतिशत कर दिया है और प्रभावित किसानों के लिए कई अन्य प्रकार की राहतें अधिसूचित की हैं। 
 
प्रदेश सरकार को फिर से आकलन प्रक्रिया करने में विलंब हो सकता है। इस दौरान केंद्र को तत्परता के साथ और लंबी प्रक्रियाओं में उलझे बिना राज्य सरकार को रिलीफ रिलीज करनी चाहिए क्योंकि हिमाचल प्रदेश के वित्तीय संसाधन सीमित हैं, इसे स्पैशल राज्य मानकर अतिरिक्त सहानुभूति के साथ आगे आना चाहिए। 
 
प्रदेश में हुए भारी नुक्सान में खेतों में खड़ी गेहूं, सरसों, दलहनों, सब्जियों का भारी नुक्सान हुआ है। गुठली वाले फलों, स्टोन फू्रट तथा ऊपरी क्षेत्रों में प्रमुख फसल सेबों पर भी प्रतिकूल रहे मौसम का प्रहार हुआ है। अगर कहीं गेहूं की फसल खड़ी भी है तो उसके पीला रतुआ की मार या गुणवत्ता तथा उत्पादन पर कुप्रभाव से किसान सकते में हैं। 
 
धरातलीय सच यह है कि किसानों-बागबानों को जिस फौरी आर्थिक भरपाई की जरूरत है, सरकारों ने नहीं की है। किसान भारी विनियोजन के नुक्सान, मिले कर्जों को लौटाने की बेबसी तथा सरकारी/अद्र्ध सरकारी/निजी कर्जों के बोझ तले दबा है। उसे राज्य सरकार ऋण माफी या इसे रिशैड्यूल करके मदद कर सकती है। 
 
प्रदेश में सेवारत बैंक किसानों को ऋण देने में देशभर में उदार और मददगार हैं। किसान क्रैडिट कार्ड होल्डर हर किसान को फसल बीमा तहत लाया गया है पर इन्हें न तो इस बारे ज्यादा जागरूकता है न ही इसका लाभ मिला है। प्रदेश के हर किसान को हर फसल का निजी स्तर से बीमा लाभ नहीं है, यह स्पैसीफिक एरिया, फसल के आधार पर है। इसकी जटिलताओं का सरलीकरण और हर फसल को परिधि में ला सकने की प्रक्रिया की जरूरत है। 
 
राजनेताओं को कृषि पर बयानबाजी से हटकर अपनी खुद की तथा पूरे समाज में दूसरों की भूख मिटाने वाले किसानों की ठोस मदद करने का समय है। इन सियासतदानों को किसानों के दर्द को समझना होगा।
 
हिमाचल के माननीय फिर हुए मालामाल
किसानों, मजदूरों, कर्मचारियों तथा पैंशनरों को कमरतोड़ महंगाई से राहत के लिए न्याय संगत मांगों की वित्तीय संसाधनों के अभाव की दुहाई देकर अधर में लटकाए रखने वाले माननीयों ने इस बजट सत्र दौरान स्वयं अपने लिए तथा पूर्व माननीयों के लिए बिना कोई बहस किए एक ही दिन में ध्वनिमत के साथ अपने तमाम मतभेदों को दरकिनार कर मंत्रियों, स्पीकर एवं डिप्टी स्पीकर तथा विधानसभा सदस्यों के वेतन, भत्ते, पैंशन, बिलों को एकजुटता के साथ पारित करा लिया। 
 
इसमें शायद दूसरी बार इन सबको वेतन, भत्ते व वित्तीय सुविधाओं संबंधी मिल रहे आर्थिक लाभ में 50 प्रतिशत का अतिरिक्त लाभ मिला है जिससे राजकीय कोष पर हर साल 3 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ेगा। इस मामले में सभी राजनीतिक दलों के माननीय मौसेरे भाई साबित हुए हैं। 
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