मोगा और ऑर्बिट मुद्दे पर भाजपा ‘मौन क्यों’

Edited By ,Updated: 10 May, 2015 03:14 AM

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अकाली-भाजपा के अंतर्गत पंजाब की नीचे की ओर फिसलन निर्बाध रूप में जारी है। इसका ताजातरीन उदाहरण है

(बी.के. चम): अकाली-भाजपा के अंतर्गत पंजाब की नीचे की ओर फिसलन निर्बाध रूप में जारी है। इसका ताजातरीन उदाहरण है सत्तारूढ़ बादल परिवार के स्वामित्व वाली चलती ऑर्बिट बस में छेड़छाड़ करने वालों द्वारा मोगा के समीप नीचे फैंके जाने से अर्शदीप कौर (13) की मृत्यु और उसकी माता शिंदर कौर का गंभीर रूप में घायल होना।
 
देश भर को आक्रोशित करके रोष प्रदर्शनों और संसद के दोनों सदनों में हंगामे को जन्म देने वाली इस त्रासदी ने पंजाब की परिवार-शासितराजनीति के दो चिंताजनक पहलुओं को नंगा कर दिया है: (1) अमन-कानून की बिगड़ी हुई स्थिति और, (2) आपातकाल दौर जैसी तानाशाही मानसिकता की क्रियाशीलता। राज्य में अमन-कानून की चिंताजनक स्थिति के लिए मुख्य तौर पर घमंडी गृहमंत्री सुखबीर बादल को ही जिम्मेदार माना जाता है क्योंकि अकाली दल के हाथों में पुलिस  एक खिलौना बन चुकी है और खुद को कानून से ऊपर समझती है।
 
मोगा त्रासदी इस वास्तविकता को भी प्रतिबिम्बित करती है कि किस प्रकार सत्तारूढ़ राजनीतिज्ञ अपना राजनीतिक दम-खम प्रयुक्त करके प्रदेश की कीमत पर अपने कारोबारी साम्राज्य खड़े  कर लेते हैं। इस रुझान का उदाहरण इन विवरणों के खुलासे से जाहिर हो जाता है कि दिल्ली-गुडग़ांव को जोडऩे वाली बाईपास रोड पर किस प्रकार बादल परिवार की सबसे बड़ी कारोबारी इकाई ‘ऑर्बिट रिसोट्र्स’ अस्तित्व में आई। इस कम्पनी का पंजीकृत पता 256, सैक्टर-9, चंडीगढ़ है जोकि सुखबीर का आवास है।
 
यह कोई दुर्लभ बात नहीं कि अंतर्राज्यीय मुद्दों पर उलझ रहे राज्यों से संबंधित और आपस में दोस्ताना संबंध रखने वाले राजनीतिज्ञों के परिवार एक-दूसरे के आर्थिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए लक्ष्मण रेखा पार कर जाते हैं। यह भी कोई दुर्लभ बात नहीं कि एक-दूसरे के आर्थिक हितों को दिया गया बढ़ावा अक्सर विवादों को जन्म देता है।
 
ऐसे ही जिस मामले ने 1990 के दशक में राजनीतिक विवाद छेड़ दिया था वह था देवी लाल सरकार द्वारा बादल के ‘ऑर्बिट रिसोटर्स’ को किया गया भूमि आबंटन।
 
21 मार्च 2002 को पूर्व रक्षा मंत्री और चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे स्व. बंसी लाल ने मुझे बताया था कि ‘‘बादल परिवार द्वारा (देवी लाल की)सरकार को अक्तूबर 1988 में किए गए अनुरोध पर कार्रवाई करते हुए हरियाणा राज्य औद्योगिक विकास निगम (एच.एस.आई.डी.सी.) ने दिल्ली-गुडग़ांव बाईपास रोड पर 71 हजार वर्ग मीटर का प्लाट 14 सितम्बर 1989 को आबंटित किया था।
 
‘‘क्योंकि बादल परिवार 3 वर्ष की निर्धारित अवधि में परियोजना शुरू करने में असफल रहा इसलिए इस प्लाट का 2 जनवरी 1995 (तब भजन लाल मुख्यमंत्री थे)को एच.एस.आई. डी.सी. द्वारा दोबारा कब्जा ले लिया गया। बादल परिवार ने कब्जे के इस आदेश के विरुद्ध पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इस याचिका को हाईकोर्ट ने फरवरी 1996 में खारिज कर दिया। तब बादल परिवार ने ‘लैटर्ज पेटैंट अपील’ (एल.पी.ए.) मार्च 1996 में दायर की। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने शंखलाबद्ध सुनवाइयों के बाद जनवरी 1999 को दोबारा कब्जे के आदेश को निरस्त कर दिया।
 
‘‘एच.एस.आई.डी.सी. और हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अवकाश याचिका (एस.एल. पी.) दायर करके हाईकोर्ट के आदेश को जल्दी ही चुनौती दे दी।’’
 
इस मुद्दे पर विवाद उस समय छिड़ा जब एच.एस.आई.डी.सी. और राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद बंसी लाल नीत हरियाणा विकास पार्टी की सरकार में गठबंधन सहयोगी (11 मई 1996 से 23 जुलाई 1996 के बीच)भाजपा के नेताओं ने बादल परिवार की सहायता के लिए बंसी लाल पर दबाव बनाने का प्रयास किया।
 
अपनी बात जारी रखते हुए बंसी लाल ने कहा, ‘‘1996 में (जब मैं मुख्यमंत्री था) पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष जब एल.पी.ए. लम्बित पड़ी थी, दिल्ली की भाजपा सरकार के मुुख्यमंत्री मदन लाल खुराना ने मुझे यह कहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी को मिलने के लिए अपने साथ दिल्ली चलने को कहा कि वाजपेयी जी (जो उस समय प्रधानमंत्री नहीं थे) चाहते हैं कि भाजपा के दोनों सहयोगियों के आपसी रिश्ते सुधारने के लिए मैं और प्रकाश सिंह बादल एक साथ उनसे मुलाकात करें। 
 
मैंने खुराना जी को कहा कि मैं इस मीटिंग के लिए आने को तैयार हूं लेकिन बादलों के गुडग़ांव वाले भूमि प्रकरण के संबंध में कोई चर्चा नहीं करूंगा क्योंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष है। इस पर खुराना राजी हो गए।
 
‘‘वाजपेयी के आवास पर मीटिंग में जहां खुराना और बादल भी उपस्थित थे, खुराना ने बादल को गुडग़ांव भूमि मामले के संबंध में मेरे साथ बात करने को कहा। मैंने उन्हें बता दिया कि मैं इस मामले में कुछ नहीं कर पाऊंगा क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट के समक्ष है। तो खुराना ने कहा कि मैं सरकार/एच. एस.आई.डी.सी. के वकीलों को बादल की कम्पनी के वकीलों की जिरह के दौरान चुप रहने को कहूं। मैंने उन्हें बताया कि मैंने अभी तक मामले के विवरणों का अध्ययन नहीं किया है। पहले मुझे फाइल देखनी होगी। 
 
‘‘कुछ समय के बाद भाजपा ने अपने मुख्यमंत्रियों की बैठक जयपुर में बुलाई। भाजपा का सहयोगी होने के नाते मुझे भी आमंत्रित किया गया। इस मीटिंग में राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत मुझे एक ओर ले गए और गुडग़ांव भूमि मामले में बादल की सहायता करने को कहा। मैंने उन्हें कहा कि यह भूमि इस समय 250 करोड़ रुपए मूल्य की है जबकि देवी लाल ने कथित रूप में यह केवल 4 करोड़ रुपए में बादल परिवार को दी थी, ऐसे में मैं हरियाणा के हितों को नुक्सान कैसे पहुंचा सकता हूं? उसके बाद शेखावत ने इस मामले पर बात आगे नहीं बढ़ाई।
 
‘‘चौटाला सरकार (जो 24 जुलाई 1999 को सत्ता में आई थी) ने मामले की सुनवाई की तारीख से 2 दिन पूर्व अपना वकील बदल दिया। हालांकि संबंधित प्लाट पर कोई परियोजना न शुरू करने का मुद्दा ही एस.एल.पी. का विषय-वस्तु था, फिर भी ऑर्बिट रिसोट्र्स द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामले की सुनवाई के दिन 3 दिसम्बर 1999 को यह वचन दिया गया कि बकाया देनदारी का भुगतान 6 माह की अवधि में कर दिया जाएगा और निर्माण 2 वर्ष में पूरा हो जाएगा। हरियाणा सरकार की ओर से इस पेशकश को चुनौती नहीं दी गई और सुप्रीम कोर्ट ने सभी एस.एल.पी. को समाप्त कर दिया।’’
 
बंसी लाल ने आरोप लगाया, ‘‘चौटाला नीत हरियाणा सरकार ने बहुत तत्परता से वे सभी काम कर दिए जिनसे मैंने इंकार किया था। यह मामला सांठगांठ जैसा अधिक लगता है क्योंकि मुख्यमंत्री चौटाला ने अपने पारिवारिक मित्र बादल के निहित स्वार्थों की सेवा का पक्ष लिया था। बाद में भाजपा, जो कि पंजाब में प्रकाश सिंह बादल नीत सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार की घटक थी, ने 23 जुलाई 1999 को चौटाला से हाथ मिलाते हुए मेरी सरकार को पटखनी दे दी थी।’’
 
बाद में हरियाणा विधानसभा के पटल पर रखी गई नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में भी ऑॢबट रिसोटर््स को किए गए भूमि आबंटन पर विपरीत टिप्पणियां की गई थीं। रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘कम्पनी (एच.एस.आई.डी.सी.)ने (बादल परिवार के) हॉलीडे एंड हैल्थ रिसोटर्स को भूमि आबंटन के मामले में न केवल 80.94 लाख रुपए तक का आॢथक लाभ पहुंचाया बल्कि प्रदेश की औद्योगिक नीति में दिए गए दिशा-निर्देशों का भी उल्लंघन किया।...... भूमि आबंटन एच.एस.आई.डी.सी. के उद्देश्यों के भी अनुरूप नहीं था। इस विषय में जब कैग के स्टाफ ने जुलाई 2001 में एच.एस.आई.डी.सी. के प्रबंधन से सवाल पूछे तो उन्हें उत्तर मिला कि प्लाट का आबंटन राज्य सरकार के निर्देशों के अनुरूप किया गया था।’’
 
मोगा त्रासदी और ऑर्बिट रिसोटर्स ने गठबंधन राजनीति का घृणित चेहरा नंगा कर दिया है। केंद्र में सत्तासीन तथा पंजाब में अकाली दल की सत्तारूढ़ सहयोगी भाजपा ने दोनों मुद्दों पर मौन साधे रखा। यदि इस स्थिति को सुधारने के लिए अभी से कदम नहीं उठाए जाते तो गठबंधन सहयोगियों को 2017 के चुनाव में अपने किए का फल भुगतना ही पड़ेगा।
 
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