...क्योंकि केन्द्र सरकार किसे दी ‘गल’ नहीं सुनदी

Edited By ,Updated: 23 Sep, 2020 02:28 AM

because who the central government did not hear the gal

संसद के माध्यम से जिस तरह कृषि बिलों को सरकार ने पास करवाया है इससे केन्द्र सरकार की किसानों की ओर बुद्धिमता की कमी देखी जा सकती है। सरकार का यह हेंकड़ी भरा रवैया है। कई कारणों से यह गंभीर ङ्क्षचता का विषय है। भारतीय कृषि

संसद के माध्यम से जिस तरह कृषि बिलों को सरकार ने पास करवाया है इससे केन्द्र सरकार की किसानों की ओर बुद्धिमता की कमी देखी जा सकती है। सरकार का यह हेंकड़ी भरा रवैया है। कई कारणों से यह गंभीर ङ्क्षचता का विषय है। भारतीय कृषि के लिए केन्द्र सरकार कयामत ला रही है। वहीं यह सरकार के लिए वाटरशैड का क्षण भी है। ये बिल भाजपा के पूंजीवाद लोगों के हितों का संरक्षण मात्र है जोकि गरीब किसानों की कीमत पर थोपे जाएंगे। 

मैं नहीं मानता कि भारतीय लोगों के मनों में ऐसी कोई शंका बाकी बची होगी कि भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार के इन तीन कृषि बिलों के बारे में कोई भी उचित बात नहीं है। महामारी के मध्य इन आर्डीनैंसों को जिस तरह से लाया गया वो पूरी तरह से न्यायोचित नहीं है और उसके बाद संसद के दोनों सदनों में इस पर बिना बहस किए इन्हें पास करवा दिया गया। 

आर्डीनैंस को लाने से पूर्व भारत सरकार ने अपने किसी भी प्रमुख हित धारकों से विचार-विमर्श करने की सोची ही नहीं और न ही उन्होंने किसानों के प्रतिनिधियों से कोई बात करने की सोची। इसके अलावा केन्द्र सरकार ने राज्यों से भी विचार-विमर्श नहीं किया। मोदी सरकार ने भारत में सबसे ज्यादा खाद्यान्न को उत्पन्न करने वाले पंजाब राज्य को भी विश्वास में नहीं लिया। सरकार ने इस तथ्य के बावजूद कि कृषि राज्य सरकार का विषय है, फिर भी उसने बिलों की संवैधानिक वैधता पर ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि हम इसके विरुद्ध अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे। जिस तरह संसद में विपक्ष की आवाज को दबाया गया वह भी एक शर्मनाक कृत्य है। 

एक विशेष कारण जो सरकार के धूर्त, अजनतंत्रवादी तथा संघीय विरोधी विचारों को दर्शाता है वह यह है कि कुछ खुलासा करने की बजाय ये बिल ज्यादातर बातों को छुपाते हैं। गरीब तथा  हाशिए पर रह रहे भारतीय किसानों को उनके हितों, उनके जीवन तथा भविष्य की रक्षा करने का कोई भी आश्वासन नहीं दिया गया। ये बिल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) व्यवस्था का कोई उल्लेख नहीं करते जोकि इन गरीब किसानों की लाइफलाइन है। यही उनके जीवन को बचाने का रास्ता भी है। 

मुझे बताया गया है कि अध्यादेशों ने मौजूदा अधिनियम के नामों को सरल बनाया है। यदि इसका मकसद किसानों को खुश रखने का है तब उनकी संवेदनाओं को समझने में पूरी कमी पर शोक व्यक्त करने जैसा है, जैसा कि  कृषि बिलों में भी इसी तरह से प्रतिबिंबित किया गया है। अपने उत्पादन के नाम पर किसान केवल एक ही बात समझते हैं वह है एम.एस.पी.। तो इन अध्यादेशों या बिलों में एम.एस.पी. कहां है? वास्तव में यह कहीं भी दिखाई नहीं देती। इसके पृष्ठों में केन्द्र सरकार ने कहीं भी यह आश्वासन देने की कोशिश नहीं की कि एम.एस.पी. को मढ़ा नहीं जाएगा। जैसा कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहा था। यदि भारत सरकार के नीति निर्माताओं ने कहीं पर भी उल्लेख किया कि एम.एस.पी. प्राइवेट खिलाडिय़ों पर लागू होगा तथा किसान एक आश्वासित एम.एस.पी. प्राप्त करेंगे और वह भी केवल गेहूं तथा चावल पर ही नहीं बल्कि अन्य फसलों पर, तब सरकार ने कृषि समुदायों की विविधताओं को प्रोत्साहित किया होता। 

वास्तव में यह कानून छोटे किसानों को बड़ी शार्कों के मुंह में धकेल देंगे जहां पर मार्कीट की ताकतें कीमत, वसूली तथा मार्कीट तंत्र को नियंत्रित करेंगी। इस तरह असहाय किसान एक रिटेलर या फिर ट्रेडर से दूसरे तक अपनी छोटी उपज को बेचने के लिए मारे-मारे फिरेंगे। ऐसा एक मौसम से दूसरे मौसम तक होता रहेगा। उचित कीमत हासिल करने के लिए उनके पास सौदेबाजी करने की ताकत नहीं होगी। मौजूदा मार्कीटिंग सिस्टम पर वर्तमान में निर्भर रहने वाले किसानों की वित्तीय बात बीते दिनों की बात हो जाएगी तथा बेहतर भविष्य का आश्वासन जो सरकार उन्हें देती है वह गुम हो जाएगा। उन्हें कहा गया था कि उन्हें 2022 तक उनकी कृषि आय दोगुनी हो जाएगी वह भी मंदी के इस दौर में। 

केन्द्र ने दावा किया था कि ये नए कानून आढ़तियों के चंगुल से किसानों को मुक्ति दिलाएंगे। यहां पर दो बिंदू हैं जिसका वर्णन मैं यहां करना चाहूंगा। पहला यह कि क्या उन्होंने कभी किसानों से यह पूछा कि आढ़तियों से स्वतंत्र होना चाहते हैं? आढ़तियों के बारे में भाजपा की अपनी दिवंगत नेता सुषमा स्वराज ने कभी उनको किसानों का सबसे बड़ा विश्वसनीय तथा हितैषी सिस्टम बताया था। दूसरा कि कैसे यह विधेयक किसानों को बड़े कार्पोरेट्स के चंगुल में पडऩे से रोक पाएंगे जो एक के बाद एक सैक्टर हड़पते जा रहे हैं और यह सब भाजपा नेतृत्व के आंख के नीचे हो रहा है। 

सही मानें तो पंजाब के किसान भाजपा तथा उसके सहयोगियों से जिसमें शिअद भी शामिल है, से आक्रोशित तथा निराश हैं। उनके किए गए वायदों पर उन्हें कोई विश्वास नहीं रहा। पंजाब के किसान जिस ठोस स्थापित प्रणाली में कई दशकों से कार्यरत हैं तथा उन्होंने बखूबी अपना कार्य निभाया है तथा राज्य सरकार ने उनकी ङ्क्षचताओं का ध्यान रखा है जब कभी उनको जरूरत पड़ी, पंजाब सरकार ने किसानों की समय-समय पर बात सुनी है। 

हाल ही में मेरी सरकार ने रैगुलेटिड मंडियों की स्थापना के लिए पंजाब ए.पी.एम.सी. एक्ट में जरूरी संशोधन किए हैं। सरकार ने उन्हें यकीन दिलाया है कि प्राइवेट मार्कीट मौजूदा को अभिभूत न कर ले। हमने महसूस किया कि प्राइवेट सैक्टर मंडियों को कृषि क्षेत्र को चलाने में स्वतंत्र हाथ न दिया जाए क्योंकि इससे छोटे तथा हाशिए पर रह रहे किसान मौत के मुंह में चले जाएंगे और इससे भारतीय कृषि तथा खाद्यान्न सुरक्षा बर्बाद हो जाएगी। ऐसा तो भारत सरकार कर रही है। 

क्या सत्ता की भूखी तथा लालची भाजपा सरकार चिंता करती है। स्पष्ट तौर पर भारत सरकार ऐसा नहीं करती। न तो यह उन किसानों की देखभाल करती है जो सड़कों पर उतरे हैं, न ही ये संसद में चुने हुए प्रतिनिधियों के विचारों को सुनती है। न ही सरकार राज्यों की बात सुनती है जो इन निरंकुश बदलावों से प्रभावित हैं। न तो सरकार पंजाब के बारे में चिंता करती है जोकि एक छोटा-सा सरहदी राज्य है जिसका खाद्यान्न को लेकर बहुमूल्य योगदान है। 

मैंने केन्द्र सरकार को निरंतर ही सचेत किया कि यदि इस मामले पर किसानों के बीच अशांति दिखाई दी तो पाकिस्तान राज्यों को और अधिक परेशानियां देते हुए ऐसे मौकों का फायदा उठाएगा जोकि देश की सुरक्षा के लिए अच्छा न होगा। मगर स्पष्ट तौर पर वह ध्यान नहीं देते।-पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की कलम से ‘पंजाब केसरी’ के लिए लिखा गया विशेष लेख।

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