बिहार को विकास चाहिए,दान नहीं

Edited By Updated: 06 Nov, 2025 04:08 AM

bihar needs development not charity

बिहार को अपने युवाओं की सबसे ज्यादा पलायन दर वाला राज्य होने का संदिग्ध गौरव प्राप्त है। पंजाब और हरियाणा के विपरीत, जहां युवाओं का एक बड़ा वर्ग विदेश जाने का सपना देखता है, बिहार के युवा रोजगार की तलाश में इन राज्यों और देश के अन्य हिस्सों में आते...

बिहार को अपने युवाओं की सबसे ज्यादा पलायन दर वाला राज्य होने का संदिग्ध गौरव प्राप्त है। पंजाब और हरियाणा के विपरीत, जहां युवाओं का एक बड़ा वर्ग विदेश जाने का सपना देखता है, बिहार के युवा रोजगार की तलाश में इन राज्यों और देश के अन्य हिस्सों में आते हैं।
यह स्पष्ट है कि घर पर अवसरों की कमी इन युवाओं को अजीविका के लिए ज्यादातर छोटे-मोटे काम करने के लिए मजबूर करती है। यह देश का तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है, जिसकी आधी आबादी 25 वर्ष से कम आयु की है लेकिन मानव विकास सूचकांक के कई मानकों पर यह सबसे गरीब और पिछड़ा हुआ है।

उदाहरण के लिए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, कम वजन वाले बच्चों, बौने बच्चों, स्वास्थ्य बीमा की कमी और बेहतर स्वच्छता सुविधाओं का उपयोग करने वाली आबादी जैसे क्षेत्रों में बिहार सभी 29 राज्यों में सबसे निचले स्थान पर है। यह अंतिम, यानी 28वें स्थान पर है, जहां 6 वर्ष की बच्चियों से लेकर अधिक आयु की वे महिलाएं हैं जिन्होंने कभी स्कूल में पढ़ाई की है और 18 वर्ष की आयु से पहले विवाह करने वाली महिलाओं की संख्या भी सबसे अधिक है। शिशु मृत्यु दर के मामले में राज्य नीचे से तीसरे स्थान पर है। कारखानों के नवीनतम वार्षिक सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में केवल 3,386 कारखाने हैं जो देश के सभी कारखानों का बमुश्किल 1.3 प्रतिशत है। कारखानों में कार्यरत कुल श्रमिकों में बिहार का हिस्सा मात्र 0.75 प्रतिशत है। बिहार की वर्तमान स्थिति के लिए काफी हद तक वहां की राजनीति, नेता और जातिवादी राजनीति जिम्मेदार है। उनकी अदूरदर्शी दृष्टि, जो हर 5 साल में चुनाव जीतने से आगे नहीं बढ़ती, ने सबसे ज्यादा संभावनाओं वाले राज्य को घुटनों के बल ला दिया है। राज्य में चल रहे विधानसभा चुनाव भी कुछ अलग नहीं साबित हो रहे हैं, जहां 2 मुख्य प्रतिद्वंद्वी, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और महागठबंधन, विकास और रोजगार के अवसर पैदा करने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अपनी अल्पकालिक राजनीति के लिए उदारतापूर्वक मुफ्त उपहारों की पेशकश कर रहे हैं।

राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने रोजगार का वादा किया है लेकिन यह स्पष्ट है कि यह वादा राज्य के मूल्यवर्धन के बजाय चुनाव जीतने के लिए है। इसने राज्य के प्रत्येक परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का वादा किया है। निजी क्षेत्र में रोजगार पैदा करने या उद्यमिता को प्रोत्साहित करने की कोई योजना नहीं है। सरल अंकगणित यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि अगर महागठबंधन सत्ता में आता है तो अनुमानित 2.6 करोड़ परिवारों को सरकारी नौकरी देने के वादे से राज्य के खजाने पर लगभग 6,50,000 करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा। इसने अगले 5 वर्षों तक ‘पात्र महिलाओं’ को 2500 रुपए प्रति माह देने का भी वादा किया है।

नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. सरकार ने एक कदम आगे बढ़कर 1.2 करोड़ से ज्यादा महिलाओं को स्वरोजगार के लिए स्टार्ट-अप राशि के रूप में 10,000 रुपए हस्तांतरित किए हैं। रोजगार सृजन की दिशा में यह एक अच्छी पहल थी लेकिन इस पर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि इस योजना की घोषणा नीतीश कुमार के 20 साल के शासन के अंतिम चरण में की गई थी। दरअसल, यह घोषणा चुनावों की औपचारिक घोषणा और आदर्श आचार संहिता लागू होने से कुछ दिन पहले की गई थी। महिलाओं के वोट हासिल करने के लिए इस खुलेआम रिश्वतखोरी का और भी चौंकाने वाला पहलू यह है कि चुनाव आयोग से एक ‘विशेष अनुमति’ ली गई थी कि यह पैसा चुनाव प्रचार के दौरान, यहां तक कि मतदान से कुछ दिन पहले तक, महिलाओं के बैंक खातों में जमा किया जाएगा। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत के चुनाव आयोग की विश्वसनीयता तार-तार हो गई है और यहां तक कि न्यायपालिका ने भी बिहार में हो रही घटनाओं पर आंखें मूंद ली हैं। ज्यादातर मीडिया के लिए, जितना कम कहा जाए उतना अच्छा है।

अपनी विशाल जनशक्ति और  संसाधनों के साथ-साथ, युवाओं की महत्वाकांक्षाओं के साथ, बिहार देश के अग्रणी राज्यों में से एक बनने की क्षमता रखता है। बुनियादी ढांचे के विकास, रोजगार सृजन, उद्यमिता को बढ़ावा देने, स्वास्थ्य और शिक्षा के मानकों में सुधार और कानूनों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए दूरदर्शी दृष्टिकोण रखने वाले बेहतर नेतृत्व की आवश्यकता है।-विपिन पब्बी

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