दिल्ली में होगा भाजपा, ‘आप’ और कांग्रेस में चुनावी ‘रण’

Edited By ,Updated: 28 Jan, 2020 04:13 AM

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झारखंड के निर्णायक विधानसभा चुनावों के बाद अब 8 फरवरी को दिल्ली में ‘आप’, भाजपा तथा कांग्रेस में त्रिकोना मुकाबला देखने को मिलेगा। कांग्रेस ने 2013 तक 15 वर्षों तक दिल्ली पर राज किया मगर 2015 में यह पार्टी शून्य हो गई। अब वह फिर से दिल्ली में सत्ता...

झारखंड के निर्णायक विधानसभा चुनावों के बाद अब 8 फरवरी को दिल्ली में ‘आप’, भाजपा तथा कांग्रेस में त्रिकोना मुकाबला देखने को मिलेगा। कांग्रेस ने 2013 तक 15 वर्षों तक दिल्ली पर राज किया मगर 2015 में यह पार्टी शून्य हो गई। अब वह फिर से दिल्ली में सत्ता पाने की चाह रखती है। वहीं भाजपा 22 सालों के बाद फिर से सत्ता में वापसी के लिए कशमकश कर रही है। भाजपा तथा कांग्रेस से ‘आप’ का पलड़ा भारी है। किसी पॉश कालोनी या फिर किसी गली-नुक्कड़ से संबंधित किसी भी व्यक्ति से अगर पूछा जाए कि वह  फिर से किस पार्टी को चाहता है तो उसका एक ही जवाब होगा केजरीवाल। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि लहर ‘आप’ के पक्ष में चल रही है। ये वही दिल्ली वाले हैं जिन्होंने 2014 तथा 2019 में  नरेन्द्र मोदी के पक्ष में वोट दिया था। 

दिल्ली में लोकसभा चुनावों में भाजपा ने सभी सातों सीटें जीती थीं। दिल्ली तथा एन.सी.आर. में केजरीवाल की रेटिंग भाजपा तथा कांग्रेस से ज्यादा है। राजधानी के ज्यादातर लोग 7 साल पुरानी ‘आप’ की वापसी की आस लगाए हुए हैं क्योंकि उनका मानना है कि ‘आप’ ने काम किया है। दिल्ली में 6 चीजों की बात हर आम आदमी करता है जैसे कि बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, महिलाओं के लिए फ्री बस सेवा तथा कालोनियों में सी.सी.टी.वी.। वहीं भाजपा की योजना है कि वह अनधिकृत कालोनियों को स्थायी करने के वायदे से बस्तियों में रहने वाले लोगों का समर्थन हासिल कर सकती है। राजनीतिक पंडितों के अनुसार कांग्रेस पार्टी इस बार ‘आप’  के वोट आधार में घात लगाएगी क्योंकि हाल ही में संशोधित किए गए नागरिकता कानून के खिलाफ मुस्लिम जनसंख्या कांग्रेस की तरफ झुकी लगती है। इस बार दिल्ली के मतदाता खुले तौर पर तथा चिल्ला-चिल्ला कर शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी तथा बिजली के बारे में बात कर रहे हैं और इन बातों से राजनीतिक दलों को एक संदेश देना चाहते हैं। 

बिहार में जद (यू) की रणनीति
झारखंड चुनाव के बाद जद (यू) में पार्टी के भीतर सी.ए.ए. तथा एन.आर.सी. को लेकर कई दरारें दिखाई पड़ रही हैं। नेताओं के बीच फूट जगजाहिर है मगर राजनीतिक पर्यवेक्षक यह दावा कर रहे हैं कि जद (यू) की यह रणनीति है कि वह भाजपा को ज्यादा सीटें देने के लिए दबाव में लाए। शुरूआत में सी.ए.ए. तथा एन.आर.सी. को समर्थन देने के मुद्दे पर पवन वर्मा तथा प्रशांत किशोर ने बहुत शोर मचाया। जद (यू) सांसद पवन वर्मा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर दिल्ली में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लडऩे पर सवाल उठाया। 

नतीजतन नीतीश कुमार ने पवन को चेतावनी दी कि अगर वह पार्टी को छोडऩा चाहते हैं तो छोड़ सकते हैं। इसके बाद जद (यू) के उपाध्यक्ष तथा राजनीतिक नीतिकार प्रशांत किशोर ने उपमुख्यमंत्री तथा भाजपा नेता सुशील कुमार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि वह लोगों को चरित्र प्रमाण पत्र दे रहे हैं। इससे पहले वह कैमरे पर नीतीश कुमार के बारे में बोलते रहे। सुशील कुमार मोदी ने 2014 में नीतीश कुमार की आलोचना की थी कि उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़कर लोगों से मिले जनादेश को नकारा है। उन्होंने नीतीश कुमार पर यह भी आरोप लगाया कि उन्होंने जॉर्ज फर्नांडीज, लालू यादव, जीतन राम मांझी को धोखा दिया है और अब सुशील कुमार मोदी भाजपा के एजैंडे का समर्थन करने के लिए नीतीश कुमार की प्रशंसा कर रहे हैं। 

प्रशासन पर योगी की कमजोर पकड़
उत्तर प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनावों के समय उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य एक पिछड़ी श्रेणी के नेता हैं और भाजपा के राज्य अध्यक्ष भी थे मगर योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके बीच रिश्तों में खटास आ गई। वर्तमान में प्रशासन के मुद्दे पर दोनों के बीच उत्पन्न मतभेद सामने आ गए क्योंकि डी.जी.पी. 31 जनवरी को सेवानिवृत्त हो रहे हैं तथा योगी उन्हें 3 माह की एक्सटैंशन देना चाहते हैं मगर डी.जी.पी. ओ.पी. सिंह आगे कार्यभार संभालने को तैयार नहीं। इसलिए योगी सरकार ने 7 नामों के एक पैनल को यू.पी.एस.सी. को भेजा है जिसमें 2 1988 बैच के हैं तथा 3 1987 बैच के वहीं एक वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी जवाहर लाल त्रिपाठी जोकि 1986 बैच के हैं, ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में लखनऊ बैंच में एक याचिका दायर करके कहा है कि उनका नाम यू.पी.एस.सी. में भेजे गए आई.पी.एस. अधिकारियों की सूची में शामिल नहीं किया गया तथा वह अगले डी.जी.पी. बनना चाहते हैं क्योंकि उनकी वरिष्ठता टॉप पर है। वहीं ऐसे भी कयास लगाए जा रहे हैं कि योगी सरकार डी.एस. चौहान को उत्तर प्रदेश का डी.जी.पी. बनाना चाहती है। 

उत्तराखंड में कांग्रेस में खींचातानी
जे.पी. नड्डा के भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के फौरन बाद उत्तराखंड में कांग्रेस के बीच खींचातानी शुरू हो गई है। जहां एक ओर कांग्रेसी नेता हरीश रावत ने नड्डा के पार्टी अध्यक्ष बनने पर उन्हें बधाई दी है वहीं उत्तराखंड के कांग्रेसी नेता हरीश रावत का विरोध कर रहे हैं और उन्होंने इसकी शिकायत कांग्रेस हाईकमान को की है और दावा किया है कि हरीश रावत भाजपा में जा सकते हैं। दूसरी तरफ हरीश रावत ने प्रैस को बताया कि जब जे.पी. नड्डा केन्द्र में स्वास्थ्य मंत्री थे तब ऋषिकेश में एम्स का आबंटन किया गया था। नड्डा एक साधारण व्यक्ति हैं वहीं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी तो नड्डा को बधाई संदेश भेजा है मगर राज्य के कांग्रेसी नेता उनके  इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हैं। 

झारखंड में कैबिनेट विस्तार में देरी
झारखंड के मुख्यमंत्री  का पद संभाले हुए हेमंत सोरेन को एक माह हो चुका है मगर अभी तक उन्होंने उनके साथ शपथ ग्रहण कर चुके 3 मंत्रियों को विभाग आबंटित नहीं किया है। कैबिनेट विस्तार पर एक शब्द भी नहीं बोला गया और इस मुद्दे पर अनिश्चितता कांग्रेसी नेतृत्व के लिए ङ्क्षचता का विषय बन रही है। झामुमो तथा कांग्रेस ने अभी न्यूनतम सांझा कार्यक्रम (सी.एम.पी.) बनाने की प्रक्रिया को शुरू करना है। इसके विपरीत महाराष्ट्र में शिवसेना, राकांपा तथा कांग्रेस के सरकार बनाने से पहले सी.एम.पी. तैयार हो गया था।-राहिल नोरा चोपड़ा

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