जो वायदे पूरे नहीं हुए, उन पर भाजपा मौन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Jun, 2017 12:17 AM

bjps silence on those promises which were not fulfilled

नरेन्द्र मोदी नीत राजग सरकार जहां अपनी पिटारी में कुछ प्रशंसनीय उपलब्धियां लेकर चौथे ...

नरेन्द्र मोदी नीत राजग सरकार जहां अपनी पिटारी में कुछ प्रशंसनीय उपलब्धियां लेकर चौथे वर्ष में प्रवेश कर रही है, वहीं कुछ अशोभनीय बातें भी हुई हैं। अपने 3 वर्षीय जश्नों के अंग स्वरूप इसने अपनी उपलब्धियों की गणना करते हुए विज्ञापन दिए हैं लेकिन उन वायदों के बारे में मौन साधे रखा है जो पूरे नहीं हुए हैं।

सरकार ने खुद को ‘‘दिलेर एवं निर्णायक’’ के रूप में प्रस्तुत किया है और अपनी उपलब्धियों की सूची के साथ यह नारा दिया है : ‘‘साथ है, विश्वास है... हो रहा विकास है’’। भ्रष्टाचार को पराजित करने की बातें करते हुए विज्ञापन में कहा गया है कि ‘‘चाहे कुछ भी हो, हम अपने देश को सुरक्षित बनाएंगे, इसका स्वाभिमान बहाल करेंगे और लंबे समय से लटके आ रहे मुद्दों को सुलझाएंगे।’’ इस विज्ञापन में ‘‘काले धन और भ्रष्टाचार’’ से निपटने के लिए नोटबंदी को ऐतिहासिक फैसले के रूप में सूचीबद्ध किया है। इस कदम का समूचा प्रभाव अभी भी याद नहीं और हमें ‘गेम चेंजर’ करार दिए गए इस कदम के मूल्यांकन के लिए अभी कुछ समय और इंतजार करना होगा। 

प्रारम्भ में सरकार ने कहा था कि इस कार्रवाई का लक्ष्य काले धन पर अंकुश लगाना और भ्रष्टाचार की जड़ें खोदना है लेकिन बाद में इसने अपने लक्ष्य में बदलाव करते हुए कहना शुरू कर दिया कि यह कार्रवाई आतंकियों के वित्त पोषण पर प्रहार करने के लिए की गई थी। इसके बाद एक बार फिर अपने लक्ष्य में बदलाव करते हुए सरकार ने ‘‘कैश लैस सोसायटी’’ के युग में कदम धरने का राग शुरू कर दिया। अंतिम लक्ष्य के रूप में ‘‘लैस कैश सोसायटी’’ पर आकर आखिर यह बदलाव का सिलसिला रुक गया। वैसे नोटबंदी के कदम ने अर्थव्यवस्था को निश्चय ही नुक्सान नहीं पहुंचाया है जैसा कि प्रारम्भ में खदशा था। स्टाक मार्कीट धुआंधार प्रगति पथ पर अग्रसर है, हालांकि यह जरूरी नहीं कि ऐसा सरकार की किसी कार्रवाई का परिणाम हो। 

बेनामी सम्पत्ति अधिनियम की अधिसूचना, कोयला, स्पैक्ट्रम, एफ.एम. की नीलामी, पर्यावरणीय क्लीयरैंस के मामले में पारदॢशता तथा बेदाग गवर्नैंस सचमुच ही सरकार की उत्कृष्ट खूबियां हैं। अभी तक किसी भी मंत्री के विरुद्ध भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है और यह वास्तव में सरकार की उल्लेखनीय उपलब्धि है। विज्ञापनों का एक अन्य सैट सर्जिकल स्ट्राइक्स का आतंकवादियों को जोरदार चेतावनी के रूप में उल्लेख करता है। यह म्यांमार-भारत सीमा के दूसरी ओर आतंकियों के विरुद्ध दृढ़ कार्रवाई की बात करता है जो हमारे जवानों ने अपने साथियों पर हुए हमले का बदला लेने के लिए सीमा पार की थी। इन विज्ञापनों में मिसाइल टैक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एम.सी.आर.) में प्रविष्ट होने वाले दक्षिण एशियाई इलाके के प्रथम देश के रूप में भारत को श्रेय देता है। इस मुद्दे को भी ज्यादा चुनौती नहीं दी जा सकती लेकिन इतना अवश्य कहना होगा कि सीमा पारीय आतंकवादियों को सर्जिकल स्टाइक्स से कोई खास फर्क नहीं पड़ा है।

‘‘लंबे समय से लटके आ रहे मुद्दों’’ से संबंधित अंतिम कैटेगरी के विज्ञापनों में सरकार ने अपने प्रथम उपलब्धि के रूप में ‘वन रैंक, वन पैंशन’ (ओ.आर.ओ.पी.) की मंजूरी और कार्यान्वयन को दर्ज किया है। बेशक इसे लागू कर दिया है तो भी बहुत से पूर्व सैनिक अभी संतुष्ट दिखाई नहीं देते और उनका कहना है कि सरकार ने ओ.आर.ओ.पी. का जो संस्करण लागू किया है वह असली की तुलना में काफी कमजोर बना दिया गया है। एक बात तो तय है कि बंगलादेश के साथ सीमा विवाद सुलझाने के लिए मोदी सरकार को श्रेय से इन्कार नहीं किया जा सकता।

गुड्स एंड सर्विसिस टैक्स (जी.एस.टी.) पर आम सहमति को भी सरकार ने अपनी उपलब्धियों में दर्ज किया है और यह जल्दी ही कार्यान्वित होने जा रहा है। इस बात का दोबारा उल्लेख करना असंगत नहीं होगा कि जी.एस.टी. के लाभों का आकलन करने में अभी कुछ समय लगेगा लेकिन इस मुद्दे पर आम सहमति विकसित करके सरकार ने सचमुच ही बढिय़ा काम किया है। सरकार द्वारा की गई पहलों में ऐसे विषय भी शामिल हैं जिनका कार्यान्वयन अभी तक उल्लेखनीय ढंग से नहीं हुआ। स्वच्छ भारत योजना, गरीबों के लिए बीमा स्कीमें, स्वच्छ गंगा अभियान, ई-गवर्नैंस तथा बैंक खातों में सबसिडी का सीधा हस्तांतरण ऐसे ही कुछ विषय हैं। 

लेकिन इन विज्ञापनों में राष्ट्र को दरपेश अनेकों मुद्दों का उल्लेख तक नहीं हुआ। इनमें सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में कश्मीर समस्या (जोकि वास्तव में गत एक वर्ष के दौरान ही अधिक भड़की है), अल्पसंख्यकों व दलितों पर लगातार हमले जारी रहना तथा कुछ क्षेत्रों में गौरक्षकों के वेश में गुंडों द्वारा हमले शामिल हैं। अल्पसंख्यकों, खास तौर पर मुस्लिमों में भरोसा जगाने के लिए सरकार ने कुछ भी उल्लेखनीय नहीं किया है। जहां तक रोजगार सृजन  और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकॢषत करने का मामला है, इसमें भी कोई खास उपलब्धि नहीं हुई। कश्मीर पहले की तरह जल रहा है और वास्तव में तो ङ्क्षहसा में बढ़ौतरी हुई है। जम्मू-कश्मीर में शायद कभी भी स्थिति इतनी बदतर नहीं रही। ऐसा इस तथ्य के बावजूद है कि भाजपा महबूबा मुफ्ती की सरकार में गठबंधन सहयोगी है। दोनों पक्षों को अनेक मौतों का दंश झेलना पड़ रहा है और  उथल-पुथल के कारण पैदा होने वाले व्यवधान कई गुणा बढ़ गए हैं। 

स्थिति को तनावमुक्त करने के लिए मोदी सरकार ने कुछ पत्थरबाजों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई का समर्थन करने की सिवाय अन्य कोई पहलकदमी नहीं की। लीक से हटकर मेजर गोगोई को पुरस्कृत करना तथा सेना प्रमुख द्वारा उनकी कार्रवाई का समर्थन करना, सरकार के कठोर होते पैंतरे के स्पष्ट संकेत हैं। सरकार के इस रवैये का दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम यह हो रहा है कि कश्मीर समाज में प्रचंड विभाजन बढ़ रहा है और विरोध के स्वर भी प्रखर हो रहे हैं। हर कोई देख सकता है कि सरकार अपनी किसी भी तरह की आलोचना करने वालों के प्रति असहिष्णु हो गई है। किसी भी तरह की वैकल्पिक राय रखने वालों को नियमित रूप में घृणा पत्रों (हेट मेल) तथा धमकियों और ब्लैकमेल का सामना करना पड़ता है। 

अल्पसंख्यकों में भय और असुरक्षा पैदा करने की कीमत पर भी हिन्दुत्व को आगे बढ़ाया जा रहा है। यह रुझान कोई लुका-छिपा नहीं और खतरनाक संभावनाओं से भरा हुआ है। साथ ही साथ यह समाज में विभाजन को और तीखा कर रहा है या तो आपको मोदी भक्त माना जा सकता है या मोदी से नफरत करने वाला। किसी प्रकार के तर्क-वितर्क, विवाद और चर्चा के लिए बीच की स्थिति (ग्रे एरिया) लगातार सिकुड़ता जा रहा है। लेकिन चौथे वर्ष में प्रवेश करते हुए भाजपा और उसकी सरकार इस बात से सांत्वना हासिल कर सकते हैं कि हनीमून भंग नहीं हुआ है।  इसने एक के बाद एक चुनावी जीतें हासिल की हैं। 

खास तौर पर उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य में, हालांकि दिल्ली और बिहार में कुछ ही समय पूर्व इसे काफी आघात भी पहुंचा था। वर्तमान में 17 राज्यों में भाजपा का शासन है जिनमें से 4 में यह गठबंधन सहयोगी है। विपक्षीय पार्टियां अभी भी एकजुट नहीं हो पाई हैं और कोई विकल्प न होने का लाभ मोदी को मिल रहा है। यदि ऐसी स्थिति होते हुए भी मोदी समावेशी वृद्धि के लिए काम करने का मौका गंवा देते हैं तो यह बहुत ही दयनीय बात होगी।
 

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