रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार राजनीतिक धर्म बन गए?

Edited By ,Updated: 03 Aug, 2022 04:06 AM

bribery and corruption become political religions

पार्था गेट भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होने के बाद यह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के लिए परेशानी का कारण बन गया है। मंत्री पार्थ चटर्जी और उनकी सहयोगी

पार्था गेट भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होने के बाद यह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के लिए परेशानी का कारण बन गया है। मंत्री पार्थ चटर्जी और उनकी सहयोगी के अपार्टमैंट से 51 करोड़ रुपए से अधिक नकद, आभूषण, अनेक संपत्तियों के दस्तावेज मिले हैं और इनका संबंध शिक्षक भर्ती घोटाले से है। इसमें कौन सी बड़ी बात है? एक ऐसे देश में, जहां पर राजनीतिक नैतिकता बिल्कुल न हो, भ्रष्टाचार कौन-सी बड़ी बात है। 

उसके बाद एक भूमि घोटाले में धन शोधन निवारण अधिनियम के अंतर्गत प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) द्वारा शिवसेना के संजय राऊत की गिरफ्तारी की गई। फिर झारखंड कांग्रेस के 3 विधायकों को भारी नकदी के साथ पश्चिम बंगाल पुलिस ने पकड़ा। इससे पूर्व मुख्यमंत्री सोरेन के वकील और उनके सहयोगी को खनन पट्टा मामले में ई.डी. द्वारा गिरफ्तार किया गया। ‘आप’ के मंत्री सत्येन्द्र जैन को 4 कंपनियों के माध्यम से धन शोधन के लिए गिरफ्तार किया गया और नैशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी से ई.डी. द्वारा पूछताछ की गई। 

ये खुलासे कोई नई बात नहीं हैं और यह हमारे लोकतंत्र में लेखा बाह्य संपत्ति का एक अंश मात्र है। सभी पार्टियां इसे जानती हैं। क्या हम एक अनैतिक, भ्रष्ट और गैर-जवाबदेह राजनीतिक व्यवस्था के आदी नहीं हो गए हैं, जिसमें पैसों के लिए किसी भी हद तक गिरा जा सकता है। झूठ, रिश्वतखोरी और सौदेबाजी हमारी व्यवस्था के मूल आधार बन गए हैं और कोई भी इसमें सुधार नहीं करना चाहता। 

उच्चतम न्यायालय द्वारा धन शोधन अधिनियम पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगाने के बाद प्रवर्तन निदेशालय, जो पहले ही काफी शक्तिशाली था, उसे और शक्तियां मिली हैं। वर्ष 2014 से निदेशालय द्वारा 3555 से अधिक मामले दर्ज किए गए, जबकि वर्ष 2004 से 2012 तक केवल 112 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से 888 मामलों में आरोप पत्र दायर किए गए और 23 लोग दोषी पाए गए और वर्ष 2014 से धन शोधन निवारण अधिनियम के अंतर्गत 99356 करोड़ रुपए जब्त किए गए, जबकि 2004-05 से 2013-14 के बीच यू.पी.ए. सरकार के दौरान केवल 5338 करोड़ रुपए जब्त किए गए थे। 

आशानुरूप विपक्ष आरोप लगाता है कि सरकार उनके पीछे पड़ी है और उनके कहने का कारण यह है कि इस वर्ष चुनावों से पूर्व ई.डी. ने पंजाब के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री चन्नी के रिश्तेदार पर छापा मारा और 8 करोड़ रुपए जब्त किए। उत्तर प्रदेश चुनावों से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश के सहयोगी पर छापा मारा। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के 14 सहयोगियों को निशाना बनाया गया और तमिलनाडु में चुनावों से पूर्व द्रमुक के कुछ नेताओं की जांच की गई। 

प्रवर्तन निदेशालय और सी.बी.आई. ने 2014 से 2017 के बीच शारदा घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के सुवेंदु अधिकारी से पूछताछ की थी, किंतु वह 2020 में भाजपा में शामिल हो गए और उसके बाद उनसे कोई पूछताछ नहीं की गई तथा अब वह पश्चिम बंगाल में विपक्ष के नेता हैं। असम के मुख्यमंत्री हेमन्त बिस्वा सरमा को गुवाहाटी जलापूर्ति घोटाले में भाजपा द्वारा निशाने पर लिया गया था किंतु उनके भाजपा में शामिल होने के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इसी तरह महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के विरुद्ध धन शोधन निवारण अधिनियम के अधीन मामले दर्ज किए गए किंतु अब वह भाजपा में शामिल हो गए हैं और भाजपा सांसद हैं। 

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को 2017 में व्यापमं घोटाले में क्लीन चिट दी गई। भाजपा के येद्दियुरप्पा 2019 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने, हालांकि उनके विरुद्ध रिश्वतखोरी और भूमि घोटाले के आरोप थे। हालांकि ई.डी. के मामलों में दोष सिद्धि की दर 1 प्रतिशत से कम है, किंतु क्या इसका तात्पर्य यह है कि हम भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कोई कार्रवाई न करें? इससे एक चिंताजनक प्रश्न उठता है कि हमारे नेताओं को रिश्वतखोरी और इन छापों से बिल्कुल परेशानी नहीं होती। उन्होंने रिश्वतखोरी को एक राजनीतिक नाटक बना दिया है। 

क्या राजनीति का मुख्य उद्देश्य शासन के मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करना नहीं? क्या रिश्वतखोरी राजनीतिक धर्म बन गया है, जहां पर राजनीति का सरोकार पूर्णत: स्वीकार्यता से है और इसका विश्वसनीयता से कोई लेना-देना नहीं तथा सार्वजनिक जीवन समझौतों का नाम है न कि सिद्धांतों का। नैतिकता के उपदेश देते रहो किंतु उन्हें व्यवहार में लाने की आवश्यकता नहीं। ऐसे वातावरण में, जहां पर रिश्वतखोरी सर्वत्र व्याप्त है और हमारे शासन के दैनिक कार्यकरण को प्रभावित कर रही है तथा देश को एक दुष्चक्र में फंसा रही है, पैसा बनाने का प्रलोभन हमेशा बड़ा होता है और इससे बचना मुश्किल है। 

पार्था गेट हमारे नेताओं के दोगलेपन का पर्दाफाश करता है। जब तक कोई नेता प्रशासन का अंग बना रहता है, सब उसके कारनामों की ओर आंखें मूंदे रहते हैं। यह शासन के अनैतिक पहलू को उजागर करता है जहां पर ईमानदार उस व्यक्ति को माना जाता है जो पकड़ा नहीं जाता। 

हैरानी की बात यह है कि 78 केन्द्रीय मंत्रियों में से 34 ने घोषणा की है कि उनके विरुद्ध भ्रष्टाचार और आपराधिक मामले दर्ज हैं। ये आंकड़े एसोसिएशन ऑफ डैमोक्रेटिक रिफाम्र्स ने दिए हैं। साथ ही यह हमारी प्रणाली में असमानता को भी रेखांकित करता है। एक छोटी-मोटी चोरी करने वाला व्यक्ति वर्षों तक जेल में सड़ता रहता है। कोई बाबू 100 रुपए की रिश्वत लेने के लिए नौकरी से बर्खास्त हो जाता है किंतु एक नेता, जो करोड़ों का लेन-देन करता है, वह उन्मुक्त विचरण करता है और हमेशा यह दलील दी जाती है कि उसके विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं या जब तक दोषी साबित नहीं हुआ तब तक निर्दोष है, कानून अपना कार्य करेगा या मतदाताओं के निर्णय का सहारा ले लेते हैं और इस तरह व्यवस्था में हेराफेरी कर दंड से बचते हैं। 

वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय में कहा गया था कि वर्ष 2009 से 2014 के चुनावों के बीच सांसदों की आय 500 प्रतिशत से 1200 प्रतिशत तक बढ़ी, जैसा कि उनके चुनावी शपथ पत्रों से स्पष्ट होता है और यह पद के दुरुपयोग का संकेत है। इसका तात्पर्य है कि किसी राष्ट्र को उसके सस्ते नेता सबसे अधिक महंगे पड़ते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि भ्रष्टाचार के कारण देश को 3,50,000 करोड़ रुपए की कीमत चुकानी पड़ती है। उच्चतम न्यायालय ने भी सरकारी तंत्र में बढ़ते भ्रष्टाचार के लिए चिंता व्यक्त की है। 

हमारे राजनेता यह नहीं समझ पाते कि भ्रष्टाचार के कारण न केवल गरीबी बढ़ती है, अपितु यह गरीबों को और गरीब बना देता है। आम आदमी को बिजली, सड़क और पानी तो दूर, रोटी, कपड़ा और मकान देने की राज्य की क्षमता प्रभावित होती है। भारत विश्व की बड़ी शक्ति बनना चाहता है, इसलिए उसे भ्रष्टाचार के संबंध में ठोस सुधारात्मक कदम उठाने होंगे और साथ ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए चुनावी और राजनीतिक वित्त पोषण के संबंध में सुधार करने होंगे। 

पार्था गेट और राऊत के मामलों से हमारे नेताओं को सबक लेना चाहिए। हमें एक भ्रष्ट व्यवस्था के स्थान पर दूसरी भ्रष्ट व्यवस्था अपनाने की बजाय एक साफ-सुथरा राजनीतिक तंत्र विकसित करना चाहिए। शासन की प्रणाली में आमूल-चूल सुधार करना एक बड़ी चुनौती है। कोई संदेह नहीं कि राजनीति बदमाशों का अंतिम अड्डा बन गई है।-पूनम आई, कोशिश
     

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!