नैतिक मूल्यों के आडंबर में भटकती नौकरशाही

Edited By Updated: 18 Oct, 2025 03:52 AM

bureaucracy wandering under the guise of moral values

नौकरशाही एक प्रशासनिक व्यवस्था है जो नैतिक मूल्यों को बनाए रखने और उन्हें संचालित करने का एक माध्यम है। मगर जब नौकरशाही अपने नैतिक मूल्यों से भटक जाती है तब यह भ्रष्टाचार, अक्षमता, लालफीताशाही व काम के प्रति उदासीनता जैसी समस्याओं का कारण बन जाती है।

नौकरशाही एक प्रशासनिक व्यवस्था है जो नैतिक मूल्यों को बनाए रखने और उन्हें संचालित करने का एक माध्यम है। मगर जब नौकरशाही अपने नैतिक मूल्यों से भटक जाती है तब यह भ्रष्टाचार, अक्षमता, लालफीताशाही व काम के प्रति उदासीनता जैसी समस्याओं का कारण बन जाती है। नौकरशाही की संरचना का मूल उद्देश्य सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करना होता है, ताकि किसी के साथ पक्षपात या पूर्वाग्रह न हो। नौकरशाह नैतिक मूल्यों की अवहेलना आमतौर पर करते देखे जाते हैं। हालांकि उनके लिए अपने कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए विभागीय कायदे कानून बनाए गए होते हैं, ताकि वह नियमों के अधीन अपना कार्य करते हुए समाज की सेवा कर सकें। मगर नौकरशाही का यह ढांचा इतना मजबूत होता है कि लोगों को इनकी इच्छानुसार ढलने के लिए मजबूर कर देता है। नौकरशाहों में संवेदना, सजगता व सौहार्दपूर्ण व्यवहार की कमी इत्यादि उनके रग-रग में समा चुकी है।

लाचार, पीड़ित, असहाय व जरूरतमंद लोग नौकरशाहों के पास बड़ी उम्मीद से जाते हैं मगर जब उनको विपरीत व्यवहार का सामना करना पड़ता है तब उनके मानसिक पटल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। कुछ अधिकारी अच्छा कार्य करने वाले भी होते हैं मगर लोग उन्हें भी गिरी हुई निगाहों से देखना इसलिए शुरू कर देते हैं क्योंकि उन्हें ऐसे चंद लोगों की ईमानदारी व इन्सानियत पर विश्वास ही नहीं हो पाता। कई ऐसे नौकरशाह भी हैं जो वैसे तो ईमानदार होते हैं मगर नैतिक मूल्यों के अन्य पहलुओं से समझौता करते हुए कई प्रकार की अनैतिकताओं को अंजाम देते रहते हैं। ऐसे अधिकारी राजनीतिज्ञों की शरण में जाकर अपनी विभागीय उन्नति व अपनी मनपसंद तैनाती करवा कर अपना दबदबा कायम रखने में सफल हो जाते हैं।

ऐसे अधिकारियों को यदि न्यायालयों का डर न हो तो ये लोग अपने राजनीतिक आकाओं की हर प्रकार की इच्छापूर्ति करने से पीछे नहीं रहते। इसी तरह कुछ ऐसे भी अधिकारी होते हैं जो जनता के साथ सीधा सम्पर्क रखते हैं तथा वे स्कूलों/कालेजों व अन्य संस्थानों में जाकर बच्चों के साथ डांस तक करते हैं तथा वाहवाही लूटते हैं। मगर ऐसे अधिकारी विभिन्न प्रकार के माफिया ग्रुप के लोगों के संपर्क में रहते हैं तथा उनके साथ मिलकर अपनी जेबें भरते रहते हैं और रंगरलियां भी मनाते रहते हैं क्योंकि सत्ता व अधिकार उनके हाथों में होता है तथा वे अनैतिकता की सभी हदें लांघते रहते हैं। 

हाल ही में नूपुर वोहरा नाम की असम राज्य की एक महिला अधिकारी ने अपने छ: वर्ष के कार्यकाल में ही करोड़ों रुपयों की नकदी व जेवरात की संपत्ति बना ली। लोगों में यह अधिकारी बड़ी मशहूर थी क्योंकि वह सरकारी जमीनों को लैंड माफिया के लोगों को स्थानांतरित कर देती थी तथा हर जगह उसके जै-जैकारे ही लगते थे। वास्तव में नौकरशाही अनेक दुर्गुणों और समस्याओं का प्रतीक है। इसमें व्यवहार का रूप कठोर, कष्टप्रद, अमानुषिक, औपचारिक तथा आत्मरहित होता है। निर्णय लेने में विलम्ब किया जाता है तथा कानूनों को हवाला देकर टालमटोल की जाती है। लालफीताशाही का प्रचलन तो आमतौर पर देखने को मिलता ही रहता है।  अधिकतर नौकरशाह अपने वरिष्ठ अधिकारियों के कार्यों का अनुसरण करते हैं तथा अनीति का साथ देते हुए बहती गंगा में अपने हाथ धोते रहते हैं। मगर ऐसी परिस्थितियों में यदि ईमानदार व्यक्ति के समर्थन में समाज खड़ा नहीं होगा तो अली बाबा के चालीस चोर ही अपना आधिपत्य जमाते रहेंगे तथा समाज पतन की ओर अग्रसर होता रहेगा।

दूसरी तरफ विभाग में कुछ ऐसे अधिकारी भी होते हैं जो अपने कुशल नेतृत्व से विभाग को एक नई दशा व दिशा देते हैं तथा अधीनस्थों के लिए प्रेरणा के स्रोत बन जाते हैं। उदाहरण के तौर पर हिमाचल प्रदेश के वर्तमान पुलिस महानिदेशक अशोक तिवारी ने पुलिस जवानों को एक संदेश जारी किया है जिसमें नैतिकता के सभी पहलुओं का समावेश है। अपने संदेश में उन्होंने मुख्यत: जनता के साथ मधुर व्यवहार करने, लोगों की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते हुए ईमानदारी से कार्य करने की नसीहत दी है। मगर यह सब केवल कागजों तक ही सीमित न रहकर कार्यान्वित रूप में भी दिखना चाहिए। आज हिमाचल पुलिस देश के अन्य राज्यों की पुलिस से इसलिए बेहतर कार्य कर रही है क्योंकि पुलिस का नेतृत्व ईमानदार अधिकारियों के हाथ में रहता रहा है। आज प्रतिबद्ध नौकरशाही की जरूरत है तथा जनता को विश्वास होना चहिए कि लोक सेवा सभी प्रकार के पक्षपात व दबाव से मुक्त है।

अनैतिकता के बजते डंके पर नियंत्रण लाने की जरूरत है जिसके लिए समाज के बुद्धिजीवियों व मीडिया के लोगों को अपना बढ़-चढ़ कर सुयोग्य योगदान देना होगा। आज नौकरशाहों व समाज के सभी लोगों को श्री कृष्ण व श्रीराम की तरह चरित्रवान, प्रज्ञावान, प्रगाढ़, परोपकारी, पौरूषार्थी, निष्ठावान, ओजस्वी व तेजस्वी बनकर एक अच्छा इंसान बनने की जरूरत है। नौकरशाहों को अपनी गरिमा बनाए रखनी चाहिए तथा अपनी गिरती हुई नैतिकता को मजबूत व सशक्त बनाने पर जोर देना चाहिए। बाहरी आडंबरों की नौटंकी बंद करनी चाहिए तथा देश को एक मजबूत राष्ट्र बनाने में हरसंभव योगदान देना चाहिए।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड)

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