क्या जिनपिंग के हाथों से फिसल सकती है चीन की सत्ता

Edited By ,Updated: 18 Feb, 2022 06:36 AM

can china s power slip out of jinping s hands

पूरी दुनिया में चीन अपनी मक्कारी और चालबाजियों के लिए जाना जाता है। अपनी धूर्तता के कारण चीन दुनिया की नजरों से अपने स्याह चेहरे को छिपाने में कई बार कामयाब भी रहा है। अपने

पूरी दुनिया में चीन अपनी मक्कारी और चालबाजियों के लिए जाना जाता है। अपनी धूर्तता के कारण चीन दुनिया की नजरों से अपने स्याह चेहरे को छिपाने में कई बार कामयाब भी रहा है। अपने पड़ोसी देशों के राजनीतिक मामलों में दखलंदाजी की बात हो या वहां पर अपनी मनपसंद सरकार बनाने की, चीन हमेशा इन सभी कामों में आगे रहता है। लेकिन जैसी करनी वैसी भरनी, सत्ता के परिवर्तन का खतरा अब शी जिनपिंग के ऊपर भी मंडराने लगा है।

जिस बर्बरता के साथ जिनपिंग ने सत्ता संभालने के बाद भ्रष्टाचार हटाने के नाम पर अपने विरोधियों का सफाया किया, अपने पड़ोसियों से बैर मोल लिया, अमरीका से युद्ध संघर्ष को आगे बढ़ाया, उससे चीन में एक बड़ा तबका, जिसमें राजनीतिज्ञ से लेकर उद्योगपति और आम जनता में किसान, मध्यम वर्ग शामिल है, शी के खिलाफ होता जा रहा है। 

शायद यही कारण है कि पिछले 2 वर्षों से शी जिनपिंग चीन से बाहर नहीं गए। उन्हें इस बात का डर है कि अगर उन्होंने अपना देश छोड़ा तो संभव है उनके पीछे सत्ता पर उनका विरोधी खेमा काबिज हो जाए और उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर दे। बाहरी दुनिया के लिए चीन की छवि सैन्य तौर पर एक मजबूत देश की है, लेकिन जानकारों की राय में चीन की यह छवि खुद चीन ने दुनिया के लिए बनाई है। इसके लिए उसने अपने मीडिया को पूरी तरह इस्तेमाल किया है, क्योंकि चीन में मीडिया सरकार के कब्जे में है। जानकार चीन के बारे में बताते हैं कि बाहरी तौर पर चीन भले ही कितना मजबूत होने का ढोंग कर ले, लेकिन अंदर से वह खोखला हो चुका है। दरअसल चीन के बारे में ऐसा दावा करने वाले जानकार अपने जीवनकाल में कभी न कभी, किसी न किसी रूप में चीन से जुड़े रहे हैं। 

इन जानकारों में से एक हैं रॉजर गारसाइड, जिन्होंने चीन के ऊपर ‘चाइना कू’ नामक एक किताब लिखी है। गारसाइड पेइचिंग में 2 बार अमरीकी दूतावास में काम कर चुके हैं। इनका मानना है कि बाहरी दुनिया को दिखाने के लिए चीन एक ताकतवर देश है, जहां पर हर क्षेत्र में हालात पूरी तरह शांत और स्थिर हैं, भले ही बाहरी तौर पर चीन वैसा ही है जैसा वह दिखाता है, लेकिन अंदर से चीन एकदम खोखला हो चुका है। वह बाहरी दुनिया को यह दिखाता रहता है कि अपनी सुरक्षा पर कितना खर्च करता है और उच्चतम तकनीक और हथियारों से लैस रहता है, लेकिन असल में चीन में अंदरूनी सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। असल में चीन अपने ही लोगों के विद्रोह का सामना कर रहा है। 

गारसाइड का कहना है कि चीन के आंतरिक मामले इस हद तक समस्या खड़ी कर रहे हैं, जिससे चीन की मौजूदा सत्ता हिल सकती है। उन्होंने अपनी किताब में बताया है कि चीन की सरकार बाहरी सुरक्षा की तुलना में अपने बजट का बड़ा हिस्सा अपनी आंतरिक सुरक्षा पर खर्च कर रही है। इसकी खास वजह यह है कि चीन के अंदर राजनीतिक गलियारों में कई खेमे हैं, जो मौके की ताक में हैं कि कब अपना तुरुप का पत्ता फैंका जाए, जिससे सत्ता परिवर्तन हो सके। 

कम्युनिस्ट पार्टी के नेता और शी जिनपिंग के सहयोगी भी मानते हैं कि अगर शी लंबे समय तक सत्ता पर काबिज रहे तो चीन के लिए खतरा है और जिनपिंग जो निर्णय ले रहे हैं, उनसे देश, पार्टी और खुद को खतरे में डाल रहे हैं। इसलिए जानकारों की राय में त तापलट की आशंका अधिक है। अगर हालात ऐसे ही रहे तो बहुत जल्दी शी के हाथों से सत्ता फिसल सकती है और उनका विरोधी खेमा सत्तानशीन हो सकता है। 

दरअसल इस समय चीन का निजी क्षेत्र, जिसमें बड़े उद्योगों से लेकर पिछले 2 दशकों में उपजे नवदौलतिए भी आते हैं, खासा नाराज चल रहा है और शी जिनपिंग के खिलाफ है। एक जानकारी के अनुसार हाल ही में अलीबाबा के जैक मा (मा युइन) ने न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज से 24 अरब डॉलर जुटाए हैं। इसके अलावा निजी क्षेत्र की 248 अन्य कंपनियों ने चीन की हर सत्ता, यानी राजनीतिक नियंत्रण से अलग, वित्तीय विनियमन तंत्र और क युनिस्ट पार्टी के हर तंत्र से दूर रह कर अरबों डॉलर जुटाए हैं। जानकारों का मानना है कि निजी क्षेत्र के उद्योगपति इन पैसों का इस्तेमाल चीनी राजनीतिज्ञों को खरीदने और शी जिनपिंग के विरोधी खेमे को सक्रिय करने में इस्तेमाल कर सकते हैं। 

शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति होने के साथ-साथ चीनी क युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष भी हैं, जो इस बार तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिए जोर लगाएंगे। ज्यादा संभावना इस बात की है कि वह खुद को आजीवन राष्ट्रपति पद पर चुनने के लिए अपने खेमे के लोगों पर दबाव बना सकते हैं। शी जिनपिंग के साथियों और क युनिस्ट पार्टी के कॉमरेडों का भरोसा भी उन पर से
उठता जा रहा है।

इन सभी का मानना है कि अगर चीन को सुरक्षित रखना है तो शी का सत्ता से जाना जरूरी है। ये सारी परिस्थितियां इस ओर इशारा कर रही हैं कि चीन में शी जिनपिंग का त तापलट इस वर्ष हो सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ऐसे समय में त तापलट के बाद क युनिस्ट पार्टी का कौन-सा खेमा सक्रिय होकर सत्ता की बागडोर संभालता है और क्या यह सत्ता परिवर्तन शांतिपूर्वक होगा या फिर कोई बड़ी उथल-पुथल चीन में देखने को मिलेगी। 

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